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July 1, 2025

‘Garden Of Gods’ मावल्यान्नांग मेघालय- जिसे मिला है एशिया के सबसे स्वच्छ गांव का खिताब 

दुनिया में अलग-अलग धर्मों के कई धार्मिक स्थल हैं, जहां श्रद्धालु अपने ईष्ट की मौजूदगी का एहसास करते हैं और माथा टेकते हैं। लेकिन कुछ जगहें ऐसी भी हैं, जिनकी खूबसूरती और साफ-सफाई स्वर्ग जैसी लगती है, और कहा जाता है कि जहां स्वच्छता होती है, वहां ईश्वर का वास होता है। बहुत कम लोगों को पता है कि दुनिया में एक ऐसा भी गांव है जिसे ‘भगवान का बगीचा’ कहते हैं। आइए आज Garden Of Gods की सैर करते हैं।

मेघालय का Garden Of Gods- मावल्यान्नांग गांव 

महज़ कुछ डिग्रियां किसी के समझदार या परिपक्व होने की गारंटी नहीं होतीं, बल्कि असल में पढ़ा-लिखा वह होता है जो इंसान होने का मतलब समझे और अपने आस-पास साफ-सफाई रखे। भारत में स्थित एक गांव पूरी दुनिया में अपनी इसी खासियत के लिए जाना जाता है। इस गांव को एशिया के सबसे साफ गांव का दर्जा मिला है। बता दें कि मावल्यान्नांग नाम के इस गांव की सिर्फ यही खासियत नहीं है। हरी भरी धरती, लहलहाती फसल, पर्यावरण अनुकूल जीवन शैली, अपराध मुक्त समाज और उच्च साक्षरता दर, यदि किसी एक जगह में मिल जाए तो कोई क्यों न वहां का वासी होना चाहे! मेघालय के मावल्यान्नांग गांव में आने वाले अधिकतर पर्यटक इसी उम्मीद में रहते हैं कि किसी तरह इस गांव के वासी हो जाएं। इस गांव को युनेस्को ने भी सराहा है। इस गांव में 100 प्रतिशत साक्षरता है और पढ़े-लिखे होने के बावजूद यहां के लोग कृषि को प्राथमिकता देते हैं। मावल्यान्नांग सुपारी की खेती के लिए जाना जाता है। यहां के लोग सरकार के ऊपर निर्भर नहीं हैं, वे खुद ही अपने गांव को साफ रखना अपना कर्तव्य समझते हैं। हर सुबह महिलाओं का एक दल, जिसमें से हर किसी को 3 डॉलर यानी लगभग 200 रुपये, रोज के दिए जाते हैं, स्वच्छता के लिए गांव में निकलता है। बच्चों से लेकर बूढ़ों तक सब अपने गांव को साफ रखने के लिए हर संभव कोशिश करते हैं। यही वजह है मावल्यान्नांग को ‘भगवान का बगीचा’ भी कहा जाता है।

 परंपरा के अनुसार बेटियां होती हैं वारिस

मावल्यान्नांग में लगभग 15 परिवार रहते हैं। यहां रहने वाले अधिकतर लोग खासी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं। खासी एक जनजाति है जो भारत के मेघालय, असम और बांग्लादेश के कुछ क्षेत्रों में रहते हैं। खासी समुदाय की परंपरा के अनुसार, मावल्यान्नांग में सम्पत्ति और धन दौलत मां अपनी सबसे बड़ी बेटी को दे देती है और वह अपनी मां का उपनाम आगे बढ़ाती है। विवाह होने पर पति ससुराल में रहता है। अपनी इस परंपरा के कारण  मावल्यान्नांग गांव समाज में महिलाओं के प्रति सम्मान और समान अधिकार का एक ख़ूबसूरत उदाहरण पेश करता है। यहां पर आपको सुंदर पानी के झरने, वृक्षों की लंबी लंबी जड़ों से बने आकर्षक पुल मिलेंगे, जो आपको आश्चर्यचकित कर डालेंगे। मावल्यान्नांग के लोग इस बात की मिसाल हैं कि, कैसे अपने वातावरण को साफ रखा जाता है। यहां आपको जगह-जगह पर बांस से बने कूड़ेदान मिल जाएंगे। यहां के लोग कूड़े को भी जाया नहीं जाने देते। ज़मीन में गड्ढा कर कूड़े को डालकर उसे खाद बना दिया जाता है जिसे खेती के लिए इस्तेमाल किया जाता है।

गांव के हर घर में शौचालय

क्या आप विश्वास करेंगे कि इस गांव के हर घर में साल 2007 से शौचालय है! यहां कोई भी ग्रामीण खुले में शौच नहीं करता। गांव में आपको हर तरफ बांस से बने डस्टबिन देखने को मिल जाएंगे। ये पेड़ के नीचे ही रखी गई हैं, जिससे पेड़ की सूखी पत्तियां सीधे उसी डस्टबिन में गिरें। एक और चौंकाने वाली बात ये है कि जहां शहरों में आपको प्लास्टिक की थैलियां इधर-उधर फेंकी हुई दिख जाएंगी, यहां पर प्लास्टिक बैन है। सिगरेट पर भी पाबंदी है। नियम इतने सख्त हैं कि इन चीजों का ध्यान न रखने वालों को सजा होती है। यहां के रास्ते और सड़क पूरी तरह साफ दिखाई देते हैं। यहां के पेड़ पौधों का रंग निखरा हुआ है क्योंकि यहां प्रदूषण नहीं है। यहां कई ऐसी खूबियां हैं जो इसे एशिया का सबसे स्वच्छ गांव बनाती हैं।

गांव के लोग खुद बनाते हैं खाद

रिपोर्ट के मुताबिक ये गांव आत्मनिर्भर भी है। वो ऐसे कि खाद के लिए गांव के लोगों को किसी बाहरी जरिए पर निर्भर नहीं होना पड़ता। वो अपनी खेती के लिए खाद खुद बनाते हैं। कूड़े से कंपोस्ट तैयार करते हैं। जमीन में बड़ा गड्ढा बना है, जिसमें सारा कूड़ा डाल दिया जाता है। इसी से खाद बनती है। लोग सिर्फ घर में ही झाड़ू नहीं लगाते, घर के बाहर, सड़क पर भी लगा देते हैं। गांव में खासी जनजाति के लोग रहते हैं। यहां पर मांओं को प्राथमिकता मिलती है, इस वजह से यहां के घर मात्र सत्ता का पालन करते हैं।

धरती पर अजूबा- मावल्यान्नांग

इस गांव को देख आप भी हैरत में रह जाएंगे और लगेगा कि यकीनन यह पृथ्वी पर किसी अजूबे से कम नहीं है। जहां स्वच्छता होती है भगवान भी वहीं विराजते हैं और शायद इसी वजह से इस गांव को ‘भगवान का अपना बगीचा’ के नाम से प्रसिद्धि मिली हुई है। मावल्यान्नांग (Mawlynnong) गांव का लैंडमार्क है एपिफपनी का चर्च, जोकि 100 साल पुराना है, लेकिन आज भी इसका महत्व और खूबसूरती वैसी की वैसी ही है।

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