Cornell University (कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने ऐसे माइक्रोचिप का विकास किया है जिसे माइक्रोवेव तरंगों (Microwaves) द्वारा संचालित किया गया है। इसे उन्होंने “माइक्रोवेव न्यूरल नेटवर्क” (Microwave Neural Network, MNN) कहा है। यह चिप बेहद कम बिजली (200 मिलीवॉट से भी कम) में काम करती है, जबकि पारंपरिक CPUs में आमतौर पर कई दहाई वॉट या सौ वॉट से अधिक बिजली लगती है।
Microwave-Powered Computer Chip– स्पीड दुगुनी, बिजली-खपत आधी
तकनीकी जगत में एक ऐतिहासिक उपलब्धि दर्ज करते हुए वैज्ञानिकों ने दुनिया का पहला “माइक्रोवेव-चालित कंप्यूटर चिप” (Microwave-Powered Computer Chip) तैयार किया है। यह चिप न केवल पारंपरिक प्रोसेसरों से कई गुना तेज़ है, बल्कि ऊर्जा की खपत में भी बेहद किफायती साबित हुई है। यह चिप अमेरिका की प्रसिद्ध कॉर्नेल यूनिवर्सिटी (Cornell University) के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित की गई है। इसे “माइक्रोवेव न्यूरल नेटवर्क” (Microwave Neural Network) नाम दिया गया है।
कैसे करता है काम Microwave-Powered Computer Chip
यह नया माइक्रोचिप डिजिटल इलेक्ट्रॉनिक लॉजिक पर नहीं, बल्कि माइक्रोवेव तरंगों के माध्यम से काम करता है। जहां पारंपरिक CPU में इलेक्ट्रॉनों की गति से डेटा प्रोसेस होता है, वहीं इस चिप में माइक्रोवेव तरंगें डेटा को वहन और विश्लेषित करती हैं। शोधकर्ताओं के अनुसार, यह तकनीक तरंगों के फेज़ (Phase), फ्रीक्वेंसी (Frequency) और एम्प्लीट्यूड (Amplitude) को बदलकर जटिल गणनाएँ करने में सक्षम है। इस प्रक्रिया में डेटा को डिजिटल से एनालॉग रूप में बदलने की ज़रूरत नहीं पड़ती जिससे गति कई गुना बढ़ जाती है और बिजली की खपत घट जाती है।
बेहद तेज़ और ऊर्जा कुशल- AI तकनीक में क्रांति
कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के अनुसार, यह माइक्रोवेव चिप 10 से 15 गीगाहर्ट्ज़ तक की गति पर काम कर सकती है, जबकि सामान्य CPU की गति 3–5 गीगाहर्ट्ज़ तक सीमित होती है। सबसे खास बात यह है कि यह चिप केवल 0.2 वॉट (200 मिलीवॉट) ऊर्जा में कार्य करती है, जबकि आधुनिक लैपटॉप या डेस्कटॉप प्रोसेसर 50 से 125 वॉट तक बिजली खींचते हैं। शोधकर्ताओं का कहना है कि इस तकनीक से भविष्य में ऐसे AI डिवाइस, स्मार्ट सेंसर, ड्रोन और मोबाइल सिस्टम तैयार किए जा सकेंगे जो क्लाउड से जुड़े बिना खुद निर्णय ले सकेंगे। साथ ही, चूंकि यह माइक्रोवेव आवृत्ति पर काम करता है, इसलिए यह वायरलेस नेटवर्क, रडार सिस्टम और 6G तकनीक में भी एक बड़ा कदम साबित हो सकता है। कॉर्नेल की टीम ने अपने प्रयोगों में दिखाया कि यह चिप वायरलेस सिग्नल्स की पहचान (Classification) में 88 प्रतिशत से अधिक सटीकता के साथ कार्य कर सकती है।
