१५ अगस्त की सुबह रोहन स्कूल जाने के लिए बहुत उत्साहित था। सवेरे तैयार होकर स्कूल पंहुचा। प्रिंसीपल सर ने बड़ी शान से तिरंगा फहराया, सबने मिलकर राष्ट्रगीत गाया। आजादी के मतवाले शहीदों को श्रध्दांजली अर्पित की गई और नन्हा रोहन हाथ में तिरंगा लेकर घर लौटा। स्कूल में छुट्टी थी, पापा का दप्तर भी बंद था, सो पिताजी के साथ शाम को सैर पर निकल पडा। रास्ते में उसे जगह–जगह वही तिरंगा फेंका हुआ दिखाई दिया। रोहन ने सभी तिरंगो को इकट्ठा किया और बडे जतन से घर लाकर रख दिया। वह कुछ परेशान सा दिखाई दे रहा था। मैंने उससे इसकी वजह पूछी। उसने बदले मे जो सवाल मुझसे किया उसने मुझे बेचेन और निरुत्तर कर दिया। उसने कहा, ‘हम जिस तिरंगे के सामने सबेरे सर झुकाते है, उसी को कूडे में क्यों डाल देते है? हम वर्ष में २ दिन अपनी आजादी का जशन क्यों मनाते है? यदि हम आजाद है तो आप मुझे अकेले पार्क में क्यू नही जाने देती? दीदी को दोस्तो के साथ बाहर जाने की इजाजत क्यो नहीं मिलती? कभी उन्हें घर लौटने में देर हो जाए तो आप इतनी परेशान क्यों होती है ?