कभी एक जैसे, तो कभी बिल्कुल अलग, जुड़वां बच्चों के जन्म का विज्ञान जो है एक दिलचस्प रहस्य
क्या आपने कभी सोचा है कि कुछ जुड़वां बच्चे (Twins) बिल्कुल एक जैसे क्यों दिखते हैं, जबकि कुछ में कोई समानता ही नहीं होती? दरअसल, जुड़वां बच्चों का जन्म एक बेहद रोचक बायोलॉजिकल प्रोसेस (Biological Process) है, जिसे विज्ञान दो प्रकारों में बांटता है। समान जुड़वा (Identical Twins) और असमान जुड़वा (Fraternal Twins)। दोनों के बनने की प्रक्रिया, डीएनए (DNA), और शारीरिक बनावट में बड़ा अंतर होता है। आइए जानते हैं कैसे बनते हैं ये जुड़वां बच्चे और किन वजहों से इनकी संख्या बढ़ रही है।
1. समान जुड़वा (Identical Twins / Monozygotic Twins)
समान जुड़वां बच्चों का जन्म एक प्राकृतिक और अत्यंत दुर्लभ घटना है। यह तब होता है जब एक ही Egg और एक ही Sperm मिलकर Fertilize होते हैं। फिर यह निषेचित भ्रूण (Embryo) दो हिस्सों में बंट जाता है। यही कारण है कि दोनों बच्चों का DNA बिल्कुल एक जैसा होता है, वे एक जैसे दिखते हैं, और उनका लिंग (Gender) भी समान होता है। यह प्रक्रिया पूरी तरह प्राकृतिक (Natural) है इसमें कोई आनुवांशिक (Genetic) या पारिवारिक कारण नहीं होता। डॉक्टरों के मुताबिक, हर 1000 जन्मों में लगभग 3 से 4 मामले समान जुड़वा बच्चों के होते हैं।
असमान जुड़वा या Fraternal Twins आजकल अधिक आम हो गए हैं, खासकर IVF और Fertility Treatment की वजह से। यह तब होते हैं जब एक ही समय में महिला के दो अलग-अलग अंडाणु (Eggs) निकलते हैं और दोनों अलग शुक्राणुओं (Sperms) से निषेचित होते हैं। इसलिए इन दोनों बच्चों का DNA अलग-अलग होता है। वे भाई-बहनों की तरह होते हैं दिखने में अलग, और उनका Gender भी अलग हो सकता है (एक लड़का, एक लड़की)।
किन कारणों से बढ़ रही है असमान जुड़वा जन्म दर?
महिला रोग विशेषज्ञ डॉ निर्मल गुजराती (Dr. Nirmal Nitin Gujarathi, Obstetrician, Gynaecologist, IVF Specialist) के अनुसार, असमान जुड़वा बच्चों के जन्म की संभावना कई कारणों से बढ़ रही है। 30 वर्ष से अधिक उम्र की महिलाओं में अंडोत्सर्जन (Ovulation) के दौरान दो या अधिक अंडाणु निकलने की संभावना बढ़ जाती है। यदि किसी महिला की मां या नानी ने जुड़वां बच्चों को जन्म दिया हो, तो उसके साथ भी ऐसा होने की संभावना अधिक रहती है। इन तकनीकों में अक्सर एक से अधिक भ्रूण (Embryos) गर्भ में प्रत्यारोपित किए जाते हैं, जिससे जुड़वां या तिड़वां बच्चों (Twins or Triplets) का जन्म हो सकता है।
बढ़ती ट्विन बर्थ रेट का नया ट्रेंड
पिछले कुछ वर्षों में Twin Birth Rate लगातार बढ़ी है। मेडिकल डेटा के अनुसार, भारत सहित कई देशों में हर 1000 जन्मों में औसतन 14 से 16 मामले जुड़वां बच्चों के सामने आ रहे हैं। Assisted Reproductive Technology (ART), In-vitro Fertilization (IVF) और Lifestyle Changes इसका प्रमुख कारण माने जा रहे हैं। Dr. Nirmal Nitin Gujarathi का कहना है कि जुड़वां बच्चों का जन्म जहां माता-पिता के लिए खुशी की बात होती है, वहीं मेडिकल केयर की दृष्टि से यह चुनौतीपूर्ण भी है। क्योंकि जुड़वां बच्चे अक्सर समय से पहले (Preterm) जन्म लेते हैं और उन्हें NICU Care (Neonatal Intensive Care Unit) की जरूरत पड़ सकती है।
मां और बच्चे के लिए ज़रूरी विशेष देखभाल
जुड़वां गर्भावस्था में मां के शरीर पर भार ज्यादा होता है। इसलिए डॉक्टर नियमित जांच, पौष्टिक आहार और पर्याप्त आराम की सलाह देते हैं। ऐसी स्थिति में Iron, Calcium और Protein की खुराक अधिक मात्रा में दी जाती है ताकि दोनों भ्रूण स्वस्थ रह सकें। साथ ही, प्रसव के दौरान अक्सर C-Section Delivery की जरूरत पड़ती है क्योंकि जुड़वां बच्चों के जन्म में जटिलताएं (Complications) अधिक होती हैं। Dr. Nirmal Nitin Gujarathi की माने तो समान और असमान दोनों प्रकार के जुड़वां बच्चों के मामले अब पहले से ज्यादा देखने को मिल रहे हैं। इसका कारण आधुनिक चिकित्सा तकनीकें और बदलती जीवन शैली है। मगर सबसे महत्वपूर्ण है सही देखभाल और मेडिकल मॉनिटरिंग। जुड़वां बच्चों का जन्म प्रकृति का अद्भुत तोहफा है। चाहे समान (Identical) हों या असमान (Fraternal), दोनों ही स्थितियां अपने आप में खास होती हैं। हालांकि इन गर्भों में जोखिम भी ज्यादा होता है, इसलिए मां और बच्चे की हेल्थ केयर (Health Care) बेहद जरूरी है। जुड़वां बच्चों का रहस्य यही बताता है कि प्रकृति कभी-कभी अपनी ही ‘कॉपी’ बना लेती है — और वही विज्ञान को सबसे खूबसूरत तरीके से चौंका देती है।
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