भारत में कुपोषण एक जटिल समस्या है। फ़ूड एंड एग्रीकल्चर आर्गेनाइजेशन (Food and Agriculture Organization) की रिपोर्ट के अनुसार भारत (India-Bharat) में लगभग 194.4 मिलियन लोग कुपोषित हैं। यानी अपने भारत देश की जनसंख्या का 14.5 फीसदी जनता Malnutrition से ग्रसित है। वैश्विक भुखमरी सूचकांक (Global Hunger Index) 2019 की रैंकिंग में भारत 117 देशों में से 102वें स्थान पर था। जिसमें कुछ सुधार के बाद 2020 में भारत 94वें स्थान पर था लेकिन 2021 में फिर से भारत की रैंकिंग 101 हो गयी जो भारत में व्याप्त भयावह भुखमरी की स्थिति को दर्शाता है। अब जाहिर है कि ये आकड़े भारत सरकार के लिए चिंता का विषय है। भारत में कुपोषण की स्थिति सरकार बड़ी चुनौतियां अभी भी बनी हुई हैं। लिहाजा केंद्र सरकार ने देश में कुपोषण से लड़ने के लिए राष्ट्रीय पोषण अभियान की शुरुआत की ताकि हमारे बच्चों को सही पोषण मिल सके।
राष्ट्रीय पोषण अभियान से कुपोषण का हो रहा है खात्मा
पोषण अभियान कुपोषण मुक्त भारत के दृष्टिकोण के साथ एक बहु-मंत्रालयी मिशन है। पोषण अभियान का उद्देश्य प्रमुख आंगनवाड़ी सेवाओं के उपयोग में सुधार करके और सबसे अधिक कुपोषण के बोझ वाले भारत के चिन्हित जिलों में स्टंटिंग को कम करना है। पोषण सप्ताह मनाने का मुख्य उद्देश्य बेहतर स्वास्थ्य के लिए पोषण के महत्व पर जागरूकता बढ़ाना है, जिसका विकास, उत्पादकता, आर्थिक विकास और अंत में राष्ट्रीय विकास पर प्रभाव पड़ता है। महिला एवं बाल विकास मंत्रालय देश के सभी जिलों में पोषण अभियान लागू किया है। इसके साथ ऐसी कई योजनाएं हैं जो प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से बच्चों (0-6 वर्ष की आयु) और गर्भवती महिलाओं और स्तनपान कराने वाली माताओं की पोषण स्थिति को सुधार रही हैं।
देश की कई राज्य सरकारें चलाती है मां-ममता कार्यक्रम
नवजात शिशु एवं बाल आहार प्रथाओं को अधिकतम बढ़ावा देने के लिए मंत्रालय ने “मां- मां की असीम ममता” कार्यक्रम शुरू किया है ताकि देश में स्तनपान का दायरा बढ़ाया जा सके। मां कार्यक्रम के अंतर्गत स्तनपान को बढ़ावा देने के लिए जिला और ब्लॉक स्तर पर कार्यक्रम प्रबंधकों सहित डॉक्टरों, नर्सों और एएनएम के साथ करीब 3.7 लाख आशा और करीब 82,000 स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को संवेदनशील बनाया गया है और 23,000 से ज्यादा स्वास्थ्य सुविधा कर्मचारियों को आईबाईसीएफ प्रशिक्षण दिया गया है। साथ ही उपयुक्त स्तनपान परंपराओं के महत्व के संबंध में माताओं को संवेदनशील बनाने के लिए ग्रामीण स्तरों पर आशा द्वारा 1.49 लाख से अधिक माताओं की बैठकें आयोजित की जा चुकी हैं।
नुट्रिशन के लिए प्रेरित करता है राष्ट्रीय पोषण सप्ताह
राष्ट्रीय पोषण सप्ताह (National Nutrition Week – एनएनडब्ल्यू), भारत सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, खाद्य और पोषण बोर्ड द्वारा शुरू किया गया वार्षिक पोषण कार्यक्रम है। यह कार्यक्रम पूरे देश में हर साल 1 से 7 सितंबर तक मनाया जाता है। पोषण सप्ताह मनाने का मुख्य उद्देश्य बेहतर स्वास्थ्य के लिए पोषण के महत्व पर जागरूकता बढ़ाना है। इस सप्ताह के दौरान कार्यक्रम प्रबंधकों के साथ माताओं की बैठकें और ब्लॉक/जिला स्तर की कार्यशालाओं के आयोजन की भी योजना जाती है। बच्चों के स्वास्थ्य के लिए स्तनपान महत्वपूर्ण है। जन्म के एक घंटे के भीतर स्तनपान नवजात शिशुओं की मृत्यु के 20 प्रतिशत मामलों को कम कर देता है। नवजात शिशुओं को जिन्हें मां का दूध नहीं मिल पाता उनकी स्तनपान करने वाले बच्चों की तुलना में निमोनिया से 15 गुना और पेचिश से 11 गुना अधिक मृत्यु की संभावना रहती है। साथ ही स्तनपान नहीं करने वाले बच्चों में मधुमेह, मोटापा, एलर्जी, दमा, ल्यूकेमिया आदि होने का भी खतरा रहता है। स्तनपान करने वाले बच्चों का आईक्यू भी बेहतर होता है।
कुपोषण के रोकथाम के लिए मंत्रालयों का आपसी समन्वय जरुरी है
छह महीने की अवस्था में स्तनपान कराने के साथ पर्याप्त व सुरक्षित पोषण एवं अनुपूरक ठोस खाद्य पदार्थों की शुरुआत, जिसे दो वर्ष या उससे अधिक उम्र तक जारी रखना भी जरुरी है। कुपोषण बहुआयामी समस्या है इसलिए, इससे निपटने के लिए बहुआयामी दृष्टिकोण की जरूरत है। बेहतर बाल स्वास्थ्य के लिए विभिन्न क्षेत्र जैसे कि स्वास्थ्य और परिवार कल्याण, महिला एवं बाल विकास (आईसीडीएस), विद्यालयी शिक्षा, ग्रामीण विकास, पंचायत राज, खाद्य सुरक्षा सभी को एकसाथ मिलकर काम करना पड़ेगा।