app-store-logo
play-store-logo
October 6, 2025

नेपाल में पूजी जाएंगी 2 साल की नई ‘जीवित देवी’ जिनका नहीं हो पाएगा विवाह, जानिये वजह 

The CSR Journal Magazine
नेपाल में नई कुमारी या ‘जीवित देवी’ के रूप में दो साल आठ महीने की एक बच्ची का चयन किया गया है। ‘आर्या तारा शाक्य’ नाम की कन्या ने विधिवत रूप से पारंपरिक कुमारी सिंहासन ग्रहण किया। कुमारी का चयन शाक्य लड़कियों में से किया जाता है, जब तक वे अपनी पहली माहवारी का अनुभव नहीं करतीं। कुमारी चुनने वाली शाक्य समुदाय को बौद्ध माना जाता है, लेकिन कुमारी को हिंदू देवी के रूप में पूजा जाता है। कुमारी पूजा की परंपरा 500 से 600 वर्ष पुरानी है, जो मल्ल राजाओं के शासन में शुरू हुई। कुमारी को देवी तलेजू का मानव रूप मानते हैं। नेपाल के राष्ट्रपति के जीवित देवी की पूजा करने व अगस्त में इंद्रजात्रा महोत्सव में उनका आशीर्वाद लेने की परंपरा है।

नेपाल में पूजा होती है ‘जीवित देवी’ की

देश-दुनिया में कई परंपराएं हैं, जो सोचने पर मजबूर कर देती हैं। ऐसे में हर कोई ऐसी परंपराओं के बारे में जानना चाहता है। ऐसी ही एक परंपरा नेपाल में है, जहां एक छोटी बच्ची को देवी के रूप में पूजा जाता है। इसके लिए चुनी गई बच्ची में 32 गुण होने चाहिए। बच्ची को कई कठिन परीक्षाओं से गुजरना पड़ता है। ऐसे में देखा जाता है कि उसके अंदर कितना साहस है। इसी से अंदाजा लगाया जाता है कि उसके अंदर कितने दिव्य गुण हैं। इसके बाद इस बच्ची की एक झलक पाने के लिए हजारों लोग उमड़ पड़ते हैं। नेपाल की आर्यतारा ने यह परीक्षा प्रक्रिया पास कर ली है। इस प्राचीन अनुष्ठान के तहत अब ढाई साल की ‘आर्यतारा शाक्य’ नेपाल की शाही जीवित देवी ‘कुमारी’ का पद संभालेंगी।

कौन हैं नई ‘जीवित देवी’ कुमारी

 2 साल 8 महीने की आर्यतारा शाक्य पारंपरिक साहस परीक्षा पास करने के बाद नेपाल की देवी कुमारी बन गईं। नन्हे हाथों में लाल-लाल चूड़िया, माथे पर लाल बिंदी, लाल टीका, आंखों में काजल, गले में फूलों की माला और चटक लाल रंग का लहंगा पहने नेपाल की नई ‘Living Goddess’ जब काठमांडू की सड़कों पर निकलीं तो पूरा काठमांडू उनके पीछे हो लिया। पिता की गोद में दो साल आठ महीने की नेपाल की नई ‘जीवित देवी’ आर्यतारा शाक्य अपने आसपास की भीड़ को कजरारी आंखों से निहारती दिखीं। नेपाल की ये नई लिविंग गॉडेस यानी कुमारी देवी अपने कौमार्य यानी पीरियड्स शुरू होने तक काठमांडू के कुमारी घर में अपने माता-पिता से दूर एक देवी की तरह रहेंगी। नेपाल की नई ‘जीवित देवी’ आर्यतारा के पिता उसे गोद में उठाकर तलेजू भवानी मंदिर ले गए, जहां हज़ारों लोग ‘कुमारी’ की एक झलक पाने के लिए कतार में खड़े थे।

