अमेरिका में रहने वाली बहन की शिकायत से खुला राज, आरोपी अभिनव सिंह फरार, DM ने उच्चस्तरीय जांच बैठाई। ललितपुर, उत्तर प्रदेश- जिला अस्पताल में बीते साढ़े तीन वर्षों से शांतिपूर्वक मरीजों का इलाज कर रहे एक “कार्डियोलॉजिस्ट” की सच्चाई ने पूरे जिले के स्वास्थ्य तंत्र को हिला दिया है। आरोपी का नाम अभिनव सिंह है! असली चौंकाने वाली बात यह है कि वह डॉक्टर नहीं, बल्कि IIT Rurki से बीटेक और पूर्व IRS अधिकारी है, जिस पर पहले भी फर्जीवाड़े के संगीन आरोप लग चुके हैं।
मरीजों का इलाज करता रहा, किसी को शक तक नहीं हुआ
जिला अस्पताल में कार्डियोलॉजिस्ट के पद पर तैनात अभिनव सिंह रोज़मर्रा की तरह गंभीर हार्ट पेशेंट तक का इलाज करता था। स्टाफ, प्रशासन- किसी को भी शक नहीं हुआ कि यह व्यक्ति असली डॉक्टर नहीं है। अभिनव ने अपनी असली पहचान छुपाकर, अपने जीजा डॉ. राजीव गुप्ता (जो अमेरिका में कार्डियोलॉजिस्ट हैं) की डिग्री और कागज़ात का इस्तेमाल कर खुद को स्पेशलिस्ट डॉक्टर के रूप में नियुक्त करा लिया था।
बहन ने की शिकायत, सामने आया पूरा खेल
पूरा फर्जीवाड़ा तभी उजागर हुआ जब उसकी सगी बहन डॉ. सोनाली सिंह, जो अमेरिका में रहती हैं, को इस धोखे की भनक लगी। उन्होंने सीधे मेडिकल कॉलेज में शिकायत दर्ज कराई कि उनका भाई, जिसकी मेडिकल पृष्ठभूमि ही नहीं है, अपने जीजा की डिग्री पर अस्पताल में डॉक्टर बनकर बैठा है। शिकायत के बाद दस्तावेज़ों की जांच हुई तो अस्पताल प्रशासन के होश उड़ गए। पता चला कि नियुक्ति से लेकर सेवा अवधि तक, हर दस्तावेज़ में भारी गड़बड़ियां हैं।
IIT ग्रेजुएट और पूर्व IRS अधिकारी, पहले भी फर्जीवाड़े में जेल
जांच में यह भी सामने आया कि अभिनव सिंह IIT रुड़की से B.Tech है और पहले IRS अधिकारी रह चुका है। उस पर सरकारी विभाग में फर्जीवाड़े के गंभीर आरोपों के चलते वह पहले जेल जा चुका है। यानी फर्जीवाड़ा उसका नया काम नहीं, पहले से ही धोखाधड़ी के मामलों में उसका इतिहास रहा है। शिकायत की भनक लगते ही आरोपी ने अचानक अस्पताल प्रशासन को सूचित किया कि उसकी मां का निधन हो गया है और उसे तत्काल छुट्टी चाहिए। इसके बाद उसने इस्तीफा दिया और फरार हो गया। बाद में जांच में पता चला कि उसकी मां बिल्कुल स्वस्थ हैं। यह महज भागने का बहाना था।
DM ने उच्चस्तरीय जांच के आदेश दिए
जिले में हड़कंप मचते ही डीएम ने पूरे प्रकरण की उच्चस्तरीय जांच के आदेश दे दिए हैं। मानव संसाधन, नियुक्ति प्रक्रिया, अस्पताल प्रशासन और मेडिकल दस्तावेज़ों की जांच की जा रही है कि इतने बड़े फर्जीवाड़े के बावजूद वर्षों तक किसी अधिकारी को शक क्यों नहीं हुआ! जांच टीम यह भी पता लगा रही है कि क्या इसमें किसी और कर्मचारी की मिलीभगत थी या यह अकेला ऑपरेशन था।
मरीजों की सुरक्षा पर उठा बड़ा सवाल
जिला अस्पताल में बिना डिग्री वाले व्यक्ति द्वारा हार्ट मरीजों का इलाज किया जाना एक गंभीर सुरक्षा मुद्दा है। लोगों में सवाल उठ रहे हैं-
तीन साल तक प्रशासन कैसे सोया रहा?
विशेषज्ञ डॉक्टर की नियुक्ति में दस्तावेज़ सत्यापन कैसे नहीं हुआ?
