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May 11, 2025

Happy Mother’s Day 2025: मां से शुरू होती है पूरी सृष्टि

Happy Mother’s Day: ‘हर रिश्ते में मिलावट देखी,कच्चे रंगों की सजावट देखी, लेकिन सालों साल देखा है मां को, उसके चेहरे पर ना कभी थकावट देखी, न ममता में कभी मिलावट देखी।’
Happy Mother’s Day 2025: किसी भी बच्चे के लिए मां से बढ़कर कोई नहीं होता और ये एक बहुत ही प्यारा और अनोखा रिश्ता होता है। किसी भी बच्चे के लिए उसका संसार मां ही होती है। इस रिश्ते में सिर्फ ममता और निस्वार्थ प्यार ही देखने को मिलता है। मां के इसी त्याग और प्यार को सम्मान देते हुए हर साल मदर्स डे मनाया जाता है। मां परिवार और समाज की प्रगति में अहम भूमिका निभाती हैं। मदर्स डे उनका सम्मान और निःस्वार्थ प्यार जाहिर करने का दिन है।
हर बच्चे की दुनिया उसकी मां से शुरू होती है – वही पहली गुरु, पहली दोस्त और सबसे बड़ी ताकत होती है। Mother’s Day ऐसा ही एक खास मौका है, जब हम अपनी मां और मां जैसी ममता देने वाली सभी महिलाओं को दिल से धन्यवाद कहते हैं। यह दिन न सिर्फ उनके प्यार और त्याग को याद करता है, बल्कि हमें यह भी सिखाता है कि मां की ममता से बड़ा कोई उपहार नहीं होता। पहले इसे ‘मदरिंग संडे’ कहा जाता था, जो एक धार्मिक परंपरा थी। अब यह दुनियाभर में मई महीने के दूसरे रविवार को मनाया जाता है। इस साल यानी 2025 में मदर्स डे 11 मई, रविवार को यानी आज दुनियाभर में मनाया जा रहा है।

Mother’s Day: मदर्स डे का क्या है इतिहास

Mother’s Day: मदर्स डे का आधुनिक संस्करण आज जो हम मनाते हैं, उसकी जड़ें 20वीं सदी के शुरुआती अमेरिका में हैं। यह कहानी है एना जार्विस (Anna Jarvis) की, जिन्होंने अपनी दिवंगत मां के सम्मान में 1908 में वेस्ट वर्जीनिया में पहला आधिकारिक मदर्स डे उत्सव मनाया। उन्होंने इस दिन को विशेष रूप से माताओं के त्याग और प्यार को समझने और सराहने के लिए रखा। उनकी मेहनत ने अमेरिकी राष्ट्रपति वुडरो विल्सन (Woodrow Wilson) को प्रेरित किया, और 1914 में उन्होंने मई के दूसरे रविवार को आधिकारिक तौर पर मदर्स डे के रूप में घोषित किया।

इस वजह से Mothers Day का विरोध करने लगीं एना

Mother’s Day: दुनिया में जब पहली बार मदर्स डे मनाया गया तो एना जार्विस एक तरह से इसकी पोस्टर गर्ल थीं। उन्होंने उस दिन अपनी मां के पसंदीदा सफेद कार्नेशन फूल महिलाओं को बांटे, जिन्हें चलन में ही ले लिया गया। इन फूलों का व्यवसायीकरण इस कदर बढ़ा कि आने वाले वर्षों में मदर्स डे पर सफेद कार्नेशन फूलों की एक तरह से कालाबाजारी होने लगी। लोग ऊंचे से ऊंचे दामों पर इन्हें खरीदने की कोशिश करने लगे। यह देखकर एना भड़क गईं और उन्होंने इस दिन को खत्म करने की मुहिम शुरू कर दी। Mother’s Day पर सफेद कार्नेशन फूलों की बिक्री के बाद टॉफी, चॉकलेट और तमाम तरह के गिफ्ट भी चलन में आने लगे। ऐसे में एना ने लोगों को फटकारा। उन्होंने कहा कि लोगों ने अपने लालच के लिए बाजारीकरण करके इस दिन की अहमियत ही घटा दी। साल 1920 में तो उन्होंने लोगों से फूल न खरीदने की अपील भी की। एना अपने आखिरी वक्त तक इस दिन को खत्म करने की मुहिम में लगी रहीं। उन्होंने इसके लिए हस्ताक्षर अभियान भी चलाया, लेकिन सफलता हाथ नहीं लगी और 1948 के आसपास एना इस दुनिया को अलविदा कह गईं।

