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August 15, 2025

कैसे फटता है बादल? क्या वाक़ई फटता भी है! क्या इस तबाही का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है?

The CSR Journal Magazine
जम्मू-कश्मीर के किश्तवाड़ जिले में फटा बादल! हिमाचल प्रदेश में एक बार फिर बादल फटने से मची तबाही! उत्तरकाशी के धराली में बादल फटने से मिटा गांव का वजूद! पहाड़ों से सरके मलबे में दफ़न हुआ आर्मी कैंप! सैकड़ों लोगों के मिट्टी में समा जाने की आशंका! क्या होता है बादलों का फटना? क्या वाकई बादल फटने जैसी कोई घटना होती है? अगर हां, तो आख़िर पहाड़ों पर ही क्यों फटते हैं बादल?

बादल फटने की निरंतर घटनाओं में जानमाल की भारी क्षति

Jammu Kashmir Cloudburst: किश्तवाड़ में बादल फटने से भारी तबाही हुई है। 40 लोगों की मौत की खबर है। जम्मू कश्मीर के किश्तवाड़ जिले के चिशोती गांव में बादल फटने से अचानक बाढ़ आ गई, जिससे मचैल माता यात्रा मार्ग प्रभावित हुआ। लोगों को बचाने के लिए मौके पर बचाव दल पहुंच गया। जानकारी के अनुसार इस आपदा में तक़रीबन 40 लोगों के मारे जाने की आशंका है।
हिमाचल प्रदेश में एक बार फिर से मॉनसून की बारिश ने जमकर कहर बरपाया है। श्रीखंड महादेव की पहाड़ियों पर बादल फटने से कुल्लू के बंजार की तीर्थन घाटी, निरमंड और शिमला के रामपुर के गानवी गांव में जमकर नुकसान हुआ है। यहां पर तीर्थन घाटी (Tirthan Valley) में गाड़ियों और कॉलेज के अलावा, सड़कों को नुकसान हुआ है।
मणिमहेश यात्रा के लिए अलर्ट जारी किया गया है। यहां पर एक श्रद्धालु की पत्थर लगने से मौत हुई है। शिमला के रामपुर में तकलेच में पहाड़ी से पत्थर गिरने से 20 साल की लड़की मौत हो गई। कुल पांच लोगों की मौत बीते 36 घंटे में हुई है।
उत्तरकाशी के धराली में हुई भीषण तबाही ने सभी को झकझोर दिया है। जान-माल का भारी नुकसान हुआ और आर्मी कैंप भी प्रभाव‍ित हुआ है। अभी भी सेना के कई जवान लापता हैं। कई लोगों का पता नहीं चल पा रहा है। राहत कार्य अभी भी जारी है। इस सबके बीच एक आम सवाल उठा कि आख़िर बादल फटना क्या होता है?

क्यों फटते हैं बादल

बादल फटने की घटनाएं अक्सर तेज गरज के साथ होने वाले बारिश के दौरान होती हैं। इस स्थिति में नमी वाले बादल बड़ी मात्रा में एक जगह पर इकट्ठा होते हैं और पानी की बूंदें एक साथ मिल जाती हैं। इन बूंदों का भार ज्यादा होने के कारण बादल की डेंसिटी बढ़ जाती है और अचानक तेज बारिश होने लगती है। ऐसे में जब गर्म हवा की धाराएं बारिश की बूंदों के साथ मिलकर सामान्य बहाव में बाधा पैदा करती हैं, जिससे पानी जमा हो जाता है और बादल फट जाता है।

अधिकतर पर्वतीय इलाकों में होती है घटना

किसी स्थान पर एक घंटे में यदि 10 सेंटीमीटर वर्षा होती है तो इसे बादल का फटना कहा जाता है। अचानक इतनी अधिक मात्रा में वर्षा होने से न सिर्फ जनहानि होती है बल्कि संपत्ति को भी नुकसान होता है। भारत मौसम विज्ञान विभाग IMD के अनुसार बादल फटने की घटना बहुत छोटे क्षेत्र में होती है और यह अधिकतर हिमालयी क्षेत्रों या पश्चिमी घाट के पर्वतीय इलाकों में हुआ करती है। जब मॉनसून की गर्म हवाएं ठंडी हवाओं के संपर्क में आती है जब बहुत बड़े आकार के बादलों का निर्माण होता है। ऐसा स्थलाकृति या पर्वतीय कारकों के चलते भी होता है। इस महीने उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में बादल फटने की घटनाएं हुईं। ये सभी पर्वतीय इलाके हैं।