फाइलों में गलत दस्तावेज़ देखकर भी किसी ने जांच क्यों नहीं की?
यह मामला सामने आने के बाद स्थानीय लोग गुस्से और हैरानी में हैं। जिन मरीजों का इलाज उसने किया, वे अपनी सुरक्षा पर सवाल उठा रहे हैं।अस्पताल प्रबंधन पर भी गंभीर लापरवाही के आरोप लग रहे हैं।
यह सिर्फ फर्जी नियुक्ति नहीं, सार्वजनिक स्वास्थ्य व्यवस्था पर बड़ा हमला है जिसकी जांच जारी है।
फर्जी डॉक्टरों का बढ़ता नेटवर्क: ललितपुर के मामले ने उजागर की व्यवस्था की गहरी बीमारियां
ललितपुर का मामला भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था पर एक बड़ा, असहज और डरावना सवाल खड़ा करता है। यह सिर्फ एक व्यक्ति का फर्जीवाड़ा नहीं, बल्कि उस पूरी प्रणाली की विफलता है जिसे मरीज अपनी जान सौंपते हैं। अभिनव न तो डॉक्टर था, न मेडिकल पढ़ाई से मामूली रूप से भी जुड़ा हुआ। वह IIT रुड़की से इंजीनियर और पूर्व IRS अधिकारी है, जो पहले भी फर्जीवाड़े और भ्रष्टाचार में जेल जा चुका है। और फिर भी वह तीन साल तक “हार्ट स्पेशलिस्ट” बनकर हजारों मरीजों का इलाज करता रहा, बिना किसी आइडेंटिटी वेरिफिकेशन के, बिना डॉक्यूमेंट क्रॉस-चेक के, बिना किसी सुपरविजन के! यह सिर्फ एक धोखा नहीं, यह मरीजों की सुरक्षा पर सीधा प्रहार है।
कुछ पुराने घाव: ऐसे फर्जी डॉक्टरों की लंबी सूची
ललितपुर का मामला नया नहीं है। भारत में ऐसे कई मामले पहले उजागर हो चुके हैं, और लगभग हर घटना ने यही दिखाया है कि जांच की कमी, लापरवाही, और दस्तावेज़ सत्यापन की कमजोरियों ने इन लोगों को अस्पतालों तक पहुंचाया।
1. दिल्ली का “डॉ. नवेंदु” मामला (2019)
दिल्ली के कई नामी अस्पतालों में MBBS की फर्जी डिग्री पर ऑपरेशन थिएटर में असिस्टेंट बनकर काम करने वाला युवक पकड़ा गया। वह मरीजों की देखभाल, दवाओं के निर्णय, और प्रक्रियाओं में शामिल था लेकिन कभी मेडिकल कॉलेज नहीं गया था।
2. नोएडा का फर्जी हृदय रोग विशेषज्ञ (2021)
एक व्यक्ति ने खुद को DM कार्डियोलॉजी विशेषज्ञ बताकर निजी क्लिनिक चलाया। जब एक मरीज की मौत के बाद जांच हुई, तब पता चला कि उसकी सारी डिग्रियां नकली थीं और वह 10वीं पास भी मुश्किल से था।
3. झारखंड में 150 फर्जी डॉक्टर पकड़े गए (2017)
स्वास्थ्य विभाग की छापेमारी में दर्जनों चिकित्सा प्रमाणपत्र और लाइसेंस फर्जी पाए गए। कई तो किसी दूसरे राज्य के डॉक्टरों के नाम और रजिस्ट्रेशन नंबर का उपयोग कर रहे थे, कुछ-कुछ ललितपुर के मामले जैसा।
4. मुंबई का नकली न्यूरोसर्जन (2022)
एक शख्स कई सालों तक न्यूरोसर्जरी असिस्टेंट बनकर ऑपरेशन्स में हिस्सा लेता रहा। वह यूट्यूब वीडियो देखकर प्रक्रियाएं सीखता था। बाद में पुलिस ने उसे गिरफ्तार किया।
5. राजस्थान का 10वीं पास “डॉक्टर” (2020)
क्लास 10 पास युवक ने 12 साल तक गांव में क्लिनिक चलाया। कई मौतें हुईं, लेकिन कोई जांच नहीं हुई, जब तक कि उसने एक बच्चे को गलत इंजेक्शन दे दिया।
ललितपुर केस क्यों अलग और ज्यादा गंभीर है?
