अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने टीवी इंटरव्यू में जेब से निकाली छपी हुई ट्वीट, बोले, “ये देखिए, मैंने जिन युद्धों को खत्म किया” ! विशेषज्ञ बोले- “दावे अतिशयोक्तिपूर्ण”!
डोनाल्ड ट्रंप ने फिर किया शांतिदूत होने का दावा
अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने एक लाइव इंटरव्यू के दौरान अपनी जेब से एक छपी हुई ट्वीट (Printed Tweet) निकालकर दावा किया कि उन्होंने अपने कार्यकाल में “कई युद्धों को समाप्त” किया था। उन्होंने उस ट्वीट को कैमरे के सामने लहराते हुए कहा कि उनके कार्यकाल में अमेरिका ने दुनिया के कई हिस्सों में “शांति” स्थापित की। ट्रंप ने कहा, “मैंने एक छोटी सी लिस्ट तैयार की है। देखिए, ये वे युद्ध हैं, जिन्हें मैंने खत्म किया। कोई दूसरा राष्ट्रपति ये नहीं कर सका।”
🚨⚡️ Trump brought a printed sheet to the 60 Minutes interview with a list of “wars he ended” 😂👇
– Cambodia and Thailand
– Kosovo and Serbia
– Congo and Rwanda
– Pakistan and India
– Israel and Iran
– Egypt and Ethiopia
– Armenia and Azerbaijan
– Israel and Hamas-: He even… pic.twitter.com/8d9gIa4Yuz
— RussiaNews 🇷🇺 (@mog_russEN) November 3, 2025
ट्रंप के दावे: आठ युद्ध खत्म करने की बात
ट्रंप ने इंटरव्यू में कहा कि उन्होंने अपने शासनकाल में 8 प्रमुख संघर्षों को समाप्त कराया। उनके अनुसार इन संघर्षों में शामिल हैं –
1. मध्य पूर्व में इज़राइल–गाज़ा संघर्ष में अस्थायी युद्धविराम,
2. अफगानिस्तान से अमेरिकी सेनाओं की वापसी,
3. उत्तर कोरिया के साथ परमाणु टकराव से बचाव,
4. इराक में हिंसा में कमी,
5. भारत–पाक सीमा पर “तनाव को रोकने में मध्यस्थता”,
6. सोमालिया और सूडान में अमेरिकी हस्तक्षेप का अंत,
7. सीरिया में अमेरिकी उपस्थिति घटाना,
8. और लीबिया में संघर्ष-विराम की प्रक्रिया।
ट्रंप ने कहा, “मैंने सैनिकों की घर वापसी करवाई है। हमने न केवल जंगें खत्म कीं, बल्कि अरबों डॉलर और हजारों जानें बचाईं।”
विश्लेषकों का जवाब – ‘सच्चाई कुछ और है’
हालांकि, अमेरिकी और अंतरराष्ट्रीय विश्लेषकों ने ट्रंप के इस बयान को अति-बढ़ा-चढ़ाकर पेश किया गया दावा बताया है। रिपोर्ट के अनुसार, जिन युद्धों को ट्रंप ने समाप्त बताया, उनमें से कई अब भी जारी हैं या केवल “तीव्रता में कमी” आई है। विशेषज्ञों का कहना है कि ट्रंप का योगदान कुछ मामलों में राजनयिक दबाव तक सीमित था, न कि स्थायी समाधान तक। ट्रंप द्वारा बताए गए 8 युद्धों में से केवल एक, अफगानिस्तान से अमेरिकी वापसी ही वास्तविक रूप से उनके प्रशासन में पूरी हुई। बाकी संघर्ष या तो जारी हैं, या उनकी शर्तों में केवल अस्थायी विराम आया है। ट्रंप के “शांति समझौतों” का दीर्घकालिक असर सीमित माना गया है।
भारत–पाक युद्ध के दावे पर नई बहस
ट्रंप ने अपने बयान में भारत–पाकिस्तान के बीच 2019 के बालाकोट के बाद उत्पन्न तनाव को भी “रोकने का श्रेय” खुद को दिया। उन्होंने कहा कि “अगर मैंने हस्तक्षेप नहीं किया होता, तो दोनों देशों के बीच परमाणु युद्ध छिड़ सकता था।” हालांकि, भारत सरकार के सूत्रों ने इस दावे को “भ्रमित करने वाला” बताया और कहा कि उस समय भारत ने पूरी स्थिति को अपने स्तर पर नियंत्रित किया था।
‘शांति-प्रचारक’ की छवि बनाने की कोशिश
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि ट्रंप अपने आगामी चुनावी अभियान से पहले खुद को “शांति-दूत (Peacemaker)” के रूप में प्रस्तुत करने की कोशिश कर रहे हैं। उनके हालिया भाषणों में बार-बार “मैंने जंगें खत्म कीं, दूसरों ने शुरू कीं” जैसी पंक्तियां सुनाई देती हैं। रिपब्लिकन समर्थकों के बीच ट्रंप की यह छवि लोकप्रिय हो रही है, जबकि डेमोक्रेट्स का मानना है कि यह “राजनीतिक प्रचार” है, जिसमें तथ्यों से अधिक भावनात्मक भाषा का उपयोग किया जा रहा है।
ट्रंप का अंदाज़- शब्दों से हमला
कभी X पर तंज, तो कभी प्रेस कॉन्फ्रेंस में विवादास्पद बयान! ट्रंप की राजनीतिक शैली बड़बोलेपन की मिसाल बनती जा रही है। डोनाल्ड ट्रंप का राजनीतिक सफर हमेशा उनके तीखे और बेबाक बयानों से भरा रहा है। चाहे चुनावी मंच हो या सोशल मीडिया, ट्रंप अपनी बात को कड़े शब्दों में और नियंत्रण से परे कहने के लिए जाने जाते हैं। उनके ट्वीट्स और भाषणों ने कई बार घरेलू और अंतरराष्ट्रीय विवादों को जन्म दिया।
उन्होंने 2019 में संयुक्त राष्ट्र महासभा में कहा था कि “कोई भी नेता मुझसे ज्यादा दुनिया को सुरक्षित नहीं रख सका।”
2020 में कोविड-19 संकट के दौरान उन्होंने कहा कि “वायरस चला जाएगा, बस हवा की तरह”—जिस बयान की उस समय दुनियाभर में आलोचना हुई।
हाल ही में, उन्होंने कहा कि “अगर मैं राष्ट्रपति होता, तो यूक्रेन पर हमला कभी नहीं होता”, जिसे विशेषज्ञों ने “आत्मप्रशंसा और भ्रामक तुलना” बताया।
बड़बोलापन या आत्मविश्वास ?
