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April 15, 2025

Ambedkar Jayanti: आजाद भारत के संविधान रचयिता, दलितों के मसीहा

Ambedkar Jayanti 2025: हर साल 14 अप्रैल को देशभर में अम्बेडकर जयंती बड़े सम्मान और उत्साह के साथ मनाई जाती है। इस दिन को डॉ भीमराव अंबेडकर (Dr Ambedkar) के जन्मदिन के तौर पर याद किया जाता है। वे एक महान समाज सुधारक, संविधान निर्माता और करोड़ों लोगों के अधिकारों के लिए लड़ने वाले नेता थे। इस वर्ष देश उनकी 134 वीं जयंती मना रहा है।

कौन थे डॉ अंबेडकर

Ambedkar Jayanti: डॉ अंबेडकर (Dr Babasaheb Ambedkar) का जन्म 14 अप्रैल 1891 को मध्यप्रदेश के महू (जो अब अंबेडकर नगर) में एक महार परिवार में हुआ था, जो उस समय अछूत माना जाता था और इस कारण उन्हे सामाजिक और आर्थिक रूप से गहरा भेदभाव सहन करना पड़ता था। उनका परिवार कबीर पंथी था। अंबेडकर के बचपन का नाम ‘भिवा’ था, भिवा सकपाल! बचपन से ही उन्होंने छुआछूत, भेदभाव और सामाजिक अन्याय को झेला. लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और पढ़ाई को अपना हथियार बनाया। उन्होंने Columbia University (अमेरिका) और London School Of Economics (इंग्लैंड) से पढ़ाई की और दुनिया के गिने-चुने शिक्षित दलित लोगों में शामिल हुए। व्यावसायिक जीवन अर्थशास्त्र के प्रोफेसर के बतौर शुरू करने वाले अंबेडकर ने वकालत भी की, फिर राजनीति की ओर मुड़ गए।हिन्दू धर्म में व्याप्त कुरीतियों और छुआछूत की प्रथा से तंग आकर 1950 में उन्होंने बौद्ध धर्म अपना लिया। दलितों को अंग्रेजों द्वारा दिए जाने वाले विशेष मताधिकार के खिलाफ गांधी के आमरण अनशन को नकारने वाले अंबेडकर ने उनकी गिरती सेहत देखकर इनके साथ संधि की, जिसे ‘पूना ऐक्ट’ के नाम से जाना जाता है। अपनी प्रतिष्ठा और अद्वितीय विद्वान वाली छवि के चलते आजादी के बाद Congress सरकार ने उन्हे देश के पहले कानून और न्याय मंत्री के रूप में शपथ दिलाई। 29 अगस्त 1947 को अंबेडकर को स्वातंत्र्य भारत के नए संविधान की रचना के लिए बनी समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया। डॉ बाबासाहेब अंबेडकर ने 60 देशों के संविधानों का अध्ययन करने के बाद भारत के पहले संविधान की रचना की। 14 अप्रैल का दिन देश भर में बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर जयंती, भीम जयंती, अंबेडकर स्मृति दिवस, समानता दिवस के तौर पर मनाया जाता है। 14 अप्रैल को बाबासाहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर की जयंती होती है। डॉ. बीआर अंबेडकर एक प्रसिद्ध राजनीतिक नेता, दार्शनिक, लेखक, अर्थशास्त्री, न्यायविद्, बहु-भाषाविद्, धर्म दर्शन के विद्वान और एक समाज सुधारक थे, जिन्होंने भारत में छूआछूत और सामाजिक असमानता के उन्मूलन के लिये अपना जीवन समर्पित कर दिया। उनका मानना था कि अस्पृश्यता को हटाए बिना राष्ट्र की प्रगति नहीं हो सकती है। वह भारत में दलितों व पिछड़े वर्गों को मसीहा थे। लोग उन्हें बाबासाहेब कहकर बुलाते थे। बाबासाहेब ने भारत के संविधान निर्माण में सबसे अहम भूमिका निभाई,  जिसके चलते उन्हें संविधान का जनक भी कहा जाता है।

