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December 3, 2025

दिल्ली में 14 इलाकों में 400 से ऊपर पहुंचा AQI- ट्रैफिक धूल सर्द हवाओं ने बढ़ाई राजधानी की घुटन !

The CSR Journal Magazine

 

दिल्ली की हवा लगातार हमारी उम्मीदों को धोखा दे रही है। हर साल की तरह इस बार भी प्रदूषण का स्तर खतरनाक स्थिति में पहुंच चुका है और नागरिक एक बार फिर विषैली हवा में सांस लेने को मजबूर हैं। सवाल यह है कि इतने प्रयासों, योजनाओं और अभियानों के बावजूद हवा सुधर क्यों नहीं रही? दिल्ली प्रदूषण को केवल एक मौसम में होने वाली परेशानी की तरह देखती रही है, जबकि यह एक सालभर चलने वाली लड़ाई है। सर्दी आते ही हवा की गति कम होने से धुआं ऊपर नहीं उठ पाता, खेतों में पराली जलने की घटनाएं हवा को ज़हर से भर देती हैं, और दिल्ली–एनसीआर में लाखों वाहनों का उत्सर्जन पहले से ही बड़ी चुनौती है। ऊपर से निर्माण कार्य, औद्योगिक धुआं और धूल के बगैर नियंत्रण की स्थिति वातावरण को और भी घना, भारी और जहरीला बना देती है।

दिल्ली की हवा- आख़िर कब मिलेगी राहत की एक सांस?

राजधानी दिल्ली एक बार फिर जहरीली हवा की गिरफ्त में है। बुधवार को 14 प्रमुख मॉनिटरिंग स्टेशनों पर एयर क्वालिटी इंडेक्स (AQI) 400 के पार दर्ज किया गया, जिससे स्थिति ‘सीवियर’ श्रेणी में पहुंच गई। मंगलवार को दिल्ली के कुल प्रदूषण में ट्रांसपोर्ट सेक्टर की वजह से 18.4 प्रतिशत सबसे अधिक प्रदूषण था। इसके बाद बाहरी उद्योग 9.2 प्रतिशत, और पड़ोसी शहरों नोएडा 8.2 प्रतिशत, गाज़ियाबाद 4.6 प्रतिशत, बागपत 6.2 प्रतिशत, पानीपत 3.3 प्रतिशत और गुरुग्राम 2.9 प्रतिशत की वजह से प्रदूषण प्रदूषण रहा। बुधवार को ट्रांसपोर्ट का योगदान 15.6 प्रतिशत रहने का अनुमान है।

दिल्ली की हवा में सांस लेना हुआ मुश्किल

शहर के ऊपर फैली धुंध और स्मॉग की मोटी परत न सिर्फ दृश्यता को घटा रही है, बल्कि लोगों के लिए सांस लेना भी मुश्किल बना चुकी है। आनंद विहार, चांदनी चौक, नेहरू नगर, आर.के. पुरम और रोहिणी जैसे भीड़भाड़ वाले इलाकों में हवा सबसे ज्यादा खराब दर्ज की गई। विशेषज्ञों के अनुसार, दिल्ली की इस भयावह हालत के पीछे कई कारण एक साथ जिम्मेदार हैं। सबसे बड़ा कारण वाहनों का बढ़ता उत्सर्जन है। रोजाना लाखों वाहन सड़कों पर निकलते हैं और ट्रैफिक जाम के दौरान निकलने वाला धुआं हवा को और अधिक प्रदूषित कर देता है। इसके साथ ही निर्माण कार्य, सड़क की धूल, औद्योगिक गतिविधियां और सर्दियों के मौसम की वजह से हवा में मौजूद कण ऊपर उड़ नहीं पाते, जिससे पूरे शहर पर जहरीली परत जम जाती है।

