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September 15, 2025

बिहार का विष्णु जनार्दन मंदिर, जहां खुद अपना पिंडदान करने जाते हैं लोग

The CSR Journal Magazine
बिहार के गया में एक ऐसा पवित्र मंदिर है, जहां आज से नहीं, बल्कि सदियों से लोग खुद का पिंड दान करने जाते हैं। आमतौर पर श्राद्ध और पिंडदान मृत व्यक्ति की आत्मा की शांति के लिए किया जाता है, लेकिन गया में ज़िंदा व्यक्ति ख़ुद का श्राद्ध अनुष्ठान करते है। यह परंपरा हज़ारों साल पुरानी है और सदियों से चलती आ रही है।

हिंदू धर्म में पिंडदान है अति महत्वपूर्ण

हिन्दू धर्म में पिंड दान करना बेहद ही शुभ कार्य माना जाता है। पौराणिक मान्यता के अनुसार पितृपक्ष में मृत परिजनों का पिंडदान करना सनातन काल से शुभ माना जाता है। पिंड दान के विशेष मौके पर हर दिन हजारों लोग हरिद्वार, अयोध्या, वाराणसी और प्रयागराज में पिंड दान के लिए पहुंचते रहते हैं। लेकिन बिहार में एक ऐसा मंदिर है जिसके बारे में कहा जाता है कि यहां मृत परिजनों के साथ-साथ खुद का पिंड दान करने के लिए भी लोग पहुंचते हैं।

बिहार का गया जिला है पिंडदान का प्रमुख स्थल

बिहार के गया स्थित जनार्दन मंदिर में लोग जीते-जी अपना श्राद्ध और पिंडदान करते हैं। मान्यता है कि ऐसा करने से पापों से मुक्ति मिलती है और आत्मा को शांति प्राप्त होती है। जी हां, जिस मंदिर के बारे में जिक्र कर रहे हैं, वो मंदिर बिहार के गया शहर में मौजूद है। इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि मंदिर परिसर में सिर्फ मृत परिजनों का ही नहीं, बल्कि कोई लोग खुद का श्राद्ध करने पहुंच जाते हैं। यह मंदिर गया के भस्म कूट पर्वत पर मौजूद है।
बिहार का गया शहर पिंडदान के लिए पूरे भारत में सबसे पवित्र जगह है। देश के हर कोने से लोग गया में पिंडदान करने के लिए पहुंचते हैं। गया से कुछ ही दूरी पर मौजूद बोधगया शहर को बुद्ध की नगरी के नाम से भी जाना जाता है। कई लोग पितृ पक्ष के मौके पर गया और बोधगया में मौजूद फल्गु नदी के किनारे पिंडदान करते हैं।

विष्णु जनार्दन मंदिर में करते हैं खुद का श्राद्ध

कहा जाता है कि जिस मंदिर परिसर में लोग खुद का श्राद्ध करते हैं, उसका नाम ‘विष्णु जनार्दन स्वामी मंदिर’ है। मान्यता है कि यहां पिंडदान करने से परिजनों की आत्मा को स्वर्ग में मोक्ष प्राप्त होता है। इसके अलावा पिंडदान करने के बाद वो व्यक्ति धार्मिक तौर पर दान और कर्मकांड करता है, तो उसे आत्मा की शांति मिलती है। इसलिए कई लोग दान और कर्मकांड करके खुद का श्राद्ध करते हैं। मान्यता है कि यहां जो भी खुद का श्राद्ध करने आते हैं, उनके दाहिने हाथ से भगवान विष्णु जनार्दन स्वयं पिंडदान ग्रहण करते हैं।

हज़ारों साल पुराना विष्णु जनार्दन मंदिर

विष्णु जनार्दन स्वामी मंदिर की पौराणिक कथा बेहद ही दिलचस्प है। मंदिर का इतिहास हजारों साल प्राचीन बताया जाता है। मान्यता के अनुसार यह मंदिर 45 वेदियों में से एक वेदी के रूप में विख्यात है। विष्णु जनार्दन स्वामी मंदिर को लेकर कहा जाता है कि इसका जिक्र पुराणों में भी मिलता है। इसलिए यहां काफी अधिक संख्या में लोग पिंडदान करने के लिए पहुंचते हैं। चट्टानों से निर्मित इस मंदिर में जो भी सच्चे मन से पिंडदान करने पहुंचता है उसकी सभी मनोकामना पूर्ण हो जाती है।