एना के रिश्तेदार नहीं मनाते Mother’s Day

Mother’s Day के बाजारीकरण के खिलाफ एना की मुहिम का असर भले ही पूरी दुनिया पर न हुआ हो, लेकिन उनके परिवार के लोग व रिश्तेदार यह दिन नहीं मनाते हैं। दरअसल, कुछ साल पहले मीडिया को दिए एक इंटरव्यू में एना की रिश्तेदार एलिजाबेथ बर ने बताया था कि उनकी आंटियों और पिता ने कभी मदर्स डे नहीं मनाया, क्योंकि वे एना का काफी सम्मान करते थे। वे एना की उस भावना से काफी प्रभावित थे, जिसमें कहा गया था कि बाजारीकरण ने इस बेहद खास दिन के मायने ही बदल दिए।

Mother’s Day मनाने के अलग अलग तरीके

Mother’s Day की यह परंपरा सिर्फ आधुनिक समय तक ही सीमित नहीं रही। प्राचीन संस्कृतियों में भी मां और मातृ आकृतियों को सम्मान देने के अलग-अलग तरीके थे। यूनानियों ने रिया (Rhea), जो देवताओं की मां थीं, उनकी पूजा की, जबकि रोमनों ने अपनी मां देवी साइबेले के सम्मान में वसंत ऋतु का हिलारिया त्योहार  (Hilaria)  मनाया। इसके अलावा, इंग्लैंड में 16वीं सदी में ‘मदरिंग संडे’ (Mothering Sunday) के रूप में एक धार्मिक अवसर मनाया जाता था, जो बाद में धर्मनिरपेक्ष उत्सव (secular celebration) में बदल गया। कुछ विद्वानों का दावा है कि मां के प्रति सम्मान यानी मां की पूजा का रिवाज पुराने ग्रीस से आरंभ हुआ है। कहा जाता है कि स्य्बेले ग्रीक देवताओं की मां थीं, उनके सम्मान में यह दिन मनाया जाता था। यह दिन त्योहार की तरह मनाने की प्रथा थी। एशिया माइनर के आस-पास और साथ ही साथ रोम में भी वसंत के आस-पास इदेस ऑफ मार्च 15 मार्च से 18 मार्च तक मनाया जाता था।
चीन में मातृ दिवस बेहद लोकप्रिय है और इस दिन उपहार के रूप में गुलनार के फूल सबसे अधिक बिकते हैं। 1997 में चीन में यह दिन गरीब माताओं की मदद के लिए निश्चित किया गया था। खासतौर पर उन गरीब माताओं के लिए जो ग्रामीण क्षेत्रों, जैसे पश्चिम चीन में रहती हैं।
जापान में मातृ दिवस शोवा अवधि के दौरान महारानी कोजुन (सम्राट अकिहितो की मां) के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता था। आज कल इसे अपनी मां के लिए ही लोग मनाते हैं। बच्चे गुलनार और गुलाब के फूल उपहार के रूप में मां को अवश्य देते हैं। थाईलैंड में मातृत्व दिवस थाइलैंड की रानी के जन्मदिन पर मनाया जाता है। भारत में इसे कस्तुरबा गांधी के सम्मान में मनाए जाने की परंपरा है।
बाद में यह तारीखें कुछ इस तरह बदली कि विभिन्न देशों में प्रचलित धर्मों की देवी के जन्मदिन या पुण्य दिवस को इस रूप में मनाया जाने लगा। जैसे कैथोलिक देशों में वर्जिन मैरी डे और इस्लामिक देशों में पैगंबर मुहम्मद की बेटी फातिमा के जन्मदिन की तारीखों से इस दिन को बदल लिया गया। वैसे कुछ देश 8 मार्च वुमंस डे को ही मदर्स डे की तरह मनाते हैं। यहां तक कि कुछ देशों में अगर Mother’s Day पर अपनी मां को विधिव‍त सम्मानित नहीं किया जाए तो उसे अपराध की तरह देखा जाता है।

