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December 17, 2025

सीमाएं बदलीं, आस्था नहीं: हिंगलाज माता और भारत–पाकिस्तान की साझी विरासत ! 

The CSR Journal Magazine

 

पाकिस्तान के बलूचिस्तान में आस्था का चमत्कार, जहां सदियों से हिंदू-मुस्लिम एक साथ पूजते हैं ‘नानी मां’! रेगिस्तान, पहाड़ और सूनी वादियों के बीच स्थित हिंगलाज माता गुफा मंदिर आज भी आस्था, एकता और साझा संस्कृति का जीवंत प्रतीक बना हुआ है।

रेगिस्तान के बीच आस्था की अमिट ज्योति

पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिमी प्रांत बलूचिस्तान में मकरान तटीय क्षेत्र के दुर्गम पहाड़ों और रेगिस्तानी विस्तार के बीच स्थित हिंगलाज माता गुफा मंदिर न केवल हिंदुओं बल्कि मुस्लिम समुदाय के लिए भी अत्यंत पवित्र स्थल माना जाता है। यह इलाका दूर-दराज़, विरल आबादी वाला और भौगोलिक रूप से कठिन है, लेकिन आस्था ने इस निर्जन क्षेत्र को सदियों से जीवंत बनाए रखा है। स्थानीय लोग इस देवी को ‘नानी मां’ के नाम से पुकारते हैं और मानते हैं कि वह पूरे क्षेत्र की रक्षक हैं। यहां आने वाला हर श्रद्धालु, चाहे किसी भी धर्म का हो, स्वयं को देवी की शरण में अनुभव करता है।

52 शक्तिपीठों में हिंगलाज का विशिष्ट स्थान

हिंदू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, हिंगलाज माता को 52 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। पौराणिक कथा के अनुसार, जब माता सती ने आत्मदाह किया और भगवान शिव उनके निर्जीव शरीर को लेकर तांडव करने लगे, तब भगवान विष्णु ने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के टुकड़े किए। जहां-जहां ये अंग गिरे, वहां शक्तिपीठ स्थापित हुए। मान्यता है कि हिंगलाज में सती का ब्रह्मरंध्र या मस्तिष्क गिरा था, जिससे यह स्थान विशेष रूप से शक्तिशाली माना जाता है। धार्मिक ग्रंथों, लोककथाओं और यात्रावृत्तांतों में इस स्थान का उल्लेख मिलता है, जो इसकी प्राचीनता की पुष्टि करता है।

न मूर्ति, न गर्भगृह- प्रकृति ही देवी का स्वरूप

हिंगलाज माता मंदिर की सबसे अनोखी और रहस्यमयी विशेषता यह है कि यहां कोई मूर्ति नहीं है। गुफा के भीतर स्थित एक प्राकृतिक पत्थर को ही देवी का स्वरूप माना जाता है। न कोई सजे-धजे गर्भगृह, न चांदी-सोने की सजावट- सिर्फ़ प्रकृति और आस्था का मेल! श्रद्धालुओं का विश्वास है कि इसी सरल और प्राकृतिक स्वरूप में देवी की सच्ची शक्ति बसती है। यही कारण है कि यहां पूजा-अर्चना भी बेहद सादगी से की जाती है।

हिंगलाज यात्रा: तपस्या, धैर्य और विश्वास की परीक्षा

हर वर्ष, विशेषकर नवरात्रि के दौरान, हज़ारों श्रद्धालु हिंगलाज यात्रा (हिंगलाज यत्रा) में भाग लेते हैं। यह यात्रा आसान नहीं होती। लंबी दूरी, रेगिस्तानी रास्ते, सीमित जल स्रोत और कठोर मौसम- इन सभी चुनौतियों के बावजूद श्रद्धालु पैदल, वाहनों और जत्थों में यात्रा करते हैं। कई श्रद्धालु इस यात्रा को तपस्या मानते हैं। उनका विश्वास है कि कठिनाइयों के बीच की गई यह यात्रा जीवन के कष्टों से मुक्ति और मनोकामनाओं की पूर्ति करती है।

हिंदू-मुस्लिम सौहार्द की दुर्लभ मिसाल

हिंगलाज माता मंदिर का सबसे प्रेरक पक्ष है धार्मिक एकता। स्थानीय मुस्लिम समुदाय देवी को ‘नानी मां’ के रूप में पूजता है और यात्रियों की सेवा को पुण्य मानता है। रास्तों में पानी, भोजन और मार्गदर्शन देने में मुस्लिम परिवार महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। कई मुस्लिम मानते हैं कि उनके पूर्वजों ने इस देवी की कृपा से कठिन समय में संरक्षण पाया था। यही कारण है कि यह स्थल आज भी साझी आस्था और विरासत का प्रतीक बना हुआ है।

इतिहास की परतों में छिपी सांस्कृतिक विरासत

इतिहासकारों के अनुसार, हिंगलाज माता का क्षेत्र प्राचीन व्यापार मार्गों और सांस्कृतिक संपर्कों का हिस्सा रहा है। सिंधु सभ्यता के पतन के बाद भी यह इलाका धार्मिक और सांस्कृतिक गतिविधियों से जुड़ा रहा। मध्यकालीन यात्रियों और विद्वानों ने भी इस स्थल का उल्लेख किया है। राजनीतिक सीमाओं, शासन परिवर्तन और आधुनिक राष्ट्र-राज्यों के निर्माण के बावजूद, हिंगलाज माता की परंपरा कभी समाप्त नहीं हुई। वर्तमान समय में, जब दुनिया धार्मिक संघर्ष और असहिष्णुता की खबरों से भरी है, हिंगलाज माता मंदिर सहअस्तित्व, सहिष्णुता और मानवता का संदेश देता है। यह स्थल बताता है कि आस्था का वास्तविक स्वरूप जोड़ने वाला होता है, विभाजित करने वाला नहीं।

