देश की छोटी-बड़ी, नामीगिरामी कंपनियों ने भले सीएसआर से समाज की भलाई नहीं की हो लेकिन दिल खोलकर राजनितिक पार्टियों को चंदा जरूर दिया है। राजनितिक पार्टियों को चंदा देने के मामले में बिरला, बजाज, महिंद्रा, पीरामल, जिंदल जैसी कॉरपोरेट कंपनियां शामिल है। इलेक्टोरल बॉन्ड की ये जानकारी चुनाव आयोग ने गुरुवार यानी 14 मार्च को अपनी वेबसाइट पर जारी कर दिया। वेबसाइट पर 763 पेजों की दो लिस्ट अपलोड की गई हैं। एक लिस्ट में बॉन्ड खरीदने वालों की जानकारी है। दूसरी में राजनीतिक दलों को मिले बॉन्ड की डिटेल है। गौर करने वाली बात ये है कि इस लिस्ट में अडानी अंबानी और टाटा (Adani, Ambani, Tata) का कोई नाम नहीं है।
सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया था
हम आपको बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की इलेक्टोरल बॉन्ड योजना को असंवैधानिक बताते हुए रद्द कर दिया था। चुनाव आयोग ने एसबीआई को Electoral Bond Scheme Data जारी करने का आदेश दिया था। आयोग ने आंकड़ों के मुताबिक, इलेक्टोरल बॉन्ड के खरीदारों में ग्रासिम इंडस्ट्रीज, मेघा इंजीनियरिंग, पीरामल एंटरप्राइजेज, टोरेंट पावर, भारती एयरटेल, डीएलएफ कमर्शियल डेवलपर्स, वेदांता लिमिटेड, अपोलो टायर्स, लक्ष्मी मित्तल, एडलवाइस, पीवीआर, केवेंटर, सुला वाइन, वेलस्पन, और सन फार्मा शामिल हैं।
किन पार्टियों ने कैश कराए इलेक्टोरल बॉन्ड
चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक, चुनावी बॉन्ड भुनाने वाली पार्टियों में बीजेपी, कांग्रेस, एआईएडीएमके, बीआरएस, शिवसेना, टीडीपी, वाईएसआर कांग्रेस, डीएमके, जेडीएस, राकांपा, टीएमसी, जदयू, राजद, आप और सपा शामिल हैं। बीजेपी को सबसे ज्यादा 6,060 करोड़ रुपए मिले हैं।
चुनाव आयोग के अनुसार, फ्यूचर गेमिंग, मेघा इंजीनियरिंग और क्विक्सप्लाईचैन प्राइवेट लिमिटेड समेत टॉप 20 डोनर ने अप्रैल 2019 से जनवरी 2024 के बीच कुल चुनावी बॉन्ड के 44.59% यानी 5,420.30 करोड़ रुपये के बॉन्ड खरीदे है। चुनावी बॉन्ड का डेटा 12 अप्रैल 2019 से 11 जनवरी 2024 तक का है। राजनीतिक पार्टियों को सबसे ज्यादा चंदा देने वाली कंपनी फ्यूचर गेमिंग और होटल सर्विसेज पीआर है, जिसने 1,368 करोड़ के बॉन्ड खरीदे। कंपनी ने ये बॉन्ड 21 अक्टूबर 2020 से जनवरी 24 के बीच खरीदे। कंपनी के खिलाफ लॉटरी रेगुलेशन एक्ट 1998 के तहत और आईपीसी के तहत कई मामले दर्ज हैं।
किस इलेक्टोरल बॉन्ड को कौन सी पार्टी ने भुनाया इसकी जानकारी नहीं
पूरे ब्योरे में इस बात की जानकारी नहीं है कि किस बॉन्ड को कौनसी पार्टी ने भुनाया है। इसलिए यह नहीं कहा जा सकता कि किसने किस पार्टी को चंदा दिया। 5 जनवरी से 10 जनवरी 2022 के बीच कांग्रेस, बीजेपी, शिवसेना, तृणमूल तकरीबन सभी पार्टियों ने चुनावी बॉन्ड भुनाए हैं। ये जरूर है कि सबसे बड़ी राशि भाजपा ने भुनाई है। लेकिन ये कोई छिपा तथ्य नहीं है कि चुनावी बॉन्ड योजना में सबसे अधिक करीब 80 फीसदी चंदा भाजपा को मिला है।
चुनावी या इलेक्टोरल बॉन्ड स्कीम 2017 के बजट में उस वक्त के वित्त मंत्री अरुण जेटली ने पेश की थी। 2 जनवरी 2018 को केंद्र सरकार ने इसे नोटिफाई किया। ये एक तरह का प्रॉमिसरी नोट होता है। इसे बैंक नोट भी कहते हैं। इसे कोई भी भारतीय नागरिक या कंपनी खरीद सकती है।
विवादों में क्यों आई चुनावी बॉन्ड स्कीम?
