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यूपी की खराब लॉ एंड ऑर्डर पर क्या बोले एडीजी प्रशांत कुमार

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उत्तर प्रदेश में ताबड़तोड़ आपराधिक घटनाओं ने उत्तर प्रदेश की कानून व्यवस्था पर सवाल खड़े कर दिए। यूपी के लॉ एंड ऑर्डर पर बात करने के लिए हमारे साथ हैं प्रशांत कुमार, जो एडीजी लॉ एंड ऑर्डर, उत्तर प्रदेश पुलिस है। उनसे जानने की कोशिश करते हैं कि आखिरकार उत्तर प्रदेश में जो घटनाएं हो रही हैं, वह कब कम होंगे, वह कब खत्म होंगे और उत्तर प्रदेश में कानून का राज कब होगा ?

द सीएसआर जर्नल की खास पेशकश में आपका स्वागत है, मेरा सबसे पहला सवाल है कि हाल फिलहाल में उत्तर प्रदेश में हुई 5 जघन्य अपराधों की वजह से पूरा उत्तर प्रदेश सन्न हो गया, चाहे वह लूट हो, डकैती हो, अपहरण हो या फिर फिरौती। सबसे बड़ा कांड बिकरू का विकास दुबे का रहा। आप बतौर एडीजी लॉ एंड ऑर्डर यूपी, आप किस तरह से इस पर अंकुश लगा रहे हैं ?

सर्वप्रथम मैं स्पष्ट करना चाहूंगा कि बिना आंकड़ों के जाने आपराधिक घटनाओं पर बातें करना उचित नहीं है। पॉजिटिव क्रिटिसिज्म किसी चीज का होना अच्छी बात होती है। उस पॉजिटिव क्रिटिसिजम से पुलिस अपना आत्ममंथन भी करती है। उससे सीख भी लेती है। जितनी भी घटनाएं हुई है, आपने देखा होगा एक को छोड़कर सभी केसेस वर्क आउट हुए हैं, सॉल्व हुई है, केसेस में रिकवरीज हुई हैं। हाल फिलहाल में कोई मेजर डकैती, लूट की घटनाएं नहीं हुई है। आप भलीभांति जानते हैं कि कानपुर की घटना में हमारे 8 साथी शहीद हुए थे, उसमें भी जो हमारे वेपंस लूटे गए थे उसको हमने बरामद किया। उसमें कुछ लोग एनकाउंटर में मारे गए, कुछ लोग गिरफ्तार हुए और लगातार हमारी कार्रवाई चल रही है।

इसके अतिरिक्त अपहरण की कुछ घटनाएं हुई, उनमें सभी में जो किडनैपर्स है उनके साथियों ने मिलकर किया। इन सब केसेस में कोई बड़ा ऑर्गेनाइज गैंग नहीं था। जिसका कोई पूर्व इतिहास रहा हो। ऐसी स्थिति में जब कोई पड़ोसी या फिर दोस्त ऐसी घटना को अंजाम देता है तो एविडेंस कलेक्शन में थोड़ा समय लगता है और जब अकाट्य साक्ष मिल जाते हैं तभी आगे की कार्रवाई की जाती है। अगर ऐसा नहीं किया गया और बिना किसी सबूत के किसी भी व्यक्ति को पुलिस पकड़ती है तो पुलिस की बदनामी होती है। ऐसी स्थिति में मैक्सिमम जगहों पर रिकवरी हुई है। यहां पर ऐसे भी केसेस आए हैं कि पहले अपहरण की फिर हत्या कर दी उसके बाद फिरौती की रकम मांगी। इन सब के बीच एक पहलू यह भी है कि किसी ने यह नहीं कहा कि पुलिस ने हमारे अपराध को दर्ज नहीं किया। उचित धाराओं में अपराध दर्ज नहीं किया। पुलिस के पास जैसी सूचना मिली हम लोगों ने फौरन अपराध दर्ज किया और हर संभव प्रयास किए। कुछ जगहों पर रिकवरी हुई, जहां तात्कालिक रूप से व्यक्ति की हत्या कर दी थी वैसे लोगों की गिरफ्तारी की गई और आगे की कार्रवाई इस मामले में की जा रही है।

जिस तरह से आपने जिक्र किया यह मामला एक कानपुर का था, गोंडा के मामले का जिक्र किया, तमाम इस तरह की घटनाएं आखिरकार क्यों हो रहीं है ? जिस तरह से मुख्यमंत्री योगी जी बार-बार कहते हैं कि यूपी में लॉ एंड ऑर्डर का राज होगा, जो भी आपराधिक लोग हैं, प्रदेश छोड़ देंगे या फिर वह अपराध छोड़ देंगे। क्यों आखिरकार हो रही है इस तरह की घटनाएं, कानून का खौफ क्यों नहीं हो पा रहा है?

