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May 30, 2025

क्या शिवसेना (UBT) अकेले लड़ेगी BMC चुनाव? महाविकास आघाड़ी में दरार के संकेत

BMC Election Poll: सुप्रीम कोर्ट ने 6 मई को महाराष्ट्र सरकार को आदेश दिया था कि वह नोटिफिकेशन जारी करने के 4 महीने के अंदर स्थानीय निकायों के चुनाव कराए। अदालत के आदेश के बाद से ही राज्य में चुनावी माहौल बनने लगा है। अक्टूबर के पहले या दूसरे हफ्ते में बृहन्मुंबई महानगरपालिका Brihanmumbai Municipal Corporation (BMC) और अन्य नगर निकायों के चुनाव होने की उम्मीद है।
निकाय चुनाव इसलिए भी रोमांचक हो गया है क्योंकि राज्य में 6 बड़ी पार्टियां सक्रिय हैं। कई छोटे दलों ने भी कुछ सीटों पर मुकाबले को रोचक बनाया हुआ है। शिवसेना और एनसीपी में हुए विभाजन के बाद राज्य की सियासी तस्वीर बहुत हद तक बदल गई है। इधर बीजेपी महाराष्ट्र की सियासत में सबसे बड़े प्लेयर की भूमिका में है।
मुंबई की राजनीति में BMC (बृहन्मुंबई महानगरपालिका) चुनाव का महत्व किसी विधानसभा चुनाव से कम नहीं माना जाता। पिछले कुछ वर्षों से मुंबई की सत्ता का नियंत्रण शिवसेना के पास रहा है, खासकर उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में पार्टी ने नगरपालिकाओं पर अपनी पकड़ मजबूत की थी। लेकिन शिवसेना में विभाजन और फिर महाविकास आघाड़ी (MVA) का गठन, और अब उद्धव ठाकरे गुट (शिवसेना UBT) का अकेले चुनाव लड़ने का संकेत- ये घटनाक्रम मुंबई की राजनीति को नए मोड़ पर ले जा रहे हैं।

शिवसेना और MVA का गठबंधन

BMC Election Poll: 2019 में महाराष्ट्र में हुए सत्ता संघर्ष के बाद जब शिवसेना ने भाजपा से नाता तोड़ लिया, तब कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (NCP) के साथ मिलकर महाविकास आघाड़ी (MVA) गठित की गई। उद्धव ठाकरे और शरद पवार के साथ मिलकर कांग्रेस ने महाराष्ट्र में महाविकास अघाडी का निर्माण किया था। उद्धव की Shivsena MVA की सबसे बड़ी पार्टी है, जिसका मुकाबला BMC Elections में बीजेपी, एकनाथ शिंदे की सेना और अजित पवार की एनसीपी से होगा।
MVA गठबंधन वैचारिक रूप से भिन्न होने के बावजूद भाजपा के खिलाफ एकजुट होकर सत्ता में आया। उद्धव ठाकरे महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बने और इस गठबंधन को ‘Secular Front’ के रूप में पेश किया गया। हालांकि, 2022 में एकनाथ शिंदे के विद्रोह और भाजपा के समर्थन से मुख्यमंत्री बनने के बाद शिवसेना टूट गई और उद्धव ठाकरे का गुट ‘शिवसेना (UBT)’ बन गया। चुनाव आयोग ने ‘शिवसेना’ नाम और धनुष-बाण चिन्ह शिंदे गुट को दे दिया, जिससे राजनीतिक समीकरण और जटिल हो गए।

शिवसेना के अकेले BMC चुनाव लड़ने की क्यूं है संभावना

BMC Election Poll: महाराष्ट्र के सियासी गलियारों में शिवसेना के अकेले चुनाव लड़ने के संकेत देने के पीछे 2 तरह की चर्चाएं हैं। पहली चर्चा यह है कि किसी भी वक्त शरद पवार और अजित पवार साथ आ सकते हैं।
दूसरी चर्चा यह है कि सत्ता के लालच में सुप्रिया और शरद को छोड़ बाकी नेता अजित का दामन थाम सकते हैं। शरद पवार के पास 8 लोकसभा सांसद और 10 विधानसभा सदस्य है। पवार के पास वर्तमान में जितेंद्र अह्वाड और जयंत पाटिल की सीनियर नेता बचे हैं। आखिरी वक्त में अगर पवार की पार्टी के साथ कोई गेम होता है तो इसका सीधा नुकसान शिवेसना (UBT) की परफॉर्मेंस पर पड़ेगा। आखिरी वक्त में शिवसेना (UBT ) के पास कोई ज्यादा विकल्प भी मौजूद नहीं रहेगा। यही वजह है कि उद्धव अभी से अपना खुद का पिच तैयार करने में जुट गए हैं।

BMC चुनाव और राजनीतिक महत्व

BMC Election Poll: मुंबई देश की आर्थिक राजधानी है, और BMC भारत की सबसे अमीर नगरपालिकