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December 16, 2025

NASA का खुलासा: पराली की आग क्यों हो रही गायब? सैटेलाइट भी खा रहे मात, आधिकारिक आंकड़ों पर उठे सवाल

The CSR Journal Magazine
उत्तर भारत में पराली जलाने की समस्या ने अब एक नया और ज्यादा खतरनाक मोड़ ले लिया है। NASA के ताज़ा अध्ययन ने खुलासा किया है कि पंजाब और हरियाणा में किसान पराली जलाने का समय बदल चुके हैं। यह बदलाव न केवल वायु प्रदूषण को और गंभीर बना रहा है, बल्कि सरकारी निगरानी व्यवस्था और आधिकारिक आंकड़ों की सच्चाई पर भी सवाल खड़े कर रहा है।

पराली जलाने का बदला हुआ समय, सैटेलाइट हुए फेल

NASA के वैज्ञानिकों के मुताबिक, किसान अब पराली शाम 4 से 6 बजे के बीच जला रहे हैं। यह वही समय है जब MODIS और VIIRS जैसे प्रमुख निगरानी उपग्रह अपना दैनिक चक्कर पूरा कर चुके होते हैं। ये सैटेलाइट दिन में केवल एक या दो बार ही किसी क्षेत्र को स्कैन करते हैं, इसलिए देर शाम लगी आग उनके रिकॉर्ड में दर्ज ही नहीं हो पाती। नतीजा यह कि आधिकारिक आंकड़ों में पराली जलाने की घटनाएं कम दिखाई देती हैं, जबकि हकीकत कुछ और होती है।

रातभर हवा में जहर, सुबह बनती है ‘गैस चैंबर’

विशेषज्ञों का कहना है कि शाम को पराली जलाने का असर दिन की तुलना में कहीं ज्यादा खतरनाक होता है। रात के समय हवा ठंडी और स्थिर हो जाती है, जिससे धुएं और जहरीले कण ऊपर फैलने के बजाय जमीन के पास ही जमा रहते हैं। इसका सीधा असर अगली सुबह की हवा पर पड़ता है, जो बेहद जहरीली हो जाती है। दिल्ली-एनसीआर और आसपास के इलाकों में सर्दियों के दौरान छाने वाले स्मॉग के पीछे यह एक बड़ी वजह बनता जा रहा है।

आधिकारिक आंकड़ों पर क्यों उठ रहे हैं सवाल?

थिंक टैंक iForest के एक हालिया अध्ययन ने सरकारी दावों की पोल खोल दी है। अध्ययन के अनुसार, किसान जानबूझकर उपग्रहों के गुजरने के बाद पराली जलाते हैं ताकि आग की घटनाएं आधिकारिक रिकॉर्ड में कम दर्ज हों। इंडियन एग्रीकल्चरल रिसर्च इंस्टीट्यूट (IARI) के आंकड़े MODIS और VIIRS डेटा पर आधारित हैं, जिनके मुताबिक 2021 के बाद पंजाब और हरियाणा में एक्टिव फायर काउंट में करीब 90% की गिरावट आई है। लेकिन iForest ने जियोस्टेशनरी सैटेलाइट डेटा का इस्तेमाल कर पाया कि ज्यादातर आग दोपहर 3 बजे के बाद लगी थी, जो पारंपरिक निगरानी सिस्टम से बाहर रह जाती है।

दावे और हकीकत में बड़ा अंतर

अध्ययन बताता है कि 2025 में पंजाब में करीब 20,000 वर्ग किलोमीटर और हरियाणा में लगभग 8,800 वर्ग किलोमीटर फसल क्षेत्र जला। हालांकि पराली जलाने में 25 से 35 प्रतिशत तक की कमी जरूर आई है, लेकिन यह सरकारी दावों में बताई गई 95 प्रतिशत गिरावट से कहीं कम है। साफ है कि समस्या घटी जरूर है, लेकिन खत्म होने से अभी बहुत दूर है।

नीति और निगरानी में बदलाव जरूरी

विशेषज्ञों का मानना है कि मौजूदा वायु गुणवत्ता प्रबंधन रणनीतियां अधूरी हैं। जब तक निगरानी सिस्टम में शाम और रात के समय की आग को शामिल नहीं किया जाएगा, तब तक पराली जलाने के वास्तविक योगदान को सही तरीके से नहीं आंका जा सकता। अनुमान है कि सर्दियों के प्रदूषण में पराली जलाने की हिस्सेदारी 5 से 10 प्रतिशत तक हो सकती है, जिसे अभी कम करके आंका जा रहा है।
NASA और iForest के इन खुलासों ने साफ कर दिया है कि पराली जलाने की समस्या केवल खेतों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह डेटा, नीति और निगरानी की खामियों से भी जुड़ी है। अगर समय रहते रणनीति नहीं बदली गई, तो आंकड़े भले ही “साफ” दिखें, लेकिन हवा और सेहत दोनों बदतर होती जाएंगी।
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