पिता को था बच्ची के असाधारण होने का पूर्वाभास

आर्यतारा के पिता का नाम अनंत शाक्य और माता का नाम प्रतिष्ठा शाक्य है। आर्यतारा की एक बहन भी हैं जिनका नाम पारमिता शाक्य है। नई कुमारी देवी के पिता अनंत शाक्य ने मीडिया से बात करते हुए कहा, ‘कल तक वो बस मेरी बेटी थी लेकिन आज वो देवी बन गई हैं।’ उन्होंने बताया कि जब उनकी पत्नी गर्भवती थीं तभी उन्हें आभास हो गया था कि उनका बच्चा काफी खास होने वाला है। वो कहते हैं, ‘मेरी पत्नी जब गर्भवती थीं तब उन्हें सपना आया कि उन्हें देवी पैदा होगी जो बेहद खास होगी।’
आर्यतारा शाक्य से पहले काठमांडू की कुमारी देवी तृष्णा शाक्य थीं जो कि अब 11 साल की हो चुकी हैं। तृष्णा 2017 में कुमारी देवी बनी थीं और अब माहवारी की शुरुआत के बाद वो साधारण इंसान की तरह जीवन बिताने के लिए कुमारी घर से विदा ले चुकी है। वर्तमान कुमारी आर्यतारा ने तृष्णा शाक्य का स्थान लिया। परंपरा के अनुसार, किशोरावस्था में प्रवेश करते ही तृष्णा का कौमार्य काल समाप्त हो गया। फिर उन्हें विशेष प्रार्थना और ज्योतिषीय मूल्यांकन के साथ घर ले जाया गया। इसके तहत, आठवें दिन, काठमांडू के ऐतिहासिक कुमारी भवन में आर्यतारा की औपचारिक पूजा की गई।

सदियों पुरानी प्रथा है जीवित देवी का चयन

कुमारी देवी की परंपरा 12वीं या 13वीं शताब्दी से मल्ल वंश के समय शुरू हुई थी। पौराणिक कथा के अनुसार, मल्ल राजा जयप्रकाश मल्ला देवी तालेजू के साथ शतरंज खेला करते थे। एक बार राजा ने देवी को मानवीय भावनाओं से देखा, जिससे क्रोधित होकर देवी ने कहा कि वे अब उनकी पूजा स्वीकार नहीं करेंगी। इसके बाद में राजा को अपनी भूला का ज्ञान हुआ तब उन्होंने देवी से क्षमा मांगी। इस पर देवी ने सपने में राजा को निर्देश दिया कि वे शाक्य या वज्राचार्य समुदाय की एक बच्ची का चयन करें, जिसमें वे अवतरित होंगी तब से यह परंपरा चली आ रही है, जिसमें एक बच्ची को कुमारी के रूप में चुना जाता है और मासिक धर्म शुरू होने तक उसकी पूजा की जाती है।

जीवित देवी कुमारी में होने चाहिए 32 गुण

नेपाली परंपरा के अनुसार, देवी कुमारी चुने जाने के लिए एक कन्या में 32 गुण होने चाहिए। जिनमें सुंदरता, शारीरिक शुद्धता, शांत स्वभाव, दिव्य गुण, शरीर पर कोई घाव या निशान न होना, अंधकार का भय न होना, सभी दांत स्वस्थ होना और असाधारण निर्भयता शामिल हैं। ‘कुमारी’ को हिंदू देवी तलेजू का जीवित अवतार माना जाता है। ‘कुमारी’ हमेशा लाल वस्त्र पहनती हैं, अपने बालों को गुंथती हैं और उनके माथे पर ‘तीसरी आंख’ होती है। एक शर्त यह भी है कि शाही कुमारी शाक्य वंश से होनी चाहिए और उसके माता-पिता दोनों काठमांडू के स्थानीय शाक्य समुदाय से होने चाहिए। शाही ‘कुमारी’ की पूजा हिंदू और बौद्ध दोनों ही करते हैं।

लड़की की परीक्षा कैसे होती है

परंपरा के अनुसार, ‘कुमारी’ बनने के लिए लड़की को साहस की कठोर परीक्षा देनी होती है। इसमें उसे कई बलि दिए गए भैंसों और खून में नाचते नकाबपोश पुरुषों को दिखाया जाता है। इस दौरान अगर किसी भी तरह का डर दिखाई देता है, तो उसे देवी तलेजू का अवतार बनने के लिए अयोग्य माना जाता है। काठमांडू में दशई पर्व के अवसर पर यह परंपरा निभाई गई, इसके लिए आर्यतारा को एक परीक्षा से गुजरना पड़ा। उसके सामने ही भैसें की बलि दी गई और खून दिखाया गया, राक्षसों के मुखौटे लगाए लोग चारों ओर उसकी ओर नाचे, डरावनी आवाज निकाली गईं, मगर वह बच्ची बिना पलक झपकाए, सब देखती रही और बिना डरे मुस्कराती रही। देवी के तौर पर चुने जाने के लिए शर्त भी यही है, अगर बच्ची डर जाती है तो वह देवी के रूप में नहीं चुनी जा सकती।