कम समय में अतिवृष्टि अर्थात् बादल फटना

मौसम वैज्ञानिकों की नजर में बादल फटने की घटना अतिवृष्टि की चरम स्थिति और असामान्य घटना है। इस घटना की अवधि बहुत कम अर्थात कुछ ही मिनट होती है पर उस छोटी अवधि में पानी की बहुत बड़ी मात्रा, अचानक, बरस पड़ती है। मौसम वैज्ञानिकों की भाषा में यदि बारिश की गति एक घंटे में 100 मिलीमीटर हो तो उसे बादल फटना मानेंगे।
पानी की मात्रा का अनुमान इस उदाहरण से लगाया जा सकता है कि बादल फटने की घटना के दौरान यदि एक वर्ग किलोमीटर इलाके पर 25 मिलीमीटर पानी बरसे तो उस पानी का भार 25000 मीट्रिक टन होगा। यह मात्रा अचानक भयावह बाढ़ लाती है। रास्ते में पड़ने वाले अवरोधों को बहाकर ले जाती है। बादल फटने के साथ-साथ, कभी-कभी, बहुत कम समय के लिये ओला वृष्टि होती है या आंधी तूफान आते हैं। इसे ही बोल-चाल की भाषा में बादल फटना कहते हैं।

दरअसल एक कहावत है ‘बादल फटना’

पुराने समय में जब लोगों को इस अति वृष्टि का वैज्ञानिक पक्ष नहीं मालूम था, उन्हें लगता था कि आसमान में तैरते बादल, सम्भवतः पानी से भरे गुब्बारों की तरह होते हैं और जैसे गुब्बारे फूटते हैं, बादल भी कभी-कभी अचानक फूट सकते हैं। इस गलतफहमी के कारण पुराने लोगों ने इस घटना को बादल फटना कहा। मौसम वैज्ञानिकों का मानना है कि हकीकत में बादल फटने जैसी घटना कभी नहीं होती, अर्थात बादल कभी नहीं फटता। वैज्ञानिक खुलासे के उपरान्त गलतफहमी दूर हो गई पर शब्द अभी भी प्रचलन में बना है।

बादल फटने की कुछ बड़ी घटनाएं

पूरी दुनिया में बादल फटने की घटनाएं होती रहती हैं। 24 अगस्त 1906 को अमेरिका के ग्वायना में 40 मिनट की अल्प अवधि में 234.95 मिलीमीटर पानी बरसा था। 12 मई 1916 को जमैका के प्लम्ब प्वाइंट में 15 मिनट में 198.12 मिलीमीटर पानी गिरा था। रोमानिया के कुर्टी डे अर्गीस में 7 जुलाई 1947 को 20 मिनट में 205.74 मिलीमीटर बारिश हुई। ब्यूनसआयर्स के लाप्लेटा में 2 अप्रैल 2013 को 390 मिलीमीटर बारिश दर्ज हुई थी। यह पानी 5 घंटे में बरसा था।

भारत के पर्वतीय क्षेत्रों में कब-कब फटे बादल

कुछ लोगों का मानना है कि भारत में बादल फटने की घटनाएं केवल हिमालय क्षेत्र में ही होती हैं। इसके पीछे पूर्व की ऐसी घटनाएं हैं जिनकी स्मृति लोगों के मन से निकल नहीं पाती। उदाहरण के लिये जुलाई 1970 में उत्तराखण्ड की अलकनन्दा नदी के कैचमेंट में बादल फटने से उसका जलस्तर लगभग 15 मीटर ऊपर उठ गया था, जिसके कारण हनुमानचट्टी से लेकर हरिद्वार तक का इलाका बुरी तरह प्रभावित हुआ था।
उत्तराखण्ड में ही कुमाऊं डिवीजन के मालपा में भारी वर्षा और भूस्खलन के कारण 250 लोगों की मृत्यु हुई थी। 15 अगस्त 1997 को हिमाचल प्रदेश के शिमला जिले के चिरगांव में बादल फटने से मौत का आंकड़ा 1500 तक पहुंच गया था। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू के शिलागढ़ में 16 जुलाई 2003 को आई बाढ़ के कारण 40 लोगों की मौत हुई थी।