देश के लिए Dr. Ambedkar के मायने

Ambedkar Jayanti: डॉ अंबेडकर को भारत का संविधान निर्माता कहा जाता है। उन्होंने देश के लिए ऐसा संविधान तैयार किया, जिसमें सभी को समान अधिकार, न्याय और स्वतंत्रता मिले – चाहे वह किसी भी जाति, धर्म या वर्ग से हो। उन्होंने महिलाओं के अधिकारों, दलितों की शिक्षा, और सामाजिक समानता के लिए कई काम किए। उन्होंने कहा था – ‘शिक्षा शेरनी का दूध है, जो पिएगा, वह दहाड़ेगा।’ यह उनके विचारों की ताकत को दिखाता है। उनके विचारों की आधुनिकता का अंदाज़ा उनके विचारों से लगाया जा सकता है-
1. मैं किसी समाज की प्रगति का आकलन यह देखकर करता हूं कि वहां की महिलाओं की स्थिति कैसी है।
2. जीवन लम्बा होने के बजाय महान होना चाहिए।
3. यदि हम एक संयुक्त एकीकृत आधुनिक भारत चाहते हैं तो सभी धर्मों के शास्त्रों की संप्रभुता का अंत होना चाहिए।
4. हिन्दू धर्म में विवेक, कारण और स्वतंत्र सोच के विकास के लिए कोई गुंजाइश नहीं है।
5. इतिहास बताता है कि जहां नैतिकता और अर्थशास्त्र के बीच संघर्ष होता है, वहां जीत हमेशा अर्थशास्त्र की होती है। निहित स्वार्थों को तब तक स्वेच्छा से नहीं छोड़ा गया है, जब तक कि मजबूर करने के लिए पर्याप्त बल न लगाया गया हो।
6. बुद्धि का विकास मानव के अस्तित्व का अंतिम लक्ष्य होना चाहिए। वे इतिहास नहीं बना सकते, जो इतिहास भूल जाते हैं।
7. समानता एक कल्पना हो सकती है, लेकिन फिर भी इसे एक गवर्निंग सिद्धांत रूप में स्वीकार करना होगा।
8. यदि मुझे लगा कि संविधान का दुरुपयोग किया जा रहा है, तो मैं इसे सबसे पहले जलाऊंगा।
9. जब तक आप सामाजिक स्वतंत्रता हासिल नहीं कर लेते, तब तक आपको कानून चाहे जो भी स्वतंत्रता देता है, वह आपके किसी काम की नहीं होती।
10. धर्म मनुष्य के लिए है न कि मनुष्य धर्म के लिए। मैं ऐसे धर्म को मानता हूं जो स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा सिखाता है

अंबेडकर का समता सैनिक दल-SSD

Ambedkar Jayanti: 1927 में बी आर अंबेडकर ने एक स्वयंसेवी दल की आवश्यकता महसूस की, जब उन्होंने महाड में दलितों के लिए पानी की सुविधा के लिए आंदोलन शुरू किया। इस दल-‘समता सैनिक दल’ (सामाजिक समानता दल) – को 1927 में ही औपचारिक रूप दिया गया था। SSD ने 1932 में गोलमेज सम्मेलन से लौटने पर Mumbai में अंबेडकर को दिए गए ‘Guard Of Honour’ से प्रसिद्धि पाई। यह एक विशिष्ट रक्षा बल की तरह काम करता था, जिसका अपना झंडा, ड्रेस कोड और अनुशासन था। अंबेडकर की मृत्यु के बाद इसका प्रभाव कम हो गया, जिससे भीम सेना और दलित पैंथर्स जैसे संगठन उभरे।
SSD को सेवानिवृत्त दलित महार सैनिकों द्वारा सहायता प्रदान की गई थी, जो ब्रिटिश सेना का हिस्सा थे। अंबेडकर खुद एक रक्षा परिवार से थे। छत्रपति शिवाजी और बाद में अंग्रेजों ने 1818 में कोरेगांव की लड़ाई में महारों को उनकी वीरता के लिए मान्यता दी। अंग्रेजों ने कोरेगांव में एक विजय स्तंभ बनाया, जिसका जश्न में अंबेडकर 1 जनवरी, 1927 को शामिल हुए थे। बाद में अंबेडकर ने 1941 में महार रेजिमेंट का निर्माण सुनिश्चित किया, जब वे रक्षा सलाहकार परिषद में थे। अंबेडकर का मानना था कि दलितों की वीरता किसी भी अन्य समुदाय से कम नहीं है। उन्होंने बार-बार अंग्रेजों से कहा कि वे अछूत सैनिकों की मदद से ही भारत में खुद को स्थापित कर सकते हैं। उन्होंने दुशादों के साथ प्लासी की लड़ाई (1757), परैया के साथ वांडिवाश की लड़ाई (1760) और महारों के साथ कोरेगांव की लड़ाई का हवाला दिया। अछूत और निचली जातियां ब्रिटिश सेना में सबसे पहले शामिल हुईं क्योंकि बाक़ी जातियों के लोगों की तरह उनके लिए खाने पर कोई प्रतिबंध नहीं था। 1943 में, द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, अंबेडकर ने एक चमार रेजिमेंट का निर्माण किया, जिसने जापानी शाही सेना के खिलाफ लड़ाई लड़ी और उन्हें बर्मा से वापस खदेड़ दिया। युद्ध के बाद 1945 में अंग्रेजों ने रेजिमेंट को भंग कर दिया, जबकि अन्य जाति रेजिमेंट को बनाए रखा।

अम्बेडकर जयंती क्यों मनाई जाती है?