अभी शोध के चरण में माइक्रोवेव चिप
फिलहाल यह माइक्रोवेव चिप प्रोटोटाइप स्तर पर है। इसे व्यावसायिक उत्पादन में लाने के लिए वैज्ञानिकों को कई तकनीकी चुनौतियों का सामना करना होगा। कॉर्नेल की प्रमुख शोधकर्ता डॉ. एलिसा बाल और उनकी टीम ने कहा कि आने वाले वर्षों में यह तकनीक क्वांटम और AI प्रोसेसिंग के बीच सेतु का काम करेगी।
भारत में संभावनाएं
विशेषज्ञों का मानना है कि यह खोज भारत के लिए भी महत्वपूर्ण है। IIT और DRDO जैसी संस्थाएं पहले से ही माइक्रोवेव इंजीनियरिंग पर काम कर रही हैं। यदि यह तकनीक देश में अपनाई जाए तो रक्षा, अंतरिक्ष संचार, ऊर्जा-कुशल प्रोसेसर और स्मार्ट डिवाइस निर्माण के क्षेत्र में बड़ा बदलाव लाया जा सकता है। माइक्रोवेव से चलने वाला यह कंप्यूटर चिप भविष्य के उस युग की झलक है जहां कंप्यूटिंग, संचार और कृत्रिम बुद्धिमत्ता, तीनों एक ही तरंग पर सवार होंगे। यह खोज दर्शाती है कि विज्ञान अब इलेक्ट्रॉनिक सीमाओं को पार कर तरंगों के मस्तिष्क की दिशा में बढ़ चला है।
माइक्रोवेव-चालित कंप्यूटर चिप भविष्य की दिशा में अगला कदम
कंप्यूटर चिप तकनीक पिछले कई दशकों से सिलिकॉन आधारित डिजिटल लॉजिक सर्किट्स पर निर्भर रही है। ये ट्रांजिस्टरों के ऑन-ऑफ (1-0) स्विचिंग से काम करते हैं। परंतु जैसे-जैसे ट्रांजिस्टर का आकार नैनोमीटर स्तर तक घटा, ऊर्जा खपत, तापमान और सिग्नल डिले की सीमाएं सामने आईं।
कॉर्नेल यूनिवर्सिटी के इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग विभाग के वैज्ञानिकों ने इसका एक बिल्कुल नया समाधान खोजा, माइक्रोवेव तरंगों (Microwave Waves) का उपयोग सीधे कंप्यूटेशनल प्रोसेसिंग के लिए ! यह विचार इस आधार पर टिका है कि अगर “तरंगों” (Waves) का आपसी हस्तक्षेप (Interference) और चरण (Phase) नियंत्रित किया जाए, तो वही लॉजिक प्रोसेसिंग कर सकता है जो पारंपरिक CPU करता है, पर कहीं तेज और ऊर्जा-कुशल तरीके से।
तकनीकी संरचना: यह चिप कैसे बनी है
इस माइक्रोवेव न्यूरल नेटवर्क (Microwave Neural Network – MNN) चिप में तीन मुख्य तकनीकी हिस्से हैं:
1: Microwave Waveguides (तरंग मार्ग) ये धातु के सूक्ष्म चैनल होते हैं जो माइक्रोवेव सिग्नल्स को ले जाते हैं। हर Waveguide एक “कृत्रिम न्यूरॉन” की तरह कार्य करता है। जब कई Waveguides को आपस में जोड़ा जाता है, तो वे मिलकर “इलेक्ट्रोमैग्नेटिक नेटवर्क” बनाते हैं, यानी एक भौतिक न्यूरल नेटवर्क।
2: Phase Tuners (चरण नियंत्रक) हर सिग्नल का “फेज” यानी उसका चरण बदलकर वैज्ञानिक सटीक पैटर्न पहचान सकते हैं। इसे मानवीय मस्तिष्क के “सिनैप्टिक वेट्स” की तरह समायोजित किया जा सकता है।
