Cognizant का नया धमाका, एंप्लॉयीज के लैपटॉप पर मैनेजर की नजर, ऐसे पहुंचेगा हर मिनट का हिसाब ! दिग्गज IT कंसल्टिंग और आउटसोर्सिंग कंपनी Cognizant ने अपने कुछ मैनेजर्स को ऐसे सॉफ्टवेयर की ट्रेनिंग देनी शुरू की है जो एंप्लॉयीज की पूरी शिफ्ट के एक-एक मिनट पर नजर रखेगा। जानिए निगरानी वाला यह टूल कैसे काम करेगा और एंप्लॉयीज किस बात से परेशान हैं?
नए मॉनिटरिंग टूल से बढ़ी पारदर्शिता या बढ़ा तनाव?
दिग्गज IT कंसल्टिंग और आउटसोर्सिंग कंपनी Cognizant ने हाल ही में अपनी वर्कफोर्स मैनेजमेंट रणनीति में बड़ा बदलाव किया है। कंपनी ने कुछ प्रोजेक्ट्स पर काम करने वाले कर्मचारियों के लैपटॉप में ProHance नामक एक ऐसा मॉनिटरिंग टूल सक्रिय किया है, जो पूरे वर्कशिफ्ट का मिनट-टू-मिनट डेटा रिकॉर्ड करता है। इससे मैनेजर्स यह जान सकते हैं कि कर्मचारी किस समय क्या कर रहा है, कौन से ऐप खुले हुए हैं, और किस टास्क पर कितना समय दिया जा रहा है। यह कदम कंपनी के अनुसार “प्रोसेस ऑप्टिमाइजेशन” के लिए है, लेकिन कर्मचारियों में इसे लेकर बेचैनी और असंतोष साफ नजर आ रहा है।
क्या है नया ProHance मॉनिटरिंग सिस्टम?
Cognizant ने “वर्कफोर्स एनालिटिक्स सिस्टम” के रूप में ProHance एक उन्नत टूल लागू किया है, जिसका उद्देश्य कर्मचारियों के कामकाजी पैटर्न को गहराई से समझना है। यह टूल माउस मूवमेंट, कीबोर्ड उपयोग, ऐप और वेबसाइट गतिविधि, ब्रेक टाइम, टास्क-वार समय जैसी विस्तृत जानकारी रिकॉर्ड करता है। ProHance की सेटिंग ऐसी है कि अगर कर्मचारी 5 मिनट तक कोई इनपुट नहीं देता, तो उसे “Idle” यानी निष्क्रिय माना जाता है। यदि 15 मिनट तक कोई गतिविधि नहीं होती, तो उसे “Away from System” कैटेगरी में डाल दिया जाता है। रियल-टाइम डैशबोर्ड के जरिए मैनेजर यह देख सकते हैं कि टीम के कौन-कौन से सदस्य सक्रिय हैं, कौन ब्रेक पर है, किसने कौन सा ऐप कब खोला, और कुल समय किस टास्क में खर्च हुआ।
कैसे काम करती है ProHance की अड्वान्स टेक्नोलोजी
AI और डेटा एनालिटिक्स से वर्कफ्लो की गहराई तक विश्लेषण- ProHance केवल क्लिक ट्रैक करने भर का टूल नहीं है। इसमें कई हाई-टेक फीचर्स शामिल हैं:
1. इनपुट-लेवल सेंसरिंग- टूल माउस और कीबोर्ड की हर गतिविधि को टाइम-स्टैम्प के साथ रिकॉर्ड करता है।
2. एप्लिकेशन इंटेलिजेंस– किस ऐप पर कितना समय बिताया गया, कौन सा ब्राउज़र टैब उपयोग हुआ, कौन सा सॉफ़्टवेयर खुला है, इनका विश्लेषण किया जाता है।
3. वेब-एक्टिविटी मैपिंग– आवश्यक और गैर-ज़रूरी वेबसाइटों पर समय की तुलना करने के लिए यह सिस्टम URL-लेवल डेटा तैयार कर सकता है।
4. AI-आधारित प्रोडक्टिविटी पैटर्न– लगातार जमा होता डेटा एआई मॉडल को प्रोसेस इनइफिशिएंसी, लंबी देरी, दोहराए जाने वाले कार्य और Workflow Bottlenecks की पहचान करने में सक्षम बनाता है।