Ambedkar Jayanti: 14 अप्रैल को Dr Babasaheb Ambedkar का जन्मदिन होता है, इसलिए इस दिन को हर साल अम्बेडकर जयंती या भीम जयंती के रूप में मनाया जाता है। यह सिर्फ एक जन्मदिन नहीं, बल्कि समानता और सामाजिक न्याय के विचारों को याद करने का दिन है। इस दिन देशभर में सरकारी और निजी संस्थानों में कार्यक्रम होते हैं, रैलियां और सभाएं आयोजित की जाती हैं, नेता और आम लोग उनकी प्रतिमाओं पर पुष्पांजलि अर्पित करते हैं। कई जगह इसे “राष्ट्रीय समरसता दिवस” के रूप में भी मनाया जाता है। मुंबई के दादर में स्थित ‘ चैत्यभूमि’ भारतीय संविधान के निर्माता भारतरत्न डॉ भीमराव अंबेडकर जी की समाधि स्थली और बौद्ध धर्म के लोगो का आस्था का केंद्र है। दादर के समुद्र तट पर चैत्य भूमि स्थित है, जहां अंबेडकर की पुण्यतिथि 6 दिसंबर को देशभर से उनके अनुयायी अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करने आते हैं। दिल्ली के अपने निवास में ६ दिसंबर १९५६ को आंबेडकर का महापरिनिर्वाण हुआ, और उनका पार्थिव शरीर मुंबई लाया गया, चैत्यभूमि में ७ दिसंबर १९५६ को भदंत आनंद कौशल्यायन ने आंबेडकर का बौद्ध परम्परा के अनुसार दाह संस्कार किया था। आंबेडकर के दाह संस्कार के पहले उन्हें साक्षी रख उनके 20,00,000 अनुयायिओं ने बौद्ध धम्म की दीक्षा ली और यह दीक्षा उन्हें भदन्त आनन्द कौशल्यायन ने दी थी।

आज के समय में अंबेडकर क्यों जरूरी हैं

Ambedkar Jayanti: आज भी हमारे समाज में जाति, गरीबी और असमानता जैसी समस्याएं हैं। डॉ अंबेडकर का सपना था एक ऐसा भारत, जहां हर व्यक्ति को सम्मान, अवसर और न्याय बराबरी से मिले। उन्होंने माना कि लोकतंत्र का मतलब सिर्फ वोट देना नहीं, बल्कि हर इंसान को समान अधिकार देना है – चाहे वह अमीर हो या गरीब, महिला हो या पुरुष, सवर्ण हो या दलित! उनकी सोच आज भी उतनी ही जरूरी है, जितनी आजादी के समय थी। अंबेडकर के विचारों की समसामयिकता आज इसलिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि हम समाज को दो भागों में विभाजित देखते हैं। एक तो वे, जो जातिगत भेदभाव और हिंसा के कारण लगातार अपमान का अनुभव करते हैं, और दूसरा वे, जो इसकी वास्तविकता या महत्व को नकारते हैं या एक अमानवीय अपमान पर सार्वजनिक बहस को चुप कराना चाहते हैं, जिसके खिलाफ बाबासाहेब अंबेडकर ने अपना पूरा जीवन समर्पित कर दिया। दुनिया एक महान विचारक, नेता, लोकतंत्रवादी और बुद्ध की शिक्षाओं के मार्गदर्शक के रूप में उनके महत्व और उनके परिणामस्वरूप जो कुछ हुआ, उसके प्रति जागरूक हो रही है। भारत के महान नेताओं में, निश्चित रूप से डॉ अंबेडकर सबसे ऊपर हैं जो इतिहास को आकार देना आज भी जारी रखते हैं, जिनकी प्रासंगिकता वर्तमान आर्थिक और सामाजिक क्षण में ताज़ा होती है, और जिनका प्रभाव भारत से परे उन लोगों तक फैला हुआ है, जहां भी उनके विचार पाए जाते हैं।