Mother’s Day की क्या है अहमियत

Mother’s Day सिर्फ उपहारों और कार्ड्स तक सीमित नहीं है, यह एक गहरी श्रद्धांजलि है, जो हमें उन अपूर्व माताओं के योगदान को याद दिलाती है, जो न केवल परिवारों बल्कि समाज को आकार देती हैं। माताएं हमारी पहली शिक्षिका होती हैं, जो हमें जीवन के मूल्यों और पाठों से परिचित कराती हैं। वे हमारे जीवन का पालन-पोषण करने वाला स्तंभ होती हैं और अक्सर हमारे भावनात्मक आधार का काम करती हैं। Mother’s Day हमें इस बारे में सोचने और रुकने का समय देता है कि कैसे मां का निस्वार्थ प्रेम, उनका अंतहीन धैर्य और उनके दैनिक बलिदान हमारे जीवन को बेहतर बनाते हैं। यह सिर्फ जैविक माताओं तक ही सीमित नहीं है, यह दादी, अभिभावक, एकल पिता, और वे सभी लोग जो किसी के जीवन में मां जैसी भूमिका निभाते हैं, उनका भी सम्मान करने का दिन है। यह एक ऐसा दिन है जब हम न केवल मातृत्व के अनमोल एहसास को महसूस करते हैं, बल्कि उसे पूरी दुनिया से जोड़ते हैं, ताकि हर उस व्यक्ति को सम्मान मिल सके जो मां की तरह देखभाल करता है।

केवल जननी ही मां नहीं होती

Mother’s Day: महिलाएं समाज का एक महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। पूरे इतिहास में, उन्हें दबाया गया, यहां तक कि उनके साथ दुर्व्यवहार भी किया गया। हालांकि यह महिलाएं ही हैं जिन्होंने दुनिया की स्थिरता, प्रगति और दीर्घकालिक विकास को अंजाम दिया है। वे अपनी शक्ति, दृढ़ संकल्प और विश्वास के कारण दुनिया को रहने के लिए एक बेहतर (Mother’s Day 2024) जगह बनाती हैं, चाहे वह गृहिणी, इंजीनियर, शिक्षक आदि हों। भारत के इतिहास में ऐसी कुछ माएं हैं जिन्होंने देश की जनता को अपनी संतान मानकर अपने दायित्वों को लेकर न केवल अपनी ज़िम्मेदारी निभाई है, बल्कि देश की बागडोर संभालने में भी महत्व पूर्ण भूमिका निभायी है।