ट्रंप समर्थक इसे “बोलने का साहस” बताते हैं। उनका कहना है कि ट्रंप ने अमेरिकी राजनीति में उस ‘राजनयिक दिखावे’ को तोड़ा, जिसमें नेता हर बात सोच-समझकर कहते हैं। वहीं आलोचकों का मानना है कि ट्रंप का बढ़बोलापन असंवेदनशीलता और तथ्यहीन आत्मप्रचार की हद तक पहुंच गया है।राजनीतिक विश्लेषक थॉमस पॉलसन के अनुसार, “ट्रंप का अंदाज़ उन्हें भीड़ में लोकप्रिय बनाता है, लेकिन यही उन्हें संस्थागत राजनीति से दूर भी कर देता है।”
अंतरराष्ट्रीय मंचों पर विवाद
1- ट्रंप की बढ़बोली शैली सिर्फ अमेरिका तक सीमित नहीं रही। उन्होंने यूरोपीय सहयोगियों पर “NATO में मुफ्तसुरक्षा खाने ” का आरोप लगाया था।
2- चीन को “वायरस निर्माता देश” कहने से राजनयिक तनाव बढ़ गया था।
3- भारत-पाक संघर्ष के मामले में उन्होंने खुद को “मध्यस्थ” कहकर नई कूटनीतिक असहजता पैदा कर दी थी।
ट्रंप का बड़बोलापन दोधारी तलवार साबित हुआ है। जहां यह उनके समर्थकों में “मजबूत नेता” की छवि बनाता है, वहीं विरोधियों को यह “असंगत और असंवेदनशील” प्रतीत होता है। विशेषज्ञों का मानना है कि इसी अंदाज़ ने उन्हें एक जनप्रिय लेकिन विभाजनकारी नेता बना दिया। 2024 के चुनावों में उनकी भाषण शैली को देखते हुए, विश्लेषक कहते हैं, “ट्रंप बोलते कम नहीं, सोचते कम हैं।”
ट्रंप की भाषा: राजनीति या प्रदर्शन ?
अमेरिकी राजनीति में ट्रंप की भाषा को “परफॉर्मेटिव पॉलिटिक्स” कहा जाता है, जहां वे हर मंच को शो में बदल देते हैं। उनके शब्द अकसर अपमान, तंज और अतिशयोक्ति से भरे होते हैं, लेकिन समर्थकों के लिए वे “सीधे और सच्चे” नेता हैं। डोनाल्ड ट्रंप का बड़बोलापन अब उनकी राजनीतिक पहचान बन चुका है। चाहे वह युद्ध खत्म करने के दावे हों, विदेशी नेताओं पर आरोप, या अमेरिकी मीडिया पर तंज, ट्रंप हर बार अपनी बात उसी जोर-शोर से रखते हैं। ट्रंप का यह बड़बोलापन उन्हें बार-बार विवादों में तो लाता है, पर साथ ही अमेरिकी राजनीति में उन्हें अलग और सुर्खियों में भी बनाए रखता है।
शांति दूत, या राजनीतिक प्रचारक ?
डोनाल्ड ट्रंप का छपी हुई ट्वीट लहराकर खुद को “युद्ध-समाप्ति करने वाला राष्ट्रपति” बताना भले ही राजनीतिक रूप से प्रभावशाली कदम हो, लेकिन तथ्य बताते हैं कि वास्तविकता इतनी सरल नहीं है। उनके कुछ कदमों से तत्काल हिंसा में कमी जरूर आई, पर अधिकांश मोर्चों पर संघर्ष आज भी जारी है। फिलहाल ट्रंप के इस बयान ने अंतरराष्ट्रीय स्तर पर फिर से यह बहस छेड़ दी है कि, क्या वह वाकई “शांति के निर्माता” हैं या “राजनीतिक प्रचारक”?
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