इस मामले में आरोपी इंजीनियर और पूर्व IRS अधिकारी रहा, यानी पढ़ा-लिखा, प्रभावशाली और कानूनी प्रक्रियाओं की समझ रखने वाला व्यक्ति! उसने अमेरिका में रहने वाले असली कार्डियोलॉजिस्ट जीजा की पहचान का दुरुपयोग किया। उसने अति-विशेषज्ञता वाले विभाग कार्डियोलॉजी में प्रवेश पाया, जहां हर निर्णय जीवन-मृत्यु का सवाल होता है। उसने पकड़े जाने से पहले मां की मौत का झूठा बहाना बनाकर भागने की कोशिश की और सबसे चिंताजनक, यह अस्पताल प्रशासन की मिलीभगत या लापरवाही के बिना संभव ही नहीं।
व्यवस्था की विफलता: सबसे बड़ा अपराध
फर्जी डॉक्टरों का मिल जाना सिर्फ इसलिए संभव होता है क्योंकि हमारा सिस्टम डिग्री चेक नहीं करता, MCI/NMC रजिस्ट्रेशन सत्यापित नहीं करता, और नियुक्ति प्रक्रिया में पारदर्शिता नहीं है।
• कोई भी डिग्री लेकर आवेदन कर देता है- जांच नहीं होती– सरकारी अस्पतालों में दस्तावेज़ों की प्रामाणिकता की ऑनलाइन क्रॉस-चेकिंग लगभग न के बराबर है।
• ग्रामीण और छोटे जिलों में डॉक्टरों की भारी कमी– जहां डॉक्टरों की कमी होती है, वहां प्रबंधन किसी भी व्यक्ति को नौकरी दे देता है जो “डॉक्टर जैसा” दिखता हो।
• भ्रष्टाचार और नियुक्ति गड़बड़ी– कुछ जगहों पर फर्जी कागज़ात देखकर भी अधिकारी आंख मूंद लेते हैं क्योंकि व्यवस्था खुद भ्रष्ट है।
मरीजों की जिंदगी से खिलवाड़ किस कीमत पर?
हर फर्जी डॉक्टर सिर्फ अस्पताल की प्रतिष्ठा को नहीं, बल्कि सीधे-सीधे मरीजों की जान को खतरे में डालता है। कार्डियोलॉजिस्ट जैसे गंभीर विभाग में बिना डिग्री का व्यक्ति बैठ जाना, यह कल्पना ही भयावह है। गलत दवा, गलत निदान, गलत टेस्ट, गलत मशीन इंटरप्रेटेशन- इनमें से किसी भी चीज़ से मरीज की ज़िंदगी अचानक खत्म हो सकती थी, लेकिन सिस्टम सोता रहा।
अब आगे की कहानी क्या होगी?
ललितपुर के मामले ने फिर चेताया है कि सिर्फ आरोपी को पकड़ने से कुछ नहीं होगा। जरूरत है पूरी चिकित्सीय नियुक्ति व्यवस्था को पारदर्शी और तकनीक-आधारित बनाने की। तत्काल आवश्यक कदम:
1. सभी डॉक्टरों का NMC रजिस्ट्रेशन नंबर डिजिटल रूप से वेरिफाई हो।
2. अस्पताल नियुक्ति में थर्ड-पार्टी डॉक्यूमेंट वेरिफिकेशन अनिवार्य हो।
3. राज्य स्तर पर मेडिकल फर्जीवाड़ा प्रकोष्ठ (Fraud Cell) बने।
4. हर विशेषज्ञ डॉक्टर के कार्य अनुभव का स्वतंत्र ऑडिट हो।
5. मरीजों के लिए डॉक्टर वेरीफिकेशन ऐप/पोर्टल बनाया जाए।
सिर्फ ललितपुर का घोटाला नहीं, पूरे भारत की स्वास्थ्य व्यवस्था के लिए रेड फ्लैग
अभिनव सिंह जैसे लोग व्यवस्था की कमजोरियों का फायदा उठाते हैं। इस बार एक बहन की शिकायत ने सच उजागर कर दिया, लेकिन देश में कितने अस्पताल ऐसे हैं जहां फर्जी विशेषज्ञ अभी भी बैठे हैं, यह कोई नहीं जानता। जब डॉक्टर की कुर्सी पर बैठा व्यक्ति असली डॉक्टर न हो तो यह सिर्फ कानून का उल्लंघन नहीं, विश्वास का खंडन है। भारतीय स्वास्थ्य व्यवस्था को अब जागना होगा क्योंकि मरीजों की जान से बड़ा कोई बहाना, कोई कमी, कोई चूक नहीं हो सकती।
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