Indira Gandhi: The Mother of Modern India

Mother’s Day: दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र, भारत की आबादी 140 अरब लोगों की है (और बढ़ रही है), जिसमें 2,000 जातीय समूह, दुनिया के सभी प्रमुख धर्म और विभिन्न जातियां और उपजातियां शामिल हैं। शासन करने के लिए यह संभवतः दुनिया का सबसे कठिन और जटिल देश माना जाता है। लेकिन इंदिरा गांधी न केवल एक ऐसी महिला हैं जिन्होंने भारत पर शासन करने का प्रबंधन किया, साथ ही देश को आधुनिक युग में भी खींचा। 1966 में जब इंदिरा गांधी पहली बार प्रधान मंत्री बनीं, तो भारत उस समय 50 करोड़ लोगों का देश था जो खाद्य संकट से गुजर रहा था। जिसके परिणामस्वरूप इसे अपने नागरिकों को खिलाने के लिए अनाज (Mother’s Day 2024) आयात करना पड़ा, जबकि गरीबी चरम पर थी। लेकिन 1977 में जब उनका पहला कार्यकाल समाप्त हुआ, तब तक भारत परिवर्तन के कगार पर एक देश था। कृषि सुधार – जिसे ‘हरित क्रांति’ के नाम से जाना जाता है – के परिणामस्वरूप गेहूं, चावल, कपास और दूध की जैसे खाद्य पदार्थ में 25 प्रतिशत की वृद्धि हुई। उद्योगों, विशेष रूप से बैंकों के राष्ट्रीयकरण से वित्तीय प्रणाली में स्थिरता आई। देश में कट्टर गरीबों की संख्या को कम करने के लिए सामाजिक कल्याण कार्यक्रम लागू किए गए थे।
कह सकते हैं कि इंदिरा गांधी ने भारत देश को अपनी संतान के रूप में मानकर उसे आधुनिक और विकसित युग की ओर बढ़ाया।

 Savitri Phule: Mother of Indian Feminism

Mother’s Day: सावित्रीबाई फुले को अक्सर भारतीय नारीवाद यानी Feminism की जननी के रूप में प्रतिष्ठित किया जाता है। सावित्रीबाई फुले को आधुनिक भारत की पहली फेमिनिस्ट कहते हैं। उन्हें भारत में महिलाओं की शिक्षा में उनके योगदान के लिए जाना जाता है, जिसमें महिलाओं के लिए पहले स्कूल का निर्माण भी शामिल है। अपने पति ज्योतिबा फुले के साथ, उन्होंने खुद को महिला सशक्तिकरण के लिए समर्पित कर दिया। सावित्रीबाई फुले को देश में सामाजिक सुधारों में उनके अतुलनीय योगदान के लिए आज भी याद किया जाता है। एक सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में, उन्होंने न केवल लिंग संबंधी मुद्दों के लिए, बल्कि जातिगत भेदभाव के खिलाफ भी काम किया। वह निचली जाति से आती थीं और इस वजह से उन्हें काफी भेदभाव का सामना करना पड़ा।

Sarojini Naidu: The Nightingale of India

Mother’s Day: सरोजिनी नायडू, जिन्हें भारत की कोकिला भी कहा जाता है, एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता सेनानी और राजनीतिज्ञ थीं, जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। 13 फरवरी, 1879 को हैदराबाद में जन्मी सरोजिनी नायडू एक प्रतिभाशाली कवयित्री, लेखिका और वक्ता थीं। वह भारतीय राष्ट्रीय आंदोलन की अग्रणी हस्तियों में से एक थीं और 1925 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी जाने वाली पहली महिला थीं। सरोजिनी नायडू हिंदू-मुस्लिम एकता की प्रबल समर्थक थीं और भारत के विभाजन के ख़िलाफ़ थीं। विभाजन के विरोध के बावजूद, उन्होंने प्रक्रिया शांतिपूर्ण और व्यवस्थित  करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने सांप्रदायिक हिंसा को रोकने के लिए अथक प्रयास किया और विभाजन के तनावपूर्ण और उथल-पुथल भरे दौर में शांति बनाए रखने में मदद की थी।