भीम सेना का जन्म

Ambedkar Jayanti: 1968 में बीआर अंबेडकर की 77वीं जयंती के मौके पर, कर्नाटक के गुलबर्गा में Bheem Sena का जन्म हुआ, जिसे अंबेडकरवादी दलित नेता बी श्याम सुंदर ने बनाया था। भीम सेना एक स्वयंसेवी दल था, जो समानता और आत्मरक्षा के सिद्धांतों पर चलता था। जल्द ही, यह दलितों के खिलाफ अत्याचार करने वालों के बीच आतंक पैदा करने में सक्षम हो गया। श्याम सुंदर निजाम के हैदराबाद में सर्वोच्च नागरिक सम्मान खुसरो-ए-दकन थे। उन्होंने इस विचार को लोगों के ज़हन में ठोस बनाया कि दलित ही मूल भारती (भारत के मूल निवासी) हैं। Bheem Sena के दो लाख सदस्य थे और यह महाराष्ट्र, तेलंगाना और कर्नाटक के अलावा यूपी, हरियाणा और पंजाब में भी फैल गई। इसने मांग की, कि हर तालुका में 25 प्रतिशत गांव दलितों को दिए जाएं, अलग निर्वाचन क्षेत्र, अलग विश्वविद्यालय और दलितों के लिए एक अलग राजनीतिक संगठन बनाने का लक्ष्य भी रखा। दलित युवाओं ने भीम सेना के साथ मिलकर अत्याचारों का विरोध किया और एक आत्मरक्षा बल भी प्तैयार किया। 1975 में श्याम सुंदर के निधन के बाद भीम सेना खत्म हो गई। लेकिन इसने 1972 में दलित पैंथर्स नामक एक और संगठन के निर्माण को प्रेरित किया।

दलित पैंथर्स का निर्माण

Ambedkar Jayanti: भीम सेना की तरह दलित पैंथर्स ने भी अत्याचारों का जवाब आत्मरक्षा बल के रूप में दिया। 1980 के दशक के अंत तक दलित पैंथर आंदोलन बिखर गया लेकिन सक्रिय रहा। रामदास अठावले और जोगेंद्र कवाडे जैसे कुछ पैंथर सक्रिय राजनीति में चले गए, ढसाल जैसे अन्य लोग साहित्यिक आंदोलन के साथ बने रहे। दलित पैंथर्स ने अंबेडकर के सम्मान में मराठवाड़ा विश्वविद्यालय का नाम बदलने और महाराष्ट्र सरकार पर अंबेडकर के विचारों को हिंदू धर्म में प्रकाशित करने के लिए दबाव डालने के आंदोलन में प्रमुख भूमिका निभाई। पैंथर्स गुजरात में फैल गए, गुजराती दलित साहित्यिक आंदोलन को प्रभावित किया और 1981 और 1985 में राज्य के दलित आरक्षण विरोधी आंदोलन के दौरान युवाओं को संगठित किया।

भीम आर्मी का निर्माण

Ambedkar Jayanti: भीम आर्मी, वैकल्पिक रूप से अखिल भारतीय भीम सेना, जिसे ABBS के रूप में संक्षिप्त किया गया है , जिसका शाब्दिक अर्थ ‘अखिल भारतीय अंबेडकर सेना’ एक अंबेडकरवादी सामाजिक संगठन है जो Satpal Tanwar के नेतृत्व में भारत में अनुसूचित जाति (SC), अनुसूचित जनजाति (ST), अन्य पिछड़े वर्गों (OBC) और धार्मिक अल्पसंख्यकों (Muslim Minority) के अधिकारों के लिए काम कर रहा है। Bheem Army आरक्षण समर्थक है। बताया जाता है कि भीम आर्मी की औपचारिक स्थापना साल 2015 में हुई थी। इस संगठन का उद्देश्य सहारनपुर में दलितों के हितों की रक्षा और दलित समुदाय के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देना था। हालांकि, इस आर्मी के उदय की शुरुआत सहारनपुर में AHP महाविद्यालय से हुई। कहा जाता है कि कॉलेज में राजपूतों का वर्चस्व था और दलितों के साथ काफी भेदभाव किया जाता था। कथित तौर पर दलित छात्रों को क्लास में बैठने के लिए अलग सीटें थीं। यहां तक कि सभी एक ही नल पर पानी तक नहीं पी सकते थे। दलितों के लिए अलग से नल की व्यवस्था की गई थी। उसी समय चंद्रशेखर नाम के एक नौजवान का कॉलेज में एडमिशन हुआ। दलितों के साथ हो रहे भेदभाव को देखकर चंद्रशेखर ने सभी दलित छात्रों को इकट्ठा करना शुरू कर दिया। इसके बाद कई बार दलित और राजपूत छात्रों के बीच बहस और मारपीट की नौबत आ गई। दोनों ओर से लड़ाई- झगड़े शुरू हो गए। कई बार बात बढ़ी तो मारपीट भी हुई। धीरे-धीरे दलित नौजवानों की हिम्मत बढ़ने लगी, वहीं राजपूतों का वर्चस्व घटने लगा। कहा जाता है कि बाद में दलित छात्रों ने राजपूतों के वर्चस्व को खत्म कर दिया। यही कॉलेज भीम आर्मी का प्रेरक केंद्र बना। इसके बाद सहारनपुर के भादों गांव में भीम आर्मी संगठन ने पहला स्कूल खोला।
आज के समय में भीम सेना और भीम आर्मी बेशक दलितों, पिछड़ो और अल्पसंख्यकों के अधिकारों के लिए उनके साथ खड़े हैं, लेकिन हालिया समय में Bheem Sena के RSS से जुड़ने और Bheem Army के Azaad Samaj Party के गठन में BSP का समर्थन लेने से इनका राजनीतिकरण हो गया है। राजनीतिक फ़ायदों के आगे निकलकर ये दोनों अब Dr बाबासाहेब अंबेडकर के विचारों और उनके आंदोलन को कितना न्याय दे पाएंगे, इसका कितना नफ़ा-नुक़सान ज़रूरतमंदों और अंबेडकर समर्थकों को मिलेगा, ये देखने वाली बात होगी।

