वो बिना थके, बिना रुके, बिना खुद की परवाह किये, बिना किसी भेदभाव के, बिना किसी सवाल के, बस आसमान से आते हैं और केरल बाढ़ में फंसे हुए लोगो को उठा ले जाते है। वो इंसान है लेकिन फिर भी वो मसीहा है, वो भगवान है, वो देवदूत है, वो हमारे देश के जवान है। केरल में क़यामत जारी है, प्रकृति अपना विकराल रूप अख्तियार किये हुए है, लेकिन हमारे जवानों के हौसले भी बुलंद है। प्रकृति इंसानों पर कहर बरपा रही है, अब तक के इतिहास में केरल की सरजमीं ने इतने बड़े पैमाने पर तबाही का मंजर नहीं देखा था लेकिन अब सैलाब में केरल डूब रहा है, केरल में बर्बादी के निशान हर जगह देखे जा सकते है। जहाँ तहाँ भूस्खलन, टूटी सड़कें, पुल और बर्बादी के निशां इस कदर है कि आसमान से नज़र सिर्फ और सिर्फ जलमग्न धरातल दिखाई देता है। केरल में नीचे यमदूत और ऊपर देवदूत है। केरल अपनी खूबसूरती के लिए जानी जाती है, एक बार वहां जाएं तो लौटने का मन नहीं करता है। केरल को ‘भगवान कादेश’ कहा जाता था। प्रकृति ने केरल पर भरपूर कृपा बरसाई है। लेकिन अब यही प्रकृति केरल में कहर बरपा रही है। मॉनसून में केरल के हरे-भरे पहाड़ों के ऊपर छाए बादल ,कभी बादल आपको छूकर गुजर जाएंगे तो कभी बारिश और ठंडी हवा गालों को सहलाकर जाएगी। लेकिन इस बार हुई भयावह बारिश ने सबको रुला दिया। केरल में हाहाकार मचा है। आम जनजीवन बुरी तरह से प्रभावित है। हजारों मकान बाढ़ के पानी में समा गए हैं, सड़कें धस गई,चारों ओर केवल पानी ही पानी नजर आ रहा है।
“बिखर रहा था इस चोट से वो जर्रा जर्रा, देख साहिल मैं उस पार रास्ता बनाता रहा” कुछ ऐसा ही केरल पर आई आपदा से निपटने के लिए हमारी सेना के जवान के हौसले है। लोगो को मुसीबत से निकालने के लिए हमारे जवान ना दिन देख रहे है और ना रात, ना अपना ख्याल रख रहे है, बल्कि लगे है आखिरी उस गाँव तक पहुँचने में जहाँ एक जान बचने की भी उम्मीद हो। वायु सेना, थल सेना, नेवी, कोस्ट गार्ड के तमाम जवान अबतक लाखों की जिंदगियां बचाकर सुरक्षित जगहों पर पहुँचा चुके है। 6 लाख लोग राहत शिबिरों में है, 40 हेक्टेयर फसलें बर्बाद हो गई, 16 हज़ार किलोमीटर लंबी सड़कें खराब होगई, 134 पुल क्षतिग्रस्त हो गए। देश की सरकारें भी केरल की मदद के लिए युद्ध स्तर पर काम कर रही है, केंद्र तो केंद्र राज्य सरकारें भी केरल में राहत सामग्री पहुंचा रही है। करोड़ों रुपये राहत के लिए केरल को दिए जा रहे है लेकिन इन सबके बाद सवाल ये है कि केरल की क़यामत में जिन्होंने अपना आशियाना खो दिया, जिन्होंने अपनों को खो दिया, जिनका सब कुछ खत्म हो गया क्या उनतक ये राहत का पैसा पहुँच पायेगा। खुद देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी ये मानते थे कि केंद्र अगर 100 रुपये लोगो तक भेजता है तो जनता तक पहुँचते पहुँचते 100 रुपये में 10 रुपये ही बच पाता है, ऐसे में क्या उम्मीद लगाई जाय।
बहरहाल इस आफत की घडी में सरकार से पहले जनता ने ही फ़रिश्ते बन मदद के हाथ आगे बढ़ाये, ना सिर्फ केरल की जनता बल्कि देश के कोने कोने से मदद के तौर पर राहत सामग्री भेजनी शुरू हो गई। कोई बिस्कुट, कोई कपडे, तो कोई दवाईयां बाढ़ पीड़ितों तक पहुंचा रहा है। कई एनजीओ बड़े स्तर पर केरल में बाढ़ पीड़ितों की मदद के लिए सामने आये है। गूंज, आईडीएफ जैसे तमाम एनजीओ ने तो बाकायदा लोगो से अपील की है कि वो सामने आये और जरुरी सामान दान दे ताकि ये जरुरी सामान राहत के लिए केरल पहुँचाया जा सकें। रेलवे ने भी केरल के लिए पार्सल फ्री कर दी है। केरल में बाढ़ की वजह से महाप्रलय का मंजर हर तरफ नज़र आ रहा है यहां जल प्रलय रुकने का नाम नहीं ले रही है। हर तरफ सिर्फ तबाही ही नज़र आती है। हालांकि, आज थोड़ी राहत भरी खबर है और रेड अलर्ट हटा लिया गया है, मौसम विभाग ने भी अगले पांच दिनों में बारिश में कमी की संभावना जताई है। बहरहाल इन सब के बीच कई सवाल है, देश के जवान मुसीबत में हमारे लिए फ़रिश्ते साबित होते है लेकिन जब उनपर आंच आती है तब हम हाथ पर हाथ क्यों धरे रहते है। सवाल ये भी कि करोड़ों रुपये सरकारी तिजोरी से मदद के लिए निकले तो है लेकिन सही पीड़ित तक ये पैसे पहुंचेंगे कैसे।