भारत–पाकिस्तान साझा विरासत: सीमाओं से परे सभ्यता की निरंतर धारा

राजनीतिक विभाजन के बावजूद आस्था, संस्कृति और परंपराएं आज भी दोनों देशों को अदृश्य सूत्रों से जोड़े हुए हैं। भारत और पाकिस्तान के बीच आज जो अंतरराष्ट्रीय सीमा दिखाई देती है, वह इतिहास की दृष्टि से नई है। 1947 से पहले यह पूरा भूभाग एक साझा सांस्कृतिक, सामाजिक और धार्मिक परंपरा में बंधा हुआ था। सिंधु नदी, सरस्वती की स्मृतियां, पंजाब की लोकसंस्कृति, राजस्थान-सिंध की परंपराएं, ये सब उस साझा सभ्यता के प्रमाण हैं, जो हजारों वर्षों से विकसित होती रही।

हिंगलाज माता: साझा आस्था का जीवंत प्रतीक

पाकिस्तान के बलूचिस्तान में स्थित हिंगलाज माता गुफा मंदिर भारत-पाकिस्तान साझा विरासत का सबसे सशक्त उदाहरण है। यहां हिंदू श्रद्धालु माता के दर्शन के लिए आते हैं, वहीं स्थानीय मुस्लिम समुदाय उन्हें ‘नानी मां’ के रूप में सम्मान देता है। यह स्थल बताता है कि आस्था कभी भी केवल एक धर्म तक सीमित नहीं रहती, बल्कि लोकविश्वास के रूप में समाज में रच-बस जाती है। भारत-पाक क्षेत्र की साझा विरासत की जड़ें सिंधु घाटी सभ्यता तक जाती हैं। बाद में यहां वैदिक, बौद्ध, जैन, सूफी और भक्ति परंपराओं का विकास हुआ। कबीर, बुल्ले शाह, शाह अब्दुल लतीफ भिटाई जैसे संत-सूफियों ने प्रेम, मानवता और ईश्वर की एकता का संदेश दिया जो आज भी दोनों देशों में समान रूप से गूंजता है।

धार्मिक स्थल जो जोड़ते हैं, तोड़ते नहीं

हिंगलाज माता के अलावा भी कई स्थल भारत-पाक साझा विरासत के उदाहरण हैं-
  • ननकाना साहिब – सिख धर्म का पवित्र तीर्थ
  • शारदा पीठ – प्राचीन शिक्षा और ज्ञान का केंद्र
  • सूफी दरगाहें – जहां हर धर्म के लोग मत्था टेकते हैं। ये स्थल यह सिद्ध करते हैं कि उपमहाद्वीप की आत्मा  सहअस्तित्व में बसती है। भारत के राजस्थान और गुजरात तथा पाकिस्तान के सिंध और बलूचिस्तान में लोकगीतों की धुनें मिलती-जुलती हैं, पोशाकों और कढ़ाई में समानता है, त्योहारों और मेलों की परंपराएं एक जैसी हैं। यह  सांस्कृतिक समानता बताती है कि राजनीतिक विभाजन के बावजूद समाज की जड़ें एक ही मिट्टी में हैं।

1947 का विभाजन और टूटी हुई कड़ियां

विभाजन ने लाखों लोगों को विस्थापित किया, परिवारों को अलग किया और कई धार्मिक स्थलों को सीमाओं के पार छोड़ दिया। फिर भी आस्था और स्मृति की डोर टूटी नहीं। आज भी भारत में रहने वाले कई हिंदू परिवार हिंगलाज माता को उतनी ही श्रद्धा से याद करते हैं, जितनी पाकिस्तान में बसे लोग नानी मां को। आज जब भारत-पाक संबंध अक्सर तनाव में रहते हैं, साझा विरासत संवाद का पुल बन सकती है। हिंगलाज माता जैसे स्थल यह याद दिलाते हैं कि संस्कृति टकराव नहीं, संवाद सिखाती है! आस्था नफ़रत नहीं, करुणा सिखाती है और विरासत राजनीति से बड़ी होती है

साझा विरासत से शांति का मार्ग

इतिहासकार और सामाजिक चिंतक मानते हैं कि यदि साझा विरासत को समझा और सम्मानित किया जाए, तो यह दोनों देशों के बीच मानवीय रिश्तों को मजबूत कर सकती है। यात्राएं, सांस्कृतिक आदान-प्रदान और विरासत संरक्षण- ये सब शांति के मौन लेकिन प्रभावशाली साधन हो सकते हैं। भारत-पाकिस्तान साझा विरासत केवल अतीत की स्मृति नहीं, बल्कि वर्तमान और भविष्य का मार्गदर्शन है। बलूचिस्तान की धरती पर विराजमान हिंगलाज माता हमें सिखाती हैं कि सीमाएं इंसानों ने बनाई हैं, लेकिन आस्था, संस्कृति और मानवता की कोई सीमा नहीं होती। बलूचिस्तान के वीरान रेगिस्तान में स्थित हिंगलाज माता गुफा मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि सदियों पुरानी साझा संस्कृति, अटूट विश्वास और मानव एकता का जीवंत प्रमाण है। न मूर्ति की भव्यता, न मंदिर की दीवारें, फिर भी यहां की आस्था समय, सीमाओं और धर्मों से परे आज भी उतनी ही प्रखर है, जितनी सदियों पहले थी
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