‘कुमारी घर’ में माता-पिता से अलग रहती है ‘जीवित देवी’

‘कुमारी’ चुने जाने के बाद लड़की अपने माता-पिता का घर तब तक छोड़ देती है जब तक कि कोई अन्य जीवित देवी उसकी जगह नहीं ले लेती। जीवित देवी के लिए एक विशेष ‘कुमारी घर’ की व्यवस्था की जाती है, जिसमें कोई आधुनिक सुविधाएं नहीं होती हैं। हाल के कुछ वर्षों में परंपरा में कई बदलाव आए हैं और कुमारी को अब मंदिर के महल के अंदर निजी शिक्षकों से शिक्षा प्राप्त करने और एक टेलीविजन सेट रखने की अनुमति भी मिल गई है। सरकार अब सेवानिवृत्त कुमारियों को एक छोटी मासिक पेंशन भी प्रदान करती है। इस दौरान माता-पिता को अपनी बेटी से मिलने की अनुमति नहीं होती है और वे अपनी बेटी को तभी देख पाते हैं जब कुमारी साल में लगभग 13 बार विशेष आयोजनों और स्थानों पर जाती हैं।

दिन में दोनों प्रहर होती है जीवित देवी की पूजा

नेपाल में जीवित देवी की पूजा साल भर होती रहती है लेकिन कुछ विशेष अवसरों और त्योहारों पर इसका महत्व बढ़ जाता है। कुमारी को नेपाल में तलेजु भवानी यानी दुर्गा माता का जीवित रूप माना जाता है। उनकी पूजा मुख्य रूप से काठमांडू दरबार स्क्वायर के कुमारी घर में होती है। नेपाल में कुमारी की दैनिक पूजा उनके कुमारी घर में सुबह और शाम को की जाती है। बालिका को देवी की तरह सजाया जाता है। दीप, धूप और मंत्रों के साथ तलेजु भवानी की उपासना की जाती है। नेपाल में होने वाली इन्द्र जात्रा में भी जीवित देवी की पूजा होती है। यह कुमारी पूजा का सबसे बड़ा और प्रसिद्ध अवसर है। इस दौरान कुमारी को भव्य रथ में बैठाकर पूरे काठमांडू शहर में घुमाया जाता है। नेपाल के राजा या प्रधानमंत्री भी इस दिन कुमारी से आशीर्वाद लेते हैं। दशैन के अष्टमी और नवमी के दिन कुमारी की पूजा विशेष रूप से की जाती है। इस दिन उन्हें तलेजु भवानी को शक्ति रूप मानकर बलि और विशेष अनुष्ठान किए जाते हैं।

समाज में सम्मानित होता है कुमारी देवी का परिवार

शाक्य कुल के योग्य परिवार अपनी बेटियों को कुमारी बनाए जाने के लिए कंपटीशन करते हैं और जो बच्ची कुमारी चुनी जाती है, उसका परिवार बेहद खुश होता है। कुमारी चुनी जाने वाली बच्ची के परिवार को समाज और अपने समुदाय में काफी इज्जत और प्रतिष्ठा मिलती है और उन्हें कुमारी देवी का परिवार कहा जाता है। कुमारी घर में कुमारी देवी का जीवन बेहद कम लोगों के बीच बीतता है जिसमें उनकी देखभाल करने वाले लोग और कुछ चुनिंदा सहेलियां होती हैं। वो साल में महज 13 बार ही त्योंहारों के दौरान बाहर निकल सकती हैं और वो भी दर्शन देने के लिए। कुमारी देवी के माता-पिता भी उनसे कुछ खास अवसरों पर ही मिल पाते हैं।