अगर आप संख्यात्मक दृष्टिकोण से इन अपराधों को देखें तो जो भी घटनाएं हैं, उदाहरण के तौर पर जैसे कि अपहरण जिसमें 40 फ़ीसदी की कमी आई है। पिछले साल की तुलना में लूट में 43 पर्सेंट की कमी आई है। हत्या में 8 फ़ीसदी की कमी आई है। या फिर महिला संबंधी अपराधों या फिर हमारे अनुसूचित वर्ग के साथ घटनाएं होती हैं। सभी मामलों में कमी आई है और अपराध और अपराधियों के प्रति जीरो टॉलरेंस की नीति से सरकार काम कर रही है और पुलिस काम कर रही है। अपराध शून्य समाज की अपेक्षा करना जहां पर कितने करोड़ की जनसंख्या हो, जहां पर पॉपुलेशन 23-24 करोड़ की है, यह संभव नहीं है। लेकिन उसका प्रयास हम हमेशा करते रहते हैं। इस तरह की घटनाएं ना हो इसको लेकर भी हमारा प्रयास जारी रहता है और अगर घटनाएं होती है तो उसका सफल अनावरण करने का हर संभव कोशिश करते हैं। पुलिस में हमारा काम ही है कि क्राइम प्रिवेंशन और डिटेक्शन।  हम अपराध को रोकते हैं लेकिन बावजूद इसके अगर घटनाएं हो जाती हैं तो हम उसका सफल अनावरण करते हैं।

जिस तरह से आप आंकड़े दिखा रहे हैं ऐसा ही आंकड़ा हमारे पास भी है। एनसीआरबी के आंकड़े कहते हैं कि 2018 में देश में 50 लाख से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज हुए जिनमें से लगभग 11 फीसदी यूपी में दर्ज हुए। महिलाओं के प्रति अपराध में यूपी सबसे टॉप रहा। यूपी में सबसे ज्यादा पुलिस वालों की मौत ड्यूटी के दरमियान हुई है? यूपी में लॉ एंड ऑर्डर कहां है?

यह आप आंकड़े किस नजरिए से देखते हैं, यह महत्वपूर्ण है। वह अपराध दर है, अगर हमारा पॉपुलेशन इतना बड़ा है, जिसमें तीन चार छोटे राज्य समा जाएं। हमारे आंकड़ों को आप किसी छोटे राज्य के साथ कंपेयर नहीं कर सकते। अगर आपको कंपैरिजन करना है तो अपराध के दर से कंपैरिजन करिए। पर कैपिटा अपराध कितना हुआ उसके हिसाब से तुलना कीजिये। अगर आप देखेंगे तो यूपी का पोजीशन अन्य प्रदेशों से बहुत अच्छी है और यह वही बात हुई ना कि आप जितना देखना चाहते हैं, वही दिखता हैं। अगर आप टोटलिटी में देखेंगे तो हमारा पॉपुलेशन बहुत बड़ा है। हमारे यहां पर अपराध दर्ज बहुत होते हैं। फ्री रजिस्ट्रेशन होता है, तो आप अपराध के अब्सॉल्यूट आंकड़े तो आप अपराध के दर से उससे कंपैरिजन करें तो आप पाएंगे कि यूपी में अपराध का दर अन्य प्रदेशों से अच्छे हैं।

उत्तर प्रदेश का जब भी नाम आयेगा, बिकरु कांड का जरूर जिक्र होगा, क्या कहेंगे आप बिकरु कांड को लेकर, किस तरह से आप लोगों की मनोस्थिति रही जब ये पहला कॉल आया कि 8 जवान शहीद हो गए?

