क्या आपने कभी सोचा है कि आपका कचरा आपके लिए खाने का जरिया बन सकता है? छत्तीसगढ़ के अंबिकापुर शहर में एक ऐसा ही अनोखा प्रयास किया गया है, जिसने देशभर में सुर्खियां बटोरी हैं। यहां नगर निगम ने एक ऐसे ‘गार्बेज कैफे’ की शुरुआत की है, जहां लोग प्लास्टिक कचरा जमा करके मुफ्त में भोजन और नाश्ता प्राप्त कर सकते हैं। यह पहल न केवल शहर को साफ रखने में मदद कर रही है, बल्कि गरीबों और बेघरों को भरपेट भोजन भी दे रही है।
प्लास्टिक के बदले पकवान
हम अक्सर पानी पीकर प्लास्टिक की बोतलों को सड़क पर, पार्क में और यहां-वहां बेपरवाही से फेंक देते हैं। इसके बाद कचरा बीनने वाले इसी कचरे को उठाकर ले जाते हैं। ये बात सुनने में बिल्कुल आम लगती है, लेकिन इसी आम सी बात को एक बेहतरीन सोच में बदला है छत्तीसगढ़ में स्थित अंबिकापुर शहर के एक कैफे ने, जहां प्लास्टिक के कचरे के बदले में लोगों को मुफ्त में पेटभर खाना मिलता है। आधा किलो प्लास्टिक कचरा देने पर नाश्ता मिलता है, जिसमें समोसा, इडली जैसे व्यंजन शामिल हो सकते हैं। एक किलो प्लास्टिक कचरा देने पर एक पूरी पौष्टिक थाली दी जाती है, जिसमें रोटी, सब्जी, दाल और चावल होते हैं।
गार्बेज कैफ़े- एक पंथ दो काज
अंबिकापुर में 2019 में शुरू किए गए भारत के पहले गार्बेज कैफे ने महत्वपूर्ण परिणाम देते हुए शहर में प्लास्टिक कचरे को 66 टन तक कम कर दिया है, जो 2020 में 292 टन से घटकर 2024 में 226 टन हो गया है। छत्तीसगढ़ नगर निगम द्वारा शुरू किया गया यह कैफे कचरा बीनने वालों और गरीब लोगों को प्लास्टिक कचरे के बदले में पूरा भोजन उपलब्ध कराता है, जो उचित भोजन का खर्च वहन नहीं कर सकते। इस कैफे ने यहां वायु की गुणवत्ता में सुधार लाने के अलावा शहर को भारत के सबसे स्वच्छ शहरों में से एक का खिताब दिलाने में भी मदद की है।
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— meraqi_co (@meraqi_co) September 7, 2019
कैसे काम करता है यह अनोखा कैफे
अंबिकापुर नगर निगम द्वारा संचालित यह ‘गार्बेज कैफे’ एक अभिनव पहल है, जो ‘स्वच्छ भारत अभियान’ को एक नया आयाम दे रहा है। यहां का नियम बहुत सरल है।
1 किलो प्लास्टिक कचरा लाओ, भरपेट भोजन पाओ: यदि कोई व्यक्ति 1 किलो प्लास्टिक कचरा, जैसे बोतलें, प्लास्टिक बैग या अन्य प्लास्टिक की चीजें जमा करता है, तो उसे कैफे में एक पौष्टिक और भरपेट भोजन (थाली) मिलता है।
आधा किलो प्लास्टिक के बदले नाश्ता: अगर कोई व्यक्ति 500 ग्राम (आधा किलो) प्लास्टिक कचरा जमा करता है, तो उसे मुफ्त में नाश्ता दिया जाता है।
यह पहल खास तौर पर उन लोगों के लिए है जो आर्थिक रूप से कमजोर हैं और जिन्हें भोजन के लिए संघर्ष करना पड़ता है।
एक साथ दो समस्याओं का समाधान
इस पहल से एक साथ दो बड़ी समस्याओं का समाधान हो रहा है।