जब रोईं कुमारी देवी, नेपाल में आ गई थी प्रलय

कुमारी देवी भक्तों से मिलते वक्त शांत मुद्रा में होती हैं और वो इशारों में अपने भाव प्रकट करती हैं। नेपाल में कुमारी देवी का रोना बेहद ही अशुभ माना जाता है। 2001 में 6 साल की कुमारी देवी चनीरा बज्राचार्य लगातार चार दिनों तक रोती रहीं। उनके रोने के आखिरी दिन, 1 जून 2001 को नेपाल के तत्कालीन युवराज ने अपने माता-पिता, राजा बीरेन्द्र और रानी ऐश्वर्या समेत शाही परिवार के नौ लोगों की हत्या कर दी और फिर खुद को गोली मार ली।
चनीरा बज्राचार्य ने दो साल पहले मीडिया से बात करते हुए बताया था, ‘एक दिन मैंने रोना शुरू किया, बिना किसी वजह के! मेरी मां ने मुझे मिठाई दी, गिफ्ट्स दिए, मुझे मनाने की हर कोशिश की। लेकिन मैं चुप नहीं हुई। मंदिर के पुजारी ने मुझे देखा और भविष्यवाणी की कि देश में जरूर कुछ बुरा होने वाला है, और चौथे दिन मैंने सुना कि राजा और उनके पूरे परिवार को किसी ने मार दिया है। मैं इस घटना को समझ नहीं पाई और कुमारी रहते हुए मेरे साथ ये सबसे बड़ी घटना हुई।’

 कुमारी देवी से शादी से क्यों डरते हैं लड़के

कुमारी देवी को लेकर सदियों से यह बात चली आ रही है कि उनसे शादी करने वाले लड़के कम उम्र में ही मर जाते हैं और उन्हें अपनी पूरी जिंदगी फिर अकेले बितानी पड़ती है। इसी के चलते कुमारी देवी जब सामान्य जीवन में वापस आती हैं और शादी की उम्र की होती हैं तो उनसे कोई शादी के लिए राजी नहीं होता। लोग पुरानी मान्यता के चलते अपने घरों के लड़कों की शादी पूर्व कुमारियों से नहीं कराना चाहते। उन्हें लगता है कि इससे उनके लड़के की अकाल मृत्यु हो जाएगी। पूर्व कुमारियों को सामान्य जीवन में ढलने, घर के काम करना सीखने और नियमित रूप से स्कूलों में जाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ता है।

कुमारी प्रथा की आलोचना होती रही है

बच्चों के लिए काम करने वाली कुछ संस्थाएं और मानवाधिकार संगठन नेपाल की कुमारी प्रथा पर सवाल उठाते रहे हैं। आलोचक कहते हैं कि यह प्रथा बच्चियों का शोषण है। हालांकि, चनीरा इससे इत्तफाक नहीं रखतीं। वो कहती हैं, ‘कुमारी प्रथा के आलोचक अधूरी कहानी जानते हैं। देवी को बस तब तक शांत और देवी की तरह मुद्रा धारण करना होता है जब लोग उनसे मिलने आते हैं। लेकिन जब देवी पूजा घर से बाहर आ जाती हैं तो वो किसी सामान्य लड़की की तरह ही होती है। देवी की सहेलियां उनसे मिलने आ सकती हैं, वो खेल सकती हैं, हंस सकती हैं, टीवी देख सकती है, हर काम कर सकती है जो कोई सामान्य लड़की करती है।’
चनीरा ने देवी घर में रहते हुए प्राइवेट टीचर की मदद से पढ़ाई की और जब वो 2010 में कुमारी घर से बाहर निकली तो औपचारिक पढ़ाई शुरू कर दी। वो एमबीए कर चुकी हैं और फाइनेंस सेक्टर में जॉब भी करती हैं। वो पहले की उन कुमारियों से अलग हैं जो औपचारिक शिक्षा से वंचित रह जाती थीं। वो कहती हैं, ‘लोग सोचते थे कि वो देवी है, तो सब कुछ जानती है। और भला देवी को सिखाने की हिम्मत कौन करता?’

दुनिया भर में आकर्षण का केंद्र नेपाल की जीवित देवी

नेपाल की यह परंपरा शक्ति पूजा और बौद्ध तांत्रिक परंपरा का संगम है। माना जाता है कि कुमारी की पूजा से देश में शांति, समृद्धि और सुरक्षा बनी रहती है। नेपाल में सबसे प्रसिद्ध कुमारी घर काठमांडू दरबार स्क्वायर में है। इसके अलावा पाटन और भक्तपुर में भी कुमारी पूजा की परंपरा है। नेपाल की जीवित देवी की परंपरा एक अनोखी सांस्कृतिक और धार्मिक प्रथा है, जो शक्ति की पूजा और बौद्ध मान्यताओं का अद्भुत मिश्रण है। यह न सिर्फ नेपाल की धार्मिक विरासत का हिस्सा है बल्कि दुनिया भर से पर्यटकों को भी आकर्षित करती है।

Latest News

Popular Videos