2017 में अरुण जेटली ने इसे पेश करते वक्त दावा किया था कि इससे राजनीतिक पार्टियों को मिलने वाली फंडिंग और चुनाव व्यवस्था में पारदर्शिता आएगी। ब्लैक मनी पर अंकुश लगेगा। वहीं, विरोध करने वालों का कहना था कि इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान जाहिर नहीं की जाती है, इससे ये चुनावों में काले धन के इस्तेमाल का जरिया बन सकते हैं। बाद में योजना को 2017 में ही चुनौती दी गई, लेकिन सुनवाई 2019 में शुरू हुई। 12 अप्रैल 2019 को सुप्रीम कोर्ट ने सभी पॉलिटिकल पार्टियों को निर्देश दिया कि वे 30 मई, 2019 तक में एक लिफाफे में चुनावी बॉन्ड से जुड़ी सभी जानकारी चुनाव आयोग को दें। हालांकि, कोर्ट ने इस योजना पर रोक नहीं लगाई। बाद में दिसंबर, 2019 में याचिकाकर्ता एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) ने इस योजना पर रोक लगाने के लिए एक आवेदन दिया। इसमें मीडिया रिपोर्ट्स के हवाले से बताया गया कि किस तरह चुनावी बॉन्ड योजना पर चुनाव आयोग और रिजर्व बैंक की चिंताओं को केंद्र सरकार ने दरकिनार किया था।
कोई भी इंडियन खरीद सकता था, 15 दिन की वैलिडिटी
सुप्रीम कोर्ट के तत्काल रोक लगाने से पहले चुनावी बॉन्ड स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (State Bank of India- SBI) की चुनी हुई 29 ब्रांच में मिल रहे थे। इसे खरीदने वाला इस बॉन्ड को अपनी पसंद की पार्टी को डोनेट कर सकता था। बशर्ते बॉन्ड पाने वाली पार्टी इसके काबिल हो। खरीदने वाला हजार से लेकर 1 करोड़ रुपए तक का बॉन्ड खरीद सकता था। इसके लिए उसे बैंक को अपनी पूरी KYC देनी होती थी। जिस पार्टी को ये बॉन्ड डोनेट किया जाता, उसे पिछले लोकसभा या विधानसभा चुनाव में कम से कम 1% वोट मिलना अनिवार्य था। डोनर के बॉन्ड डोनेट करने के 15 दिन के अंदर, बॉन्ड पाने वाला राजनीतिक दल इसे चुनाव आयोग से वैरिफाइड बैंक अकाउंट से कैश करवा लेता था। नियमानुसार कोई भी भारतीय इसे खरीद सकता है। बॉन्ड खरीदने वाले की पहचान गुप्त रहती है। इसे खरीदने वाले व्यक्ति को टैक्स में रिबेट भी मिलती है। ये बॉन्ड जारी करने के बाद 15 दिन तक वैलिड रहते हैं।
ये हैं राजनीतिक दलों के Top Donors of Electoral Bonds
– फ्यूचर गेमिंग और होटल सर्विसेज – 1,368 करोड़ रुपये
– मेघा इंजीनियरिंग एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड – 966 करोड़ रुपये
– क्विक सप्लाई चेन प्राइवेट लिमिटेड – 410 करोड़ रुपये
– वेदांता लिमिटेड – 400 करोड़ रुपये
– हल्दिया एनर्जी लिमिटेड – 377 करोड़ रुपये
– भारती ग्रुप – 247 करोड़ रुपये
– एस्सेल माइनिंग एंड इंडस्ट्रीज लिमिटेड – 224 करोड़ रुपये
– वेस्टर्न यूपी पावर ट्रांसमिशन – 220 करोड़ रुपये
– केवेंटर फूडपार्क इन्फ्रा लिमिटेड – 194 करोड़ रुपये
– मदनलाल लिमिटेड – 185 करोड़ रुपये
– डीएलएफ ग्रुप – 170 करोड़ रुपये
– यशोदा सुपर स्पेशियल्टी हॉस्पिटल – 162 करोड़ रुपये
– उत्कल एल्यूमिना इंटरनेशनल – 145.3 करोड़ रुपये
– जिंदल स्टील एंड पावर लिमिटेड – 123 करोड़ रुपये
– बिड़ला कार्बन इंडिया – 105 करोड़ रुपये
– रूंगटा संस – 100 करोड़ रुपये
– डॉ रेड्डीज – 80 करोड़ रुपये
– पीरामल एंटरप्राइजेज ग्रुप – 60 करोड़ रुपये
– नवयुग इंजीनियरिंग – 55 करोड़ रुपये
– शिरडी साई इलेक्ट्रिकल्स – 40 करोड़ रुपये
– एडलवाइस ग्रुप – 40 करोड़ रुपये
– सिप्ला लिमिटेड – 39.2 करोड़ रुपये
– लक्ष्मी निवास मित्तल – 35 करोड़ रुपये
– ग्रासिम इंडस्ट्रीज – 33 करोड़ रुपये
– जिंदल स्टेनलेस – 30 करोड़ रुपये
– बजाज ऑटो – 25 करोड़ रुपये
– सन फार्मा लैबोरेटरीज – 25 करोड़ रुपये
– मैनकाइंड फार्मा – 24 करोड़ रुपये
-बजाज फाइनेंस – 20 करोड़ रुपये
– मारुति सुजुकी इंडिया – 20 करोड़ रुपये
– अल्ट्राटेक – 15 करोड़ रुपये
– टीवीएस मोटर्स – 10 करोड़ रुपये