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December 20, 2025

12 साल से कोमा में रह रहे बेटे के इलाज के लिए पिता ने बेच दिया घर, अब Supreme Court से इच्छामृत्यु की गुहार

The CSR Journal Magazine
गाजियाबाद के 31 वर्षीय हरीश राणा 2013 में अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान चंडीगढ़ में पीजी की चौथी मंजिल से गिर गए थे। सिर में गंभीर चोट लगने के बाद हरीश कभी होश में नहीं आए। पिछले 12 वर्षों से वे केवल सांसों पर जीवित हैं, लेकिन उनके लिए सामान्य जिंदगी लगभग ठहर चुकी है। उन्हें बोलने, चलने या अपनी तकलीफ व्यक्त करने की कोई क्षमता नहीं है। खाने-पीने के लिए पाइप और पेशाब के लिए बैग का इस्तेमाल करना पड़ता है।

परिवार की पूरी जिंदगी बदल गई

हरीश की हालत ने उनके माता-पिता की पूरी दुनिया बदल दी। पिता अशोक राणा ने बेटे का इलाज कराने के लिए अपना घर बेच दिया, नौकरी छोड़ दी और गुजारा करने के लिए सैंडविच और स्प्राउट बेचने जैसे काम करने पड़े। उन्हें अब नर्स की सेवाओं के लिए भी खर्च उठाना मुश्किल हो रहा है, इसलिए उन्होंने और उनकी पत्नी ने खुद बेटे की देखभाल शुरू की।

सुप्रीम कोर्ट में लगातार याचिकाएं

हरीश के माता-पिता ने 2018 और 2023 में सुप्रीम कोर्ट से उनके लिए पैसिव यूथेनेशिया यानी इच्छामृत्यु की अनुमति मांगी थी, लेकिन दोनों बार अदालत ने इन याचिकाओं को खारिज कर दिया। इस बार अदालत ने AIIMS से ताज़ा मेडिकल रिपोर्ट मंगवाई, जिसमें साफ तौर पर कहा गया कि हरीश के ठीक होने की संभावना न के बराबर है।

सुप्रीम कोर्ट का रुख

जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस के.वी. विश्वनाथन की बेंच ने इस रिपोर्ट को ‘बहुत दुखद’ बताया। अदालत ने माता-पिता से बात करने का फैसला किया है और 13 जनवरी को उन्हें अंतिम बार अपनी इच्छा स्पष्ट करने के लिए बुलाया है। अदालत ने कहा कि अब इस मामले में अंतिम फैसला लेने का समय आ गया है।

वकीलों और मेडिकल बोर्ड की भूमिका

सुप्रीम कोर्ट ने दो वकीलों को हरीश के माता-पिता और भाई-बहनों से मिलने का निर्देश दिया है। अदालत ने AIIMS की मेडिकल रिपोर्ट को अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल और हरीश के पिता की वकील को सौंप दिया है। फैसले से पहले कोर्ट सभी पहलुओं, जैसे परिवार की इच्छा और मेडिकल रिपोर्ट, का विस्तार से अध्ययन करेगी।

पैसिव यूथेनेशिया की प्रक्रिया

पैसिव यूथेनेशिया में मरीज का जीवन बचाने वाले उपकरण को हटाकर या उपचार रोककर प्राकृतिक मृत्यु को स्वीकार किया जाता है। सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों के अनुसार, इसे लागू करने के लिए प्राइमरी और सेकंडरी मेडिकल बोर्डों की सहमति आवश्यक है। अगर रिपोर्टों में विरोधाभास होता है, तो कोर्ट एक स्वतंत्र समिति का गठन कर सकती है, जिसमें अनुभवी डॉक्टर शामिल होंगे।
हरीश राणा का मामला केवल कानून का सवाल नहीं है, बल्कि इंसानियत, ज़िंदगी और मौत के बीच का निर्णायक मोड़ है। कोर्ट यह तय करेगी कि क्या हरीश को उनकी पीड़ा से मुक्ति मिलेगी या उन्हें जीवन के इस अचूक इंतजार में रखा जाएगा। 
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