इंदौर से सनावद जा रही बस में मिला 15 दिन का मासूम बच्चा, समाज के सामने एक गहरा सवाल छोड़ गया है। आखिर वह कौन सी मजबूरी या संवेदनहीनता है, जो आज माता-पिता को अपने जिगर के टुकड़े को यूं बेसहारा छोड़ने पर मजबूर कर रही है? अब तक समाज में अक्सर ऐसी घटनाएं तब सामने आती थीं जब कोई नवजात लड़की मिलती थी। लोग यह कहकर दुख जताते थे कि “बेटी को बोझ समझा गया”। लेकिन इस बार मामला एक लड़के का है, यानी यह अब ‘लड़का या लड़की’ का नहीं, बल्कि इंसानियत के पतन का सवाल है।

बस में सीट के नीचे मिला नवजात बच्चा

इंदौर से सनावद जा रही एक यात्री बस में गुरुवार देर शाम एक हैरान कर देने वाली घटना सामने आई। बस की पिछली सीट पर यात्रियों को एक 15 दिन का नवजात बच्चा मिला, जिसके साथ न तो कोई परिजन था और न ही कोई पहचान का सामान। बच्चे के रोने की आवाज सुनकर जब यात्रियों ने सीट के नीचे झांका, तो सबके होश उड़ गए। सूत्रों के अनुसार, यह बस इंदौर से शाम करीब 6 बजे सनावद के लिए रवाना हुई थी। रास्ते में जब बस खंडवा रोड पार कर रही थी, तभी एक महिला यात्री ने बच्चे के रोने की आवाज सुनी। उसने जब पास जाकर देखा तो एक कपड़े में लिपटा हुआ नवजात बच्चा सीट के नीचे रखा था। चालक और परिचालक को इसकी सूचना दी गई, जिसके बाद बस को तुरंत नजदीकी पुलिस चौकी ले जाया गया।

बाल कल्याण समिति के सुपुर्द किया गया मासूम, CCTV खंगालने में जुटी पुलिस

बस कर्मियों ने बताया कि इंदौर से सवार कुछ यात्रियों ने बीच रास्ते उतरने की बात कही थी, लेकिन किसी ने बच्चे को लेकर बस में चढ़ते हुए नहीं देखा। पुलिस को शक है कि किसी ने जानबूझकर बच्चे को छोड़ दिया है। बच्चे को तुरंत नजदीकी सरकारी अस्पताल में भर्ती कराया गया, जहां डॉक्टरों ने बताया कि शिशु लगभग 15 दिन का है और पूरी तरह स्वस्थ है। फिलहाल बच्चे को बाल कल्याण समिति (CWC) के संरक्षण में दिया गया है। खजराना थाने की पुलिस ने मामला दर्ज कर जांच शुरू कर दी है। बस स्टैंड और आसपास लगे सीसीटीवी कैमरों की मदद से यह पता लगाने की कोशिश की जा रही है कि किसने बच्चे को बस में छोड़ा। बस स्टाफ और यात्रियों के बयान भी लिए जा रहे हैं।

मानवता की मिसाल बने यात्री

बस में सवार यात्रियों ने बच्चे के लिए कपड़े और दूध की व्यवस्था की। एक महिला यात्री ने बच्चे को अपनी गोद में लेकर शांत कराया। लोगों ने इसे “भगवान की देन” बताते हुए पुलिस से बच्चे की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की। पुलिस का मानना है कि यह मामला अवैध रूप से जन्मे या आर्थिक रूप से असमर्थ माता-पिता द्वारा बच्चे को त्यागने का हो सकता है। हालांकि, वास्तविक कारण जांच के बाद ही स्पष्ट होगा। इंदौर पुलिस ने आम जनता से अपील की है कि यदि किसी को इस बच्चे या उसके माता-पिता के बारे में कोई जानकारी हो, तो तुरंत 100 नंबर या नजदीकी थाने में संपर्क करें।

मानवता की मिसाल, संवेदनहीनता की तस्वीर

यह घटना एक ओर जहां मानवता की करुण तस्वीर दिखाती है, वहीं समाज में बढ़ती संवेदनहीनता पर भी सवाल खड़े करती है। जब मासूम बेटा भी छोड़ा जाने लगा- संवेदनाओं का पतन या समाज की विफलता? इंदौर-सनावद बस में मिला 15 दिन का शिशु हमें याद दिलाता है कि अब सवाल “बेटी बचाओ” से आगे बढ़ चुका है। अब “इंसानियत बचाओ” की जरूरत है।