बिकरु कांड हमारे लिए बहुत ही दुःखद घटना थी। इस तरह के नॉर्मल दबिश के दौरान इतने बड़े पैमाने पर हमारे जवान कभी शहीद नहीं हुए थे। इस तरह की घटनाएं अमूमन टेरेरिस्ट एक्टिविटी के दरमियान होती हैं या फिर डकैती के दरमियान होती है या फिर नक्सल एक्टिविटीज में होती हैं। जिस तरह से हमारे साथियों को एंबुश किया गया, जिस तरह से हमारे साथियों को असहाय स्थिति में मारा गया, हमारा हथियार लूटा गया। हम लोगों ने भी जवाबी कार्यवाही की और अपराधी मारे गए हैं। कुछ लोग गिरफ्तार हुए हैं। हम उनके खिलाफ साक्ष्य एकत्रित कर रहे हैं। हम कोर्ट में उन्हें हाजिर करेंगे और जो भी अधिकतम सजा होनी चाहिए उसकी हम डिमांड करेंगे और हम कोशिश करेंगे कि आगे से इस तरह की पुनरावृत्ति ना हो।

आपने जिक्र किया कि हम अपराधियों को कोर्ट में प्रोड्यूस करेंगे, विपक्ष हमेशा से ही सवाल खड़ा करता है कि योगी के कार्यकाल में जुडिशल मामले पीछे हो रहे हैं और एनकाउंटर बड़े पैमाने पर हो रहे हैं। बिकरू कांड में भी बड़े पैमाने पर अपराधियों के एनकाउंटर हुए, विकास दुबे के मामले को लेकर भी सवाल खड़े किए गए, क्या अब यूपी में लॉ एंड ऑर्डर को मेंटेन करने के लिए एनकाउंटर ही न्यायिक प्रक्रिया है?

जो भी आरोप लगा रहा है, वो सरासर गलत आरोप लगा रहा है। बिकरू कांड में अपने स्वयं देखा होगा कि प्रशासन द्वारा एक न्यायिक आयोग का गठन किया गया है। एसआईटी बनाई गई है और जितने भी एनकाउंटर होते हैं इन सब के लिए सर्वोच्च न्यायालय ने कुछ नियम, कुछ कानून, कुछ गाइडलाइंस तय किए हुए हैं। इन सभी निर्देशों का अक्षरसह पालन कराया जाता है। नेशनल ह्यूमन राइट कमीशन है, स्टेट ह्यूमन राइट कमीशन है, इनको एक समय बद्ध तरीके से सूचनाएं भेजी जाती है। एनकाउंटर कोई स्टेट पॉलिसी नहीं है। लेकिन जो अपराधी हमारे 8 जवानों को शहीद कर चला गया ऊपर से दोबारा फिर से भागने का प्रयास कर रहा है। हमेशा पुलिस को कटघरे में खड़ा करके देखना उचित नहीं है। इस मामले की जांच करने के लिए एक न्यायिक आयोग का गठन किया गया है। इस मामले में इंतजार करें, जांच रिपोर्ट आने के बाद दूध का दूध, पानी का पानी हो जाएगा और हम लोगों ने ऐसा कोई गलत कार्य नहीं किया है। जो चीजें हुई है उसको हम लोग आयोग के सामने अपना पक्ष रखेंगे। यह आने वाला भविष्य बताएगा और अगर पुलिस ने कोई गलती की है तो जो भी जांच आयोग का डिसीजन होगा हम उसको मानेंगे। लेकिन ऐसा बिल्कुल नहीं होगा कि कोई अपराधी पुलिस पर फायर करता है तो पुलिस को भी सेल्फ डिफेंस का अधिकार प्राप्त है। जैसे कि आम जनता को है। जब आमने-सामने गोलियां चलती है तो दोनों तरफ से कजुअलटीज हो सकती है।

इसी से रिलेटेड दो सवाल, एक तो यह कि पुलिस पर भी उंगलियां उठी, पुलिस द्वारा मुखबिर किया गया था। दूसरा सवाल ये इमोशंस और प्रोफेशन के बीच आप लोग किस तरह से तालमेल बिठा लेते हैं, क्योंकि पुलिस करें तो, क्यों किया, पुलिस ना करें तो, क्यों नहीं किया?