हिमाचल में बार-बार क्यों आती है आफत

उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, लद्दाख, जम्मू और कश्मीर में बादल फटने की घटनाओं का लम्बा इतिहास है। इस कारण अनेक लोग मानते हैं कि ये घटनाएं हिमालय क्षेत्र में बंगाल की खाड़ी या अरब सागर से आने वाली मानसूनी गर्म हवाओं और हिमालय की पहाड़ियों पर मौजूद ठंडी हवाओं के आपस में सम्पर्क में आने के कारण होती हैं। बादल फटना कोई असामान्य घटना नहीं है। ऐसी घटनाएं ज़्यादातर हिमालयी राज्यों में होती हैं, जहां Local Topology, Wind System, और निचले-ऊपरी वायुमंडल के बीच Temperature Gradient ऐसी घटनाओं के लिए सुविधाजनक होता है।
हिमालयीन इलाकों के अलावा मुम्बई (26 जुलाई, 2005, कुल वर्षा 950 मिलीमीटर, अवधि 8 से 10 घंटे), दिल्ली के पालम (26 जुलाई, 2005, कुल वर्षा 950 मिलीमीटर, अवधि 8 से 10 घंटे ), पूना के खडकवासला स्थित नेशनल डिफेंस अकादमी (29 सितम्बर, 2010) और पूना के ही एक इलाके पाषाण (04 अक्टूबर, 2010) में हुई हैं।
इन घटनाओं के आधार पर यह कहना कठिन है कि बादल फटने की घटना केवल मानसून के प्रारम्भिक दिनों में ही होती है। उदाहरण यह भी बताते हैं कि यह घटना देश के किसी भी भाग में कभी भी हो सकती है।

क्या हो सकती है भविष्याणी

उल्लेखनीय है कि 4 अक्टूबर 2010 को पाषाण में हुई बादल फटने की घटना का पूर्वानुमान मौसम विज्ञानी किरन कुमार ने पहले ही लगा लिया था। उन्होंने इसे सभी सम्बन्धितों तक पहुंचा भी दिया था। यह दुनिया की पहली घटना थी जिसकी सटीक भविष्यवाणी समय के पहले हुई थी।
बादल फटना एक अप्रत्याशित मौसमी घटना है जिससे बाढ़ तक आ सकती है, जो पानी के बहाव के साथ बड़ी मानव बस्तियों को बहा ले जा सकती है। ये बाढ़ पेड़ों को उखाड़ सकती है और पत्थरों और अन्य मलबे को बहा ले जा सकती है। नीचे जाते समय पानी, गति और बल प्राप्त करता है और रास्ते में आने वाली हर चीज को बहा सकता है। बादल फटने से पहाड़ी इलाकों में भूस्खलन भी हो सकता है, जबकि मैदानी इलाकों में यह तेजी से बाढ़ ला सकता है। आमतौर पर हिमालयी क्षेत्र में बादल फटने के ज़्यादातर मामले छोटी घाटियों में होते हैं, इसलिए Doppler Redar से भी उनका पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है। भारत के अलावा पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी बादल फटने की घटनाओं के अनेक उदाहरण हैं।

भविष्य में लगाया जा सकेगा आसमानी आफत का पूर्वानुमान

बादल फटने की घटनाओं को रोकना इंसानों के बस में नहीं है। मौसम विज्ञानी किरन कुमार का उदाहरण इंगित करता है कि भविष्य में बादल फटने की घटनाओं की सटीक भविष्यवाणी करना सम्भव होगा। यह लगभग बाढ़ की सटीक भविष्यवाणी की ही तरह होगा जिसमें व्यवस्था करने के लिये कुछ वक्त मिल जाएगा। वक्त मिलने के कारण जनधन के नुकसान को कुछ हद तक कम किया जा सकेगा। संचार माध्यमों की मदद से सन्देश जन-जन तक पहुंचाया जा सकेगा। नागरिकों और उनके कीमती सामान को सुरक्षित इलाकों में भेजा जा सकेगा। अनावश्यक आवाजाही और अफवाहों पर रोक लगाई जा सकेगी। लोगों के रुकने और भोजन का इन्तजाम करना सम्भव होगा, पर बाढ़ जनित हानियों को कम करना सम्भव प्रतीत नहीं होता। संक्षेप में, हमें कुदरत के साथ तालमेल कर रहना सीखना होगा और अपने प्रयासों के दायरे को बढ़ाने पर लगातार काम करना होगा, वरना कुदरत हमें यूंही घुटनों पर लाती रहेगी और ज़िंदगी को मात देती रहेगी।

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