Mother Teresa- Mother Of Charity

Mother’s Day: मदर टेरेसा एक ऐसी शख्सियत थीं जिन्होंने अपने जीवन को दूसरों की सेवा में समर्पित किया। उनका नाम सदैव मानवता के महान दाताओं में गिना जाता है। मदर टेरेसा का जन्म 26 अगस्त 1910 को मैसेडोनिया के स्कोप्ज़े में हुआ था, लेकिन उन्होंने अपना जीवन सम्पूर्ण भारत में बिताया है। उनकी सेवा भावना की शुरुआत उनके बचपन से ही हो गई थी। उन्होंने अपना जीवन गरीब लोगों की सेवा में समर्पित किया। 1950 में, उन्होंने कलकत्ता में मिशनरीज ऑफ चैरिटी की स्थापना की, जिसका मुख्य उद्देश्य गरीब, बीमार और असहाय लोगों की सेवा था। मदर टेरेसा के सबसे महत्वपूर्ण और यादगार कार्यक्षेत्रों में से एक हैं निराधार बच्चों की देखभाल। उन्होंने असहाय और लाचार बच्चों को प्यार और देखभाल प्रदान करने के लिए ‘शिशु भवन’ स्थापित किया। वहां उन्होंने ऐसे बच्चों को अपनी गोद में लिया जो अपने माता-पिता से वंचित थे। मदर टेरेसा का संघर्ष, उनकी सेवा भावना और दृढ़ आत्मा के साथ जुड़े थे। उन्होंने कभी हार नहीं मानी और हमेशा गरीब और बेहद असहाय लोगों की सेवा की। उन्होंने दुनिया की एक मां के रूप में सेवा की, जो हमेशा अपने बच्चों की देखभाल करती है।

 Ahilyabai Holkar- Mother of Art & Culture

Mother’s Day: साल 1767 में जन्मी अहिल्याबाई होल्कर न केवल मालवा साम्राज्य (मध्य भारत क्षेत्र) की एक (Mother’s Day 2024) न्यायप्रिय शासक थीं, बल्कि भारत की सबसे महान और सम्मानित शख्सियत भी थीं। अपने धर्मनिष्ठ स्वभाव और साहसी व्यक्तित्व के कारण वह इंदौर की संत शासक के रूप में जानी जाती थीं। अपने राज्य पर कब्ज़ा करने के बाद, उन्होंने राजधानी को इंदौर से महेश्वर स्थानांतरित कर दिया, जहां उन्होंने नर्मदा नदी के तट पर अहिल्या किला (जो 18 वीं शताब्दी की मराठा वास्तुकला का एक उत्कृष्ट उदाहरण है) बनवाया। अहिल्याबाई होल्कर उन शासकों में से एक थीं जो कला, संगीत, साहित्य, मूर्तिकला, कविता का सम्मान करते थे और उनका दरबार कलाकारों के लिए हमेशा खुला रहता था। हालांकि एक बार उन्होंने कविताओं की एक किताब फेंक दी जिसमें उसकी प्रशंसा लिखी थीं क्योंकि वे अपना महिमामंडन नहीं चाहती थीं। वह एक परोपकारी आत्मा थीं जो हमेशा अपने लोगों और राज्य के विकास में विश्वास करती थीं। उन्होंने कर के पैसे का उचित उपयोग करके अपने लोगों को उचित बुनियादी ढांचा प्रदान किया। उन्होंने विधवाओं को उनके पति की संपत्ति बरकरार रखने में मदद की ताकि वे अपना जीवन स्वतंत्र रूप से और सम्मान के साथ जी सकें। अहिल्याबाई होलकर की प्रजा उन्हें ‘आई साहेब’ कहकर संबोधित करती थी।
माता पार्वती, ऋषि गार्गी, ऋषि मैत्रेयी, माता कौशल्या, सीता, शबरी, ऐसी स्त्रियों के उदाहरणों से भारतीय संस्कृति सर्वोच्च कहलाती है, जिन्होंने स्वार्थ और स्वहित को परे रखकर अपनों के लिए बलिदान देने से परहेज नहीं किया। रानी लक्ष्मीबाई, पन्ना धाय जैसी साहसिक योद्धाओं ने अपनी संताने तक न्योछावर कर दीं। भारतीय सनातनी परंपरा में यूंही ‘जत्र नारी पूज्यंते, रमणते तत्र देवता’ जैसा महान उद्धरण स्त्रियों के लिए नहीं दिया है। सबसे बढ़कर, यह दिन है मातृभूमि का शुक्रिया अदा करने का, जिसने हमें धरती, आकाश, जल, वायु और प्रकृति से भरापूरा संसार दिया ताकि जीवन संभव हो सके!

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