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July 3, 2025

दिल्ली हाईकोर्ट ने पतंजलि से कहा- डाबर के ख़िलाफ़ भ्रमात्मक प्रचार बंद करें

दिल्ली उच्च न्यायालय ने डाबर च्यवनप्राश के खिलाफ कथित रूप से अपमानजनक विज्ञापन प्रसारित करने के पतंजलि के विज्ञापन पर बृहस्पतिवार को रोक लगा दी। न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा की पीठ ने पतंजलि को विज्ञापन प्रसारित करने से रोकने का अनुरोध करने वाली डाबर की अंतरिम याचिका को स्वीकार कर लिया। अदालत ने मामले की अगली सुनवाई के लिए 14 जुलाई की तारीख तय की है।

बढ़ा डाबर और पतंजलि का विवाद

डाबर इंडिया लिमिटेड को अंतरिम राहत देते हुए, दिल्ली उच्च न्यायालय ने गुरुवार को पतंजलि आयुर्वेद को उन विज्ञापनों को वापस लेने का निर्देश दिया जो कथित तौर पर डाबर के च्यवनप्राश को बदनाम करते हैं। यह अंतरिम आदेश न्यायमूर्ति मिनी पुष्करणा ने डाबर द्वारा दायर एक मुकदमे के जवाब में पारित किया, जिसमें पतंजलि पर अपने लंबे समय से स्थापित उत्पाद को कमजोर करने के उद्देश्य से भ्रामक दावे करने का आरोप लगाया गया था। अंतरिम आवेदन को स्वीकार करते हुए अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 14 जुलाई को तय की।

डाबर ने लगाया पतंजलि पर Product Defamation का आरोप

डाबर ने दो अंतरिम Temporary Injunction प्रस्तुत किए, जिसमें इस बात पर प्रकाश डाला गया कि दिसंबर 2024 में जारी सम्मन के साथ शुरू की गई कानूनी कार्यवाही के बावजूद, पतंजलि ने एक ही सप्ताह के भीतर छह हजार से अधिक बार ऐसे विज्ञापन प्रसारित किए जो कथित तौर पर डाबर के उत्पाद को बदनाम करते थे। डाबर का प्रतिनिधित्व करते हुए, वरिष्ठ अधिवक्ता संदीप सेठी ने तर्क दिया कि पतंजलि के विज्ञापनों में झूठा दावा किया गया था कि उनका च्यवनप्राश 51 से अधिक जड़ी-बूटियों से बना है, जबकि वास्तव में केवल 47 जड़ी-बूटियों का उपयोग किया गया था। उन्होंने फॉर्मूलेशन में पारे की मौजूदगी का भी आरोप लगाया, जिससे बच्चों की सुरक्षा को लेकर चिंता जताई गई।

डाबर ने कहा- पतंजलि का दावा भ्रामक

डाबर की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता संदीप सेठी ने दलील पेश करते हुए कहा, “पतंजलि ने भ्रामक और गलत दावा कर यह जताने की कोशिश की कि वही एकमात्र असली आयुर्वेदिक च्यवनप्राश बनाता है, जबकि डाबर जैसे पुराने ब्रांड को साधारण बताया गया।” सेठी ने यह भी बताया कि अदालत द्वारा दिसंबर 2024 में समन जारी किए जाने के बावजूद, पतंजलि ने एक ही सप्ताह में 6,182 भ्रामक विज्ञापन प्रसारित किए। डाबर ने यह भी कहा कि वह च्यवनप्राश के बाजार में 61.6 फीसदी हिस्सेदारी रखता है और पतंजलि का इस तरह का प्रचार एक प्रतिस्पर्धी रणनीति है जो ब्रांड की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुंचा सकता है।

पतंजलि की दलील

पतंजलि की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता जयंत मेहता ने सभी आरोपों का खंडन करते हुए कहा कि उनके उत्पाद में सभी जड़ी-बूटियां आयुर्वेदिक मानकों के अनुसार हैं। उत्पाद पूरी तरह से मानव उपभोग के लिए सुरक्षित है और उसमें कोई हानिकारक तत्व नहीं पाया गया। जबकि डाबर ने तर्क दिया कि पतंजलि पहले भी ऐसे विवादास्पद विज्ञापनों के लिए सुप्रीम कोर्ट में अवमानना के मामलों में घिर चुका है। इससे साफ है कि वह बार-बार ऐसा करता है।

पहले शरबत विवाद में फंसे थे रामदेव

बाबा रामदेव ने 3 अप्रैल को पतंजलि के शरबत की लॉन्चिंग की थी। उन्होंने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर कहा था कि एक कंपनी शरबत बनाती है और उससे जो पैसा मिलता है, उससे मदरसे और मस्जिदें बनवाती है। बाबा रामदेव ने कहा था कि जैसे लव जिहाद और वोट जिहाद चल रहा है, वैसे ही शरबत जिहाद भी चल रहा है।
इसके खिलाफ ‘रूह अफजा’ शरबत बनाने वाली कंपनी हमदर्द ने दिल्ली हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। कंपनी की ओर से वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने दलीलें दीं। रोहतगी ने कहा कि यह धर्म के नाम पर हमला है। इस मामले में दिल्ली हाईकोर्ट ने VIDEO पर नाराजगी जताई। जस्टिस अमित बंसल ने कहा कि यह बयान माफी लायक नहीं है। कोर्ट की फटकार के बाद पतंजलि के फाउंडर रामदेव ने कहा कि हम ऐसे सभी VIDEO हटा लेंगे, जिनमें धार्मिक टिप्पणियां की गई हैं। कोर्ट ने रामदेव को एफिडेविट दाखिल करने का आदेश भी दिया।

पहले भी भ्रामक विज्ञापन केस में कोर्ट से माफी मांग चुके रामदेव

डाबर और हमदर्द के केस के अलावा पहले भी बाबा रामदेव ने अपने बयानों और दावों के लिए माफ़ी मांगी है।
अगस्त 2022: इंडियन मेडिकल एसोसिएशन (IMA) ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की, आरोप था कि पतंजलि कोविड और दूसरी बीमारियों के इलाज के झूठे दावे कर रही है।
नवंबर 2023: सुप्रीम कोर्ट ने पतंजलि को भ्रामक विज्ञापनों पर रोक लगाने का आदेश दिया, लेकिन आदेश के बाद भी कंपनी ने प्रचार जारी रखा।
27 फरवरी 2024: कोर्ट ने पतंजलि को फिर फटकार लगाई और बाबा रामदेव-आचार्य बालकृष्ण को व्यक्तिगत रूप से हाजिर होने का आदेश दिया।
मार्च-अप्रैल 2024: कोर्ट ने अवमानना की कार्रवाई की चेतावनी दी, कहा- आदेश न मानने पर सजा हो सकती है।
2025: बाबा रामदेव और बालकृष्ण ने माफीनामा दिया, कोर्ट ने केस बंद किया।

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