पितृपक्ष के दौरान जानिये इस पखवाड़े की रोचक बातें

सनातन धर्म में पितृपक्ष का विशेष महत्व है। इसे वह समयावधि माना जाता है जब हमारे पितृ, यानी पूर्वज, धरती पर आकर अपने वंशजों से जल एवं भोजन की अपेक्षा करते हैं। यह भाद्रपद महीने की पूर्णिमा तिथि से आरंभ होकर अश्विन कृष्ण पक्ष की अमावस्या तक चलता है। इन सोलह दिनों में पूर्वजों के निमित्त श्राद्ध, तर्पण और पिंडदान जैसे कर्मकांड किए जाते हैं। हिंदू धर्म में पितृपक्ष को ऐसी अवधि के रूप में देखा जाता है जब हमारे पूर्वज किसी न किसी रूप में आस-पास ही मौजूद होते हैं। सदियों से यह परंपरा चली आ रही है कि पितृपक्ष या श्राद्ध के सोलह दिनों में पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए कर्म किए जाते हैं। ऐसी मान्यता है कि इस दौरान यदि आप सही नियमों का पालन करते हुए श्राद्ध कर्म करते हैं, पिंडदान और तर्पण करते हैं तो पितरों को शांति मिलती है और उनका आशीर्वाद हमारे जीवन में सदैव बना रहता है। यह समय केवल धार्मिक परंपराओं को आगे बढ़ाने का नहीं होता है बल्कि पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने का भी होता है। पितृपक्ष को श्राद्ध के नाम से भी जाना जाता है जिसका अर्थ होता है श्रद्धा से अर्पित करना, इसी वजह से पितृपक्ष में वंशज अपनी 14 पीढ़ियों तक के लोगों के प्रति आभार व्यक्त करते हैं और उनसे अपने अच्छे जीवन की कामना करते हैं।

पितृपक्ष में कौवे को कराया जाता है भोजन

पितृपक्ष में कौए को भोजन कराना जरूरी माना जाता है। शास्त्रों की मानें तो कौवा पितरों का संदेशवाहक होता है और जब कौए को भोजन कराया जाता है तो यह सीधे पूर्वजों तक पहुंचता है। यही नहीं इस कर्म को लेकर एक धार्मिक मान्यता यह भी है कि यदि आप कौए के लिए भोजन निकालते हैं और वो इसे ग्रहण कर लेता है तो यह सीधे ही आपके पूर्वजों द्वारा ग्रहण किया माना जाता है।

पितृपक्ष और ‘पितर’ शब्द का अर्थ

पितृपक्ष का अर्थ है पूर्वजों का पखवाड़ा यानी कि हिंदू पंचांग के अनुसार यह 16 दिनों की एक ऐसी अवधि होती है जब पूर्वजों को याद करते हुए उनके निमित्त कर्म किए जाते हैं। इसी वजह से इस समय को पूर्वजों यानी पितृ का पखवाड़ा माना जाता है। इस पूरी अवधि को सोरह श्राद्ध, महालया पक्ष, कनागत, श्राद्ध पक्ष जैसे नामों आदि नामों से भी जाना जाता है। वहीं जब हम ‘पितर’ शब्द की बात करते हैं तो यह केवल पिता या दादा नहीं बल्कि पूरी 16 पीढ़ियों के पूर्वजों को समर्पित होता है। पितृ शब्द का अर्थ हमारे पूर्वजों से होता है। पितृपक्ष का समय न केवल धार्मिक आस्था और परंपरा का प्रतीक होता है, बल्कि यह हमारे पूर्वजों के प्रति कृतज्ञता व्यक्त करने और उनके आशीर्वाद से जीवन में सुख-समृद्धि पाने का एक महत्वपूर्ण अवसर भी माना जाता है। इसी वजह से इस दौरान पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए कर्म जरूर करने चाहिए।

क्यूं करते हैं लोग खुद अपना पिंडदान

जिनकी कोई संतान नहीं होती, या परिवार में कोई पिंडदान करने वाला नहीं होता, ऐसे लोग खुद अपना पिंडदान जीते जी कर लेते हैं। वैरागी या सन्यासी भी अपना पिंडदान खुद करते है। यदि कोई व्यक्ति खुद जीते जी अपना पिंडदान कर लेता है, तो उसकी मृत्यु के बाद उसके परिजनों को यह कार्य नहीं करना पड़ता। ऐसा करने वाले व्यक्ति के सभी पितृदोष समाप्त हो जाते है। गया के जनार्दन मंदिर में भगवान विष्णु खुद पिंड ग्रहण करते हैं, इसलिए इस जगह पिंडदान या तर्पण की अत्यधिक मान्यता है।

हवाई, रेल और सड़क मार्ग से यूं पहुंचें विष्णु जनार्दन स्वामी मंदिर

देश के किसी भी हिस्से से गया पहुंचना बहुत ही आसान है। इसके लिए आप ट्रेन, हवाई या सड़क मार्ग से भी पहुंच सकते हैं। आप ट्रेन के माध्यम से आसानी से गया पहुंच सकते हैं। इसके लिए दिल्ली, मुंबई, कोलकाता, चेन्नई आदि कई बड़े शहरों से गया शहर के लिए ट्रेन चलती है। इसके अलावा देश के किसी भी हिस्से से ट्रेन पकड़कर बिहार की राजधानी पटना भी पहुंच सकते हैं। पटना रेलवे स्टेशन से गया की दूरी करीब 118 किमी है।
अगर आप हवाई सफर के माध्यम से गया पहुंचना चाहते हैं, तो आप हवाई अड्डा पहुंच सकते हैं, क्योंकि सबसे पास में पटना हवाई अड्डा ही है। पटना रेलवे स्टेशन और हवाई अड्डा से टैक्सी, कैब या लोकल बस लेकर आसानी से विष्णु जनार्दन स्वामी मंदिर पहुंच सकते हैं।
गया शहर बिहार के लगभग हर शहर से जुड़ा हुआ है। इसके लिए पटना, आरा, छपरा, समस्तीपुर, बेगुसराय, बलिया, भागलपुर, दरभंगा और मधुबनी शहर से सड़क माध्यम से आसानी से पहुंच सकते हैं।
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