अब नहीं रहा बेटे- बेटी का फ़र्क़

इंदौर से सनावद जा रही बस में सीट के नीचे मिला 15 दिन का मासूम बच्चा, समाज के विवेक को झकझोर देने वाली घटना है। अब यह कहना कठिन है कि हम केवल “बेटियों” के प्रति ही कठोर हैं, क्योंकि इस बार जिसे त्यागा गया, वह एक ‘बेटा’ था। इसका अर्थ है कि संवेदनहीनता अब लिंग की सीमाओं से भी परे पहुंच चुकी है। कभी समाज में कहा जाता था कि लड़की बोझ मानी जाती है, इसलिए उसे छोड़ दिया गया। पर जब बेटा भी इसी अंधकारमय भाग्य का शिकार बनने लगे, तो यह संकेत है कि समस्या अब मानसिक और नैतिक पतन की है, जहां जीवन की कीमत घटती जा रही है और इंसान अपने ही रक्त संबंधों से मुंह मोड़ने लगा है।

जिम्मेदारी से भागता समाज

माता-पिता का यह कदम केवल व्यक्तिगत असफलता नहीं, बल्कि सामाजिक विफलता का प्रतीक है। यह वही समाज है जहां विवाहेतर जन्म, गरीबी, या पारिवारिक अस्वीकृति जैसी स्थितियों में माता-पिता को सहायता देने के बजाय उन्हें “कलंक” माना जाता है। ऐसे माहौल में कुछ लोग चरम कदम उठाने पर मजबूर हो जाते हैं। पर क्या कोई भी मजबूरी इतनी बड़ी हो सकती है कि एक नवजात की जान दांव पर लगा दी जाए? यदि हमारे समाज में सच्चे अर्थों में करुणा और सहानुभूति जीवित होती, तो शायद यह बच्चा आज किसी मां की गोद में होता, न कि बस की सीट के नीचे।

सरकार और समाज की भूमिका

भारत में कई राज्यों में ‘क्रैडल बेबी योजना’ जैसी व्यवस्थाएं हैं जहां कोई भी मां या परिवार अपने बच्चे को सुरक्षित रूप से छोड़ सकता है, ताकि उसकी जान बचाई जा सके। लेकिन दुख की बात है कि इन योजनाओं की जानकारी बहुत कम लोगों तक पहुंचती है। प्रशासन को चाहिए कि ऐसी पहलें व्यापक प्रचार के साथ ग्रामीण और शहरी दोनों स्तरों तक पहुंचाई जाएं। साथ ही, समाजसेवी संस्थाओं और धर्मस्थलों को भी आगे आना चाहिए ताकि जो माता-पिता किसी भी कारण से बच्चे का पालन नहीं कर सकते, वे उसे सुरक्षित हाथों में सौंप सकें।

कानून के साथ करुणा भी जरूरी

ऐसे मामलों में कानून सख्त होना चाहिए, पर उससे भी ज्यादा जरूरी है मानवता का पुनर्जागरण! जब लोग अपने ही खून के रिश्ते से डरने लगें, तो यह संकेत है कि हमें शिक्षा, जागरूकता और भावनात्मक समर्थन की दिशा में गहराई से काम करना होगा। यह बच्चा तो सौभाग्य से सुरक्षित मिल गया, पर कितने ऐसे मासूम होंगे जो अंधेरे में खो जाते हैं? यह प्रश्न हम सबके लिए है, क्या हम केवल खबरें पढ़कर दुखी होंगे, या ऐसा समाज बनाएंगे जहां कोई भी मां-बाप अपने बच्चे को छोड़ने पर मजबूर न हों?
अब समय आ गया है कि “बेटी बचाओ” के साथ-साथ “इंसानियत बचाओ” भी हमारी प्राथमिकता बने, क्योंकि जब बेटा या बेटी छोड़ दिए जाएं, तब यह केवल पारिवारिक नहीं, सांस्कृतिक पराजय होती है।
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