पानी की एक बूंद की एहमियत प्यासे से बढियाँ और कौन बता सकता है, जल है तो कल है इस तरह की बातें हम हमेशा किताबों और सरकारी विज्ञापनों में जरूर सुनते और पढ़ते है लेकिन जब जल संरक्षण की बात आती है तो हम तनिक भी नहीं सोचते। कहते है बूँद बूँद से सागर बनता है लेकिन अगर वक़्त रहते हम पानी की हर बूंदों को नहीं बचाएंगे तो एक दिन ऐसा भी आएगा कि सागर भी अपने अस्तित्वा की लड़ाई लड़ेगा। जल संरक्षण की बात उठी है तो ना सिर्फ हमें बारिश की हर बूँद को रोकना चाहिए बल्कि सरकार और जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्रालय समंदर के खारे पानी को भी मीठे पानी में तब्दील करने पर काम कर रही है। जल संरक्षण मामलेमें नागपुर में सरकार ऐसा प्रोजेक्ट लेकर आयी है कि मानों आम के आम, गुठलियों के भी दाम…ये कहावत चरितार्थ हो रहा है।
आपको सुनकर जरूर हैरानी होगी कि आपके टॉयलेट के पानी से सरकार करोड़ों रुपये कमा रही है, अब तक आपको लगता रहा होगा कि भला टॉयलेट का पानी किस काम का, लेकिन टॉयलेट का पानी सरकार कोकरोड़ों रुपये कमा कर दे रही है, टॉयलेट और फ्लश का पानी भी बड़े काम का है और मार्केट में इसकी वैल्यू करोड़ों में है। आप जिस टॉयलेट के पानी को गंदा समझकर यूं ही नालियों में बहा देते हैं उसी को नागपुर में सरकारी एजेंसी ने 78 करोड़ रुपये में बेचा है। अब इस पानी से शहर में 50 एसी बसें चलाई जा रही हैं। केंद्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने बताया कि नागपुर में वैकल्पिक ईंधन को लेकर कई प्रयोग किए जा रहे हैं। इनमें से एक टॉयलेट के पानी से बायो सीएनजी निकालकर उससे बस चलाने की योजना है। अभी ऐसी 50 बसें सड़कों पर दौड़ रही हैं।
वैकल्पिक ईंधन में भारत के विमानन उद्योग में क्रांति का नया आगाज हो गया है। देश के पहले बायो फ्यूल विमान ने देहरादून से दिल्ली के बीच उड़ान भर इतिहास रच दिया। आने वाले दिनों में बायो फ्यूल से न केवल तेल आयात पर देश की निर्भरता कम होगी, बल्कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में भी यह कदम महत्वपूर्ण साबित होगा। बायो फ्यूल के इस्तेमाल से विमानन कंपनियों को घाटे से उबरने में भी मदद मिलेगी। इससे कंपनियों की ईंधन पर खर्च होने वाली लागत में कमी आएगी। इन सब के साथ साथ पेट्रोलियम मंत्रालय के अधीन काम करने वाली तेल व गैस कंपनियों के साथ एक करार किया गया है, जिसके तहत गंगा किनारे बसे 26 शहरों को लाभ मिलेगा। जल व परिवहन मंत्री नितिन गडकरी की माने तो पानी की गंदगी से निकलने वाली मीथेन गैस से बायो सीएनजी तैयार की जाएगी, जिससे 26 शहरों में सिटी बसें चलेंगी। इस काम से 50 लाख युवाओं को भी रोजगार मिलेंगे। इससे गंगा की सफाई भी होगी।
अपने सामाजिक जिम्मेदारी को समझते हुए पर्यावरण संरक्षण के लिए कॉरपोरेट कंपनियों के साथ साथ लोगों में भी जागरूकता आई है, साथ ही इसे अब सरकार का भी सहयोग मिल रहा है। सिटीजन सोशल रेस्पॉसिबिलिटी का महत्व समझते हुए लोग भी नई-नई तकनीकों के जरिए गंदगी को पैसे कमाने का जरिया बना रहे हैं। जिससे देश में पर्यावरण संरक्षण तो हो ही रहा है साथ ही फ्यूल की भी वैकल्पिक व्यवस्था बन रही है।