देश में किसानों की आत्महत्या को लेकर एक अहम और चौंकाने वाला खुलासा सामने आया है। पुणे के बिजनेसमैन प्रफुल्ल सारडा द्वारा दायर एक RTI (Right to Information) से पता चला है कि 2004 से 2022 के बीच कुल 2,58,622 किसानों ने आत्महत्या की, जिनमें से NDA शासन काल (2015 से 2022) में आत्महत्या की घटनाएं UPA काल (2004 से 2014) की तुलना में लगभग 50% कम रही हैं। हालांकि आंकड़े ये संकेत जरूर देते हैं कि हालात में कुछ सुधार हुआ है, लेकिन 2.5 लाख से ज़्यादा आत्महत्याओं का यह आंकड़ा आज भी देश की कृषि व्यवस्था की गहराई से चल रही पीड़ा को उजागर करता है।
आत्महत्या के ‘हॉटस्पॉट’ वही, हालात बदले नहीं UPA NDA Farmer Suicide
RTI में जो आंकड़े सामने आए हैं, वो इस प्रकार हैं –
UPA काल (2004–2014) –
कुल किसान आत्महत्याएं – 1,70,505
महाराष्ट्र: 40,852
आंध्र प्रदेश: 23,396
कर्नाटक: 20,490
मध्य प्रदेश: 14,321
NDA काल (2015–2022) –
कुल किसान आत्महत्याएं: 88,117
महाराष्ट्र: 31,492
कर्नाटक: 16,782
आंध्र प्रदेश: 7,100
मध्य प्रदेश: 6,799
बिहार और पश्चिम बंगाल जैसे राज्यों में 2015 से 2022 के बीच किसान आत्महत्या शून्य रही, लेकिन महाराष्ट्र, कर्नाटक, आंध्र प्रदेश और मध्य प्रदेश आज भी आत्महत्या के मुख्य केंद्र बने हुए हैं।
“जय जवान जय किसान” के देश में किसान कर रहा आत्महत्या
The CSR Journal से ख़ास बातचीत करते हुए प्रफुल्ल सारडा ने कहा कि, “2.58 लाख किसानों की मौत हमारे सिस्टम की विफलता को उजागर करती है। किसानों को आज भी न्याय नहीं मिला। अगर यही स्थिति रही तो देश कृषि आपातकाल (Agricultural Emergency) की ओर बढ़ जाएगा।” वह कहते हैं कि सरकारें आईं और गईं, घोषणाएं और वादे बदले, लेकिन किसानों की जमीन, आय और जीवन पर संकट जस का तस बना रहा।
UPA NDA Farmer Suicide: किसान आत्महत्या की असली वजहें क्या हैं?
Excessive Debt | अत्यधिक कर्ज़ बोझ: फसल बर्बाद होने के बाद कर्ज़ चुकाने का कोई रास्ता न होने पर किसान मानसिक रूप से टूट जाते हैं।
MSP Crisis | न्यूनतम समर्थन मूल्य का संकट: कई बार किसानों को अपनी फसल का वाजिब मूल्य नहीं मिलता, जिससे उन्हें घाटा होता है।
Natural Disasters | प्राकृतिक आपदाएं: बेमौसम बारिश, सूखा, बाढ़ जैसी घटनाएं किसानों की सालभर की मेहनत को मिनटों में बर्बाद कर देती हैं।
Government Schemes Reach | योजनाओं की पहुंच: सरकारी योजनाएं केवल कागज़ों में रह जाती हैं। ज़मीनी स्तर पर इसका फायदा सभी किसानों तक नहीं पहुंच पाता।
Technology Gap | आधुनिक तकनीक की कमी: आज भी देश के कई किसान परंपरागत तरीकों से खेती करते हैं, जिससे उनकी उपज और मुनाफा सीमित रहता है।
Market Exploitation | मंडियों में शोषण: बिचौलियों और व्यापारियों द्वारा किसान को उसकी फसल का उचित मूल्य नहीं दिया जाता।
महाराष्ट्र में क्यों सबसे ज़्यादा आत्महत्याएं?
महाराष्ट्र, जो कृषि उत्पादन में अग्रणी राज्य है, वहां 31,492 किसानों ने 2015 से 2022 के बीच आत्महत्या की। विदर्भ और मराठवाड़ा जैसे क्षेत्रों में सूखा, फसल बीमा में गड़बड़ी, और कर्ज़ के फंसाव ने किसानों को आत्मघाती कदम उठाने पर मजबूर किया। प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि, फसल बीमा योजना, किसान क्रेडिट कार्ड, पीएम कृषि सिंचाई योजना जैसी योजनाएं चल रही हैं, लेकिन RTI आंकड़ों से स्पष्ट होता है कि इनका लाभ सीमित किसानों तक ही पहुंचा है। यदि Kisan Suicide Prevention Policies, Rural Mental Health Programs और MSP Guarantee Act जैसे ठोस और प्रभावी उपाय नहीं किए गए, तो हालात और गंभीर हो सकते हैं।
विशेषज्ञों की राय, सुधार हुए, लेकिन समाधान नहीं
कृषि विशेषज्ञों का मानना है कि आत्महत्या के आंकड़ों में गिरावट सकारात्मक संकेत है, लेकिन इसे “अंतिम समाधान” मानना खतरनाक होगा। आत्महत्या करने वाले हर किसान के पीछे एक असफल सिस्टम, टूटी उम्मीदें और बेरहम बाज़ार छुपा है। यह सच है कि NDA काल में आत्महत्याओं की संख्या घटकर आधी रह गई, लेकिन 2.5 लाख से ज्यादा किसान जो खेत में नहीं बल्कि खुद की ज़िंदगी खत्म करके चुप हो गए — उनकी चीत्कार अब भी हमारे सिस्टम पर सवाल खड़े कर रही है। जब तक खेती को लाभकारी नहीं बनाया जाएगा और किसान को सम्मान नहीं मिलेगा, तब तक “जय किसान” केवल एक नारा रहेगा, हकीकत नहीं।