3: Detector Array (सिग्नल रिसीवर) यह आउटपुट सिग्नल को कैप्चर करता है और तय करता है कि कौन-सा इनपुट किस वर्ग (Class) से मेल खाता है। चिप ने वायरलेस सिग्नल्स की पहचान में 88–90 प्रतिशत तक सटीकता हासिल की है।
संभावित व्यावसायिक उपयोग
1: AI और Edge Computing– माइक्रोवेव चिप्स छोटे AI-डिवाइसेस में “ऑन-डिवाइस” सीखने और निर्णय क्षमता ला सकती हैं। स्मार्टफोन, ड्रोन, और सेंसर सिस्टम बिना इंटरनेट या क्लाउड कनेक्शन के रियल-टाइम निर्णय ले सकेंगे।
2: वायरलेस कम्युनिकेशन (5G/6G नेटवर्क)- माइक्रोवेव आवृत्तियों पर कार्य करने के कारण यह चिप सीधे रेडियो सिग्नल्स को प्रोसेस कर सकती है। भविष्य के 6G नेटवर्क में यह “कम्युनिकेशन-और-कंप्यूटेशन-फ् यूजन” (communication-computation fusion) का आधार बन सकती है।
3: रक्षा और रडार सिस्टम– तेज़ सिग्नल प्रोसेसिंग और न्यूनतम ऊर्जा की आवश्यकता के कारण रडार, सोनार और उपग्रह निगरानी उपकरणों में इसका उपयोग संभव है।
4: क्वांटम कंप्यूटिंग से जुड़ाव– माइक्रोवेव तरंगें पहले से ही क्वांटम बिट्स (Qubits) को नियंत्रित करने में प्रयोग की जा रही हैं। भविष्य में ये चिप्स “क्वांटम-क्लासिकल हाइब्रिड” सिस्टम का हिस्सा बन सकती हैं।
माइक्रोवेव चिप आविष्कार के प्रमुख वैज्ञानिक
प्रोफेसर अली निकनेजाद (Ali Niknejad)- परियोजना प्रमुख, कॉर्नेल यूनिवर्सिटी
डॉ. एलिसा बाल (Alyssa Bal)- प्रमुख शोधकर्ता जिन्होंने चिप का प्रोटोटाइप डिज़ाइन किया
शोध Nature Electronics Journal (2025) में प्रकाशित हुआ। अभी चिप का आकार बड़ा और लागत ऊंची है। आउटपुट सटीकता को सुधारना आवश्यक है ताकि यह जटिल AI मॉडल चला सके। पारंपरिक डिजिटल सर्किट्स के साथ एकीकृत (Integration) करना चुनौतीपूर्ण है, क्योंकि दोनों की कार्यप्रणाली अलग है।
भारत और विश्व में संभावनाएं
भारत में IIT-बॉम्बे, IISc बेंगलुरु और DRDO जैसी संस्थाएं पहले से “RF एवं माइक्रोवेव इंजीनियरिंग” पर काम कर रही हैं। यदि यह तकनीक भारत में अपनाई जाए तो रक्षा प्रणालियों (रडार/संचार) में आत्मनिर्भरता बढ़ेगी। कम बिजली वाले AI चिप्स “मेड-इन-इंडिया” IoT उपकरणों में लग सकेंगे। ग्रामीण क्षेत्रों के लिए एज-कंप्यूटिंग नेटवर्क सस्ते और कुशल बन सकते हैं।
कॉर्नेल की यह खोज यह दर्शाती है कि कंप्यूटिंग का भविष्य अब केवल डिजिटल लॉजिक तक सीमित नहीं रहेगा। एनालॉग माइक्रोवेव-चालित चिप्स हमें ऐसे युग की ओर ले जा सकती हैं जहां डेटा, कम्युनिकेशन और इंटेलिजेंस एक ही तरंग पर सवार होंगे।
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