अंबेडकर के बाद चर्चित दलित राजनीतिक चेहरे

Ambedkar Jayanti: बीआर आंबेडकर-भारतीय संविधान के निर्माता डॉ भीम राव आंबेडकर ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान सक्रिय भूमिका निभायी थी। सामाजिक व्यवस्था और कानून के जानकार होने के कारण नेहरू ने अपने पहले मंत्रिमंडल में उन्हें कानून और न्याय मंत्रालय का जिम्मा दिया। जाति व्यवस्था के खिलाफ लगातार लड़ने वाले आंबेडकर सामाजिक और आर्थिक विषयों के विद्वान माने जाते थे।
बाबू जगजीवन राम : बाबूजी के नाम से प्रसिद्ध जगजीवन राम ने स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान बिहार से सक्रिय रूप से हिस्सा लिया। नेहरू कैबिनेट में श्रम, ट्रांसपोर्ट, रेलवे जैसे कई मंत्रिमंडल संभालने के बाद, ये 1977 में भारत के चौथे उप-प्रधानमंत्री बने। 1971 में भारत- पाकिस्तान युद्ध के दौरान वे भारत के रक्षा मंत्री भी थे, जिसमें बांग्लादेश का जन्म हुआ था।
कांशीराम : बहुजन नायक के नाम से प्रसिद्ध राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक कांशीराम ने 1984 में बहुजन समाज पार्टी की स्थापना की। बाबा साहेब आंबेडकर के विचारों पर चलते हुए कांशीराम ने लगातार दलितों और पिछड़ों के लिए काम किया। 1991-1996 तक उत्तर प्रदेश के इटावा से सांसद रहे राम ने 2001 में मायावती को अपना उत्तराधिकारी चुनने की घोषणा कर दी थी।
राम विलास पासवान : 1980 के दशक में बिहार में दलित नेता के रूप में उभरे रामविलास पासवान नौ बार लोकसभा सांसद तथा दो बार राज्यसभा सांसद रहे। सन 2000 में जनता दल टूटने के बाद लोक जनशक्ति पार्टी बनायी और लंबे समय तक वे केंद्र में मंत्री भी रहे। रामविलास के पास छः प्रधानमंत्रियों के साथ काम करने का अनूठा रिकॉर्ड भी है।
मायावती : मायावती चार बार उत्तर प्रदेश की मुख्यमंत्री रही हैं। वह भारत में अनुसूचित जाति की पहली महिला मुख्यमंत्री और BSP की राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। 1989 में इन्होंने बिजनौर लोकसभा सीट से पहली जीत हासिल की। इस चुनाव के बाद मायावती लोगों के बीच बेहद लोकप्रिय हो गईं। वह भारत में दलित समाज की बड़ी नेता मानी जाती हैं।
प्रकाश आंबेडकर : बाबासाहेब के पोते और भारिप बहुजन महासंघ के नेता प्रकाश आंबेडकर की गिनती महाराष्ट्र के बड़े दलित नेताओं में होती है। उनकी राजनीति अलग है। वह वह लेफ्ट, सोशलिस्ट और दलितों की सारी पार्टियों को साथ लेकर चलना चाहते हैं। जयंत पाटिल, लेफ्ट के अशोक ढवले, प्रकाश रेड्डी और जनता दल के कई नेता उनके साथ हैं।

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