ऐसा नहीं है कि अगर हमारे जवान शहीद हो गए तो उसका भड़ास हम निर्दोषों पर निकाले। आपने देखा होगा कि बिकरू कांड में किस तरह से महिलाओं ने भी घटना में पार्टिसिपेट किया और अपराधियों को भगाने में, उनको छुपाने में मदद की। साक्ष्य मिटाने में मदद की। अभी सभी चीजें जांच के दायरे में है, हम लोग भी जांच आयोग के सामने अपना पक्ष रखेंगे, मुझे पूरा विश्वास है न्यायिक व्यवस्था पर कि हमारे साथ भी न्याय होगा।

कोरोना काल में यूपी पुलिस ने बहुत ही महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, डॉक्टर के बाद फ्रंट लाइन पर सबसे ज्यादा अगर कोई आगे रहा तो पुलिस वाले आगे रहे। लॉ एंड ऑर्डर को मेंटेन करने के लिए पुलिस वाले सड़कों पर रहे, कोरोना काल में लोगों की मदद किए, लोगों को पुलिस वाले समझा रहे हैं कि आप लोग घरों में रहें, सुरक्षित रहें। कैसा रहा आप लोग के लिए पूरा यह कोरोना काल ?

कोरोना काल में हमारे जितने भी जवान थे, उन्होंने सिर्फ एक ही मोटो के तहत काम किया। “ड्यूटी बिफोर सेल्फ” और जिस तरह से जिम्मेदारी प्रशासन द्वारा, हमारे पुलिस कर्मियों को दिया गया उसे बखूबी निभाया गया। अपनी परवाह न करते हुए आम जनमानस की हमारे पुलिसकर्मियों ने सहायता की।  चाहे वह खाना बांटना हो, फर्स्ट ऐड देना हो, अस्पतालों में पहुंचाना हो, यहां तक कि संक्रमित लोगों के पार्थिव शरीर को भी पुलिसकर्मियों ने अंतिम  संस्कार किया। इस तरह की चीजें हमें यानी पुलिस को जनता के करीब लेकर गई है। समाज के करीब लेकर गई है। कोरोना काल पुलिस का कम्युनिटी से अच्छा सामंजस्य बैठा है।

आप आंकड़े मुझे दिखा रहे हैं और आप बोल रहे हैं कि मामले लगातार कम हो रहे हैं, लेकिन यह भी कह रहे हैं कि जीरो क्राइम हो जाए, ऐसा संभव नहीं है। तो क्या आप यह मान रहे हैं कि उत्तर प्रदेश में क्राइम रहेंगे लेकिन बहुत हद तक हम कंट्रोल कर पाएंगे ?

मैंने आपको बताया कि अपराध शून्य समाज कभी नहीं रहा। यह जरूरी है कि सनसनीखेज वारदात ना हो, कोई ऐसी चीज ना हो जिसमें हमारी चूक के कारण बड़ी घटना हो जाए। इन सभी चीजों को देखते हुए विभागीय आत्ममंथन भी चलता रहता है और हमारा प्रयास यही होता है कि अपराध ना हो और अगर अपराध होते हैं तो उसको जल्द से जल्द हम वर्कआउट करें और अपराधियों को सलाखों के पीछे डालें।

चलिए हम यही उम्मीद करते हैं कि कानपुर की घटना फिर से ना दोहराई जाए, गोंडा की घटना ना हो, प्रदेश में अमन भाईचारा हो यही उम्मीद करते हैं।  हम चाहते हैं कि आप देश को एक सामाजिक जिम्मेदारियों से रूबरू करवाएं ताकि पुलिस और समाज में जो मित्रता होती है वो और मजबूत होवे।

यूपी में लॉ एंड ऑर्डर को मेंटेन करने के लिए उत्तर प्रदेश पुलिस की कम्युनिटी पुलिसिंग एक अहम हिस्सा है। आपने देखा होगा कि यहां ग्राम सुरक्षा वॉलिंटियर्स है। हमारे डिजिटल वॉलिंटियर्स हैं। बड़े शहरों में कुछ ऐसे ऑर्गेनाइजेशन है जो पुलिस और समाज के बीच ब्रिज बनने का काम करती है। यह सभी ऑर्गेनाइजेशन समाज के लोग पुलिस के साथ कदम से कदम मिलाकर काम करते हैं ताकि प्रदेश में कानून व्यवस्था बनी रहे। प्रदेश में बड़े पैमाने पर बड़े-बड़े आयोजन होते रहते हैं आपने देखा होगा कि पिछले तीन सालों में यहां कोई सांप्रदायिक घटना नहीं हुई। बड़े-बड़े पर्व और त्यौहार के दरमियान हिंसा नहीं हुई। इस दरमियान महाकुंभ हुआ, लोकसभा का चुनाव हुआ, इन्वेस्टर समिट हुए, एक सामंजस्य बिठाकर हमने अच्छा काम किया है और लगातार हम जनता की भलाई के लिए काम करते रहेंगे।