14 सबसे प्रदूषित इलाकों की स्थिति

बुधवार को जिन 14 इलाकों में हवा सबसे खराब पाई गई, उनमें नेहरू नगर (AQI 436), चांदनी चौक (431), आर.के. पुरम (420), रोहिणी (417), विवेक विहार (415), सीरिफोर्ट (408), बवाना (408), जहांगीरपुरी (406), वज़ीरपुर (406), आनंद विहार (405), जवाहर लाल नेहरू स्टेडियम क्षेत्र (405), ओखला फेज-2 (404), अशोक विहार (403) और सोनिया विहार (400) शामिल हैं। इन सभी इलाकों में ट्रैफिक का दबाव, घनी आबादी, धूल, औद्योगिक उत्सर्जन और सर्दियों में चलने वाली बेहद धीमी हवाएं मुख्य कारण मानी जा रही हैं।
इन्हीं इलाकों में निर्माण और तोड़फोड़ के चलते उड़ने वाली महीन धूल भी हवा की गुणवत्ता को खतरनाक स्तर तक ले जाने में बड़ी भूमिका निभा रही है। कई स्थानों पर भारी वाहनों का आवागमन, बस डिपो, औद्योगिक इकाइयां और पुरानी संकरी सड़कें अतिरिक्त प्रदूषण फैलाती हैं। मौसम वैज्ञानिकों का कहना है कि कम तापमान और ‘टेम्परेचर इन्वर्ज़न’ के कारण हवा में मौजूद प्रदूषक ऊपर उठकर बंट नहीं पाते, बल्कि जमीन के स्तर पर ही अटके रहते हैं, जिससे स्मॉग का दबाव लगातार बढ़ रहा है।

दिल्ली की हवा क्यों बिगड़ी?

वाहन धुएं और निर्माण धूल के साथ-साथ कचरा जलाना, घरेलू ईंधन का उपयोग और बाहरी राज्यों से आने वाला प्रदूषण भी दिल्ली की हवा को जहरीला बना रहा है। सर्दियों में हवा की गति गिर जाती है, जिससे प्रदूषण का फैलाव लगभग रुक जाता है। नतीजतन, शहर के ऊपर एक मोटी जहरीली परत जम जाती है। स्वास्थ्य विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि ऐसी हवा में लंबे समय तक रहने से सांस लेने में कठिनाई, आंखों में जलन, खांसी और फेफड़ों पर सीधा असर पड़ सकता है। बच्चों, बुजुर्गों और अस्थमा या दिल की बीमारियों से जूझ रहे लोगों के लिए यह हवा बेहद खतरनाक साबित हो सकती है।

क्या हालात और बिगड़ सकते हैं?

मौसम विभाग के अनुसार, तापमान में और गिरावट तथा धीमी हवा के चलते आने वाले दिनों में प्रदूषण का स्तर और बढ़ सकता है। अगर हवा नहीं चली, तो शहर को राहत मिलने की उम्मीद बेहद कम है।दिल्ली में फैलता यह प्रदूषण संकट फिर इस बात का प्रमाण है कि राजधानी की हवा कई स्रोतों के मिलेजुले असर से खतरनाक होती है, जिसमें ट्रैफिक, धूल, उद्योग, मौसम और कचरा जलाना जैसे तत्व एक साथ योगदान करते हैं। फिलहाल प्रशासन हालात पर नजर रखे हुए है, लेकिन शहर को राहत दिलाने के लिए सख्त और दीर्घकालिक उपायों की आवश्यकता लगातार महसूस की जा रही है।

सरकार, किसान, और आम नागरिक- सबको होना होगा ज़िम्मेदार

ज़िम्मेदारी केवल सरकारों पर या किसानों पर डालकर समस्या का हल नहीं निकलेगा। दिल्ली की हवा तब तक नहीं सुधरेगी, जब तक वाहनों की संख्या नियंत्रित करने, सार्वजनिक परिवहन को मज़बूत करने, उद्योगों की निगरानी कड़ी करने और पराली के वैज्ञानिक समाधान को ज़मीनी स्तर पर लागू नहीं किया जाता। नागरिकों को भी अपनी भूमिका निभानी होगी। अनावश्यक गाड़ियों का इस्तेमाल कम करना, प्रदूषण फैलाने वाली गतिविधियों से बचना और जागरूकता फैलाना भी उतना ही ज़रूरी है। दिल्ली की हवा को साफ़ करना किसी एक दिन का काम नहीं बल्कि एक निरंतर प्रयास है। जब तक इरादे कड़े और कार्रवाई सख़्त नहीं होगी, तब तक यह शहर हर सर्दी उसी जहरीले धुएं में डूबा रहेगा। हवा की लड़ाई असली मायनों में तभी जीती जाएगी जब हम सब मिलकर इसे अपनी प्राथमिकता बनाएं, क्योंकि साफ़ हवा किसी लग्ज़री नहीं, बल्कि हमारी बुनियादी ज़रूरत है।
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