5. रियल-टाइम डैशबोर्ड और अलर्ट– मैनेजर मिनट-टू-मिनट टीम एक्टिविटी देख सकते हैं और अचानक निष्क्रियता या सिस्टम से दूर रहने पर टूल अलर्ट भेज सकता है।
Cognizant का दावा: मॉनिटरिंग नहीं, प्रोसेस सुधार
Cognizant का कहना है कि ProHance कर्मचारियों की “जासूसी” के लिए नहीं है। इसका मुख्य उद्देश्य वर्कफ्लो में मौजूद अक्षम प्रक्रियाओं को हटाना, क्लाइंट डिलीवरी को सुचारु बनाना और प्रोजेक्ट मैनेजमेंट को अधिक डेटा-ड्रिवन बनाना है। Cognizant यह भी कह रही है कि यह डेटा कर्मचारियों की परफॉर्मेंस रेटिंग पर सीधे असर नहीं डालेगा। इसके अलावा, Cognizant ने यह भी बताया है कि टूल उन्हीं प्रोजेक्ट्स में लागू किया गया है जहां क्लाइंट वर्क-टाइम एनालिसिस की मांग रखते हैं।
कर्मचारियों की नाराज़गी और चिंताएं
Cognizant कर्मचारियों को अब “हर क्लिक पर नजर” वाली मानसिकता का डर सता रहा है। कई कर्मचारी इस निगरानी को लेकर असहज महसूस कर रहे हैं। उनकी प्रमुख चिंताएं हैं-
प्राइवेसी का हनन: उन्हें लगता है कि ProHance उनकी हर गतिविधि को रिकॉर्ड कर रहा है, जिससे निजी स्वतंत्रता खत्म होती है।
अनिवार्य सहमति– कर्मचारियों ने बताया कि टूल की ट्रेनिंग और “I Agree” बटन दबाना अनिवार्य था, जिससे यह सहमति मजबूरी जैसी लगती है।
मानसिक दबाव– हर सेकंड ट्रैक होने का एहसास काम का तनाव बढ़ा देता है। छोटी-बड़ी ब्रेक्स भी मैनेजर को दिखने लगती हैं।
परफॉर्मेंस से जोड़ने का डर– भले ही कंपनी ऐसा न कहे, लेकिन कर्मचारियों में भय है कि “Idle Time” कहीं अप्रत्यक्ष रूप से उनके मूल्यांकन में शामिल न हो जाए।
क्यों ले रही हैं कंपनियां ऐसे फैसले?
रिमोट वर्क, प्रोडक्टिविटी वॉर और डेटा-ड्रिवन मैनेजमेंट का बढ़ता दबाव कई कंपनियों को ऐसे कदम उठाने को मजबूर कर रहा है। आज की IT इंडस्ट्री में रिमोट/हाइब्रिड कार्य, ग्लोबल क्लाइंट्स की कड़ी अपेक्षाएं, डिलीवरी टाइम में सुधार और लागत घटाने का दबाव बढ़ रहा है। इन कारणों से कंपनियां माइक्रो-लेवल डेटा एनालिसिस की ओर तेजी से बढ़ रही हैं। इस तरह के मॉनिटरिंग टूल कंपनियों को यह समझने में मदद करते हैं कि कौन से कार्य सबसे अधिक समय लेते हैं और प्रोसेस कहां अटक रहा है।
सुधार या दबाव- दोनों रास्ते खुले
Cognizant का यह कदम तकनीकी दृष्टि से उन्नत और व्यावसायिक रूप से तर्कसंगत हो सकता है, लेकिन कर्मचारियों के लिए यह नई चुनौती लेकर आया है। भविष्य में यह मॉडल तभी सफल होगा जब कंपनी इसकी उपयोग नीति में पारदर्शिता लाएगी। कर्मचारियों की सहमति सच में स्वैच्छिक होगी और परफॉर्मेंस मूल्यांकन में इस डेटा का दुरुपयोग न हो।तकनीक आगे बढ़ रही है, और उसके साथ यह बहस भी कि कार्यस्थल की निगरानी कितनी होनी चाहिए और कर्मचारियों की प्राइवेसी कितनी सुरक्षित रहनी चाहिए।
भारत में डेटा प्राइवेसी निगरानी पर नियम और Cognizant जैसे कंपनियों के कानूनी जोखिम
भारत में DPDP/Rules लागू होने के कारण नियोक्ता डेटा प्रोसेस कर सकते हैं, पर कड़ी शर्तों के साथ ! भारत का नया ढांचा Digital Personal Data Protection Act, 2023 (DPDP Act) और उसके लागू होने वाली DPDP Rules, 2025 अब डिजिटल व्यक्तिगत डेटा की प्रोसेसिंग को नियंत्रित करता है। कानून एम्प्लॉयीज को “Employment Purposes” जैसी वैधानिक वैधता देता है ताकि कर्मचारी-सम्बंधित डेटा बिना अलग सहमति के भी प्रोसेस किया जा सके, लेकिन यह प्रोसेसिंग कई अनिवार्य शर्तों और सुरक्षा/पारदर्शिता नियमों के अधीन होगी।
DPDP Act / Rules के वे प्रमुख सिद्धांत जो निगरानी पर सीधे असर डालते हैं
1.1 वैध आधार- “Purposes of employment”
कानून स्पष्ट करता है कि कुछ “Legitimate Uses” के तहत नियोक्ता कर्मचारियों का डेटा बिना स्वतंत्र सहमति के प्रोसेस कर सकते हैं जिसमें Employment Purposes और नियोक्ता को नुकसान/दायित्व से बचाने वाले मकसद शामिल हैं। परंतु यह छूट अनियंत्रित नहीं है। नियमों के अनुरूप होना होगा और उद्देश्य सीमित/स्पष्ट होना चाहिए।
1.2 ट्रांसपेरेंसी और नोटिस-देना (Transparency & Notice)
डेटा फिड्युशियरी (Organization) को यह स्पष्ट करना होगा कि कौन-सा डेटा क्यों एकत्र/प्रोसेस किया जा रहा है, किस वैध आधार पर, किस अवधि तक रखा जाएगा और किसे साझा किया जाएगा, यानी कर्मचारियों को सूचित करना अनिवार्य है। Rules में यह और अधिक विस्तृत किया गया है (डेटा कॉन्टैक्ट, Grievance/Queries Contact आदि)।
1.3 न्यूनतम-आवश्यकता और उद्देश्य-सीमितता (Data minimisation & Purpose limitation)
कंपनियों को सिर्फ़ वही डेटा लेना चाहिए जो उद्देश्य के लिए आवश्यक हो। मिनट-टू-मिनट क्लिक-लॉग/की-प्रेस जैसी सूचनाएं तभी ली जानी चाहिए जब वे “नियोजित उद्देश्य” के लिए आवश्यक हों और वैकल्पिक कम-निहित विकल्प उपलब्ध नहीं हों।
1.4 सुरक्षा और रिपोर्टिंग (Security, Breach notification)
डेटा को सुरक्षित रखने के लिए “Reasonable Security Safeguards” लागू करने होंगे। डेटा ब्रीच होने पर DPDP Rules के तहत नियमानुसार बोर्ड और प्रभावित व्यक्तियों को सूचना देने के कड़े नियम हैं (Rules में 72-घंटे जैसी समयबद्ध आवश्यकताएं व संबंधित दंडों का प्रावधान)।
1.5 अधिकार (Data principal rights) और शिकायत-निवारण (Grievance)
कर्मचारी (data principal) के पास पहुंच, सुधार आदि अधिकार होंगे। साथ ही Rules के तहत कंपनियों को संपर्क/शिकायत मार्ग देना होगा और बड़े फिड्युशियरी के लिए DPO/डेटा अधिकारी की नियुक्ति जैसी ज़रूरतें आ सकती हैं।