प्लास्टिक प्रदूषण को कम करना: अंबिकापुर भारत के उन शहरों में से एक है जो स्वच्छता के मामले में बहुत आगे है। यह ‘गार्बेज कैफे’ प्लास्टिक कचरे को इकट्ठा करने का एक प्रभावी तरीका है, जिससे पर्यावरण को साफ रखने में मदद मिलती है। जमा किए गए प्लास्टिक कचरे को बाद में सड़कों के निर्माण में या अन्य पुनर्चक्रण (Recycling) कार्यों में इस्तेमाल किया जाता है।
भूख की समस्या को दूर करना: यह कैफे उन लोगों के लिए एक जीवन रेखा बन गया है जो बेघर हैं या जिनके पास भोजन खरीदने के लिए पैसे नहीं हैं। यह उन्हें अपनी गरिमा बनाए रखते हुए भरपेट भोजन प्राप्त करने का मौका देता है। यह पहल भारत सरकार के ‘स्वच्छ भारत अभियान’ और ‘गरीब कल्याण’ के उद्देश्यों को एक साथ पूरा करती है।
वर्षों से, इस कैफे ने शहर के निवासियों को प्लास्टिक के उनके जीवन पर पड़ने वाले गंभीर पर्यावरणीय प्रभावों के बारे में जागरूक करने में मदद की है, जिससे इस खतरनाक प्रदूषक, विशेष रूप से पॉलिथीन आदि के उपयोग में प्रभावी रूप से कमी आई है।
प्लास्टिक फ्री शहर बनने की और अग्रसर अंबिकापुर
स्वच्छ भारत मिशन शहरी के नोडल अधिकारी रितेश सैनी के मुताबिक प्लास्टिक के उपयोग को कम करने का कैफ़े का लक्ष्य पूरा हो गया है। उन्होंने कहा, “2019 में, कैफ़े को लगभग 5,400 किलोग्राम प्लास्टिक प्राप्त हुआ था। कोविड-19 महामारी (2020-2021) के दौरान, कैफ़े बंद रहा। बंद होने के बावजूद, नागरिकों ने बहुत कम टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न किया, जिससे कैफ़े के संचालन का उन पर प्रभाव सिद्ध हुआ। 2022 में, कैफ़े को मात्र 2,500 किलोग्राम प्लास्टिक प्राप्त हुआ और 2024 में केवल 2,000 किलोग्राम।” पर्यावरण विशेषज्ञों के अनुसार कैफे का उद्देश्य धरती को रहने के लिए एक स्वस्थ और सुरक्षित स्थान बनाना है। पर्यावरण विशेषज्ञ और मौसम विज्ञानी एमएम भट्ट ने कहा, “प्लास्टिक पर प्रतिबंध लगाना इस संबंध में सबसे महत्वपूर्ण कदम है। प्लास्टिक से रासायनिक अपशिष्ट उत्पन्न होता है जो आसानी से मिट्टी, पानी और जलवायु को दूषित कर सकता है। इस अनूठे कैफे ने ऐसे जहरीले कचरे को शहर के वातावरण में मिलने से रोक दिया है, जिससे इसके वनस्पतियों और जीवों को बचाया जा सका है।”
अंबिकापुर की पहचान ‘गार्बेज कैफे’
अंबिकापुर ने पहले भी स्वच्छता के क्षेत्र में कई नवाचार किए हैं। यहां की सॉलिड वेस्ट मैनेजमेंट प्रणाली को कई शहरों द्वारा अपनाया गया है। ‘गार्बेज कैफे’ उसी कड़ी में एक और सफल कदम है, जिसने दिखाया है कि अगर सरकार और समाज मिलकर काम करें, तो बड़ी से बड़ी समस्या का समाधान निकाला जा सकता है। अंबिकापुर को क्लीन सिटी का खिताब दिलाने में गार्बेज कैफे की यहां भूमिका रही है। गार्बेज कैफे एक प्रेरणादायक मॉडल है, जिसे देश के अन्य शहरों में भी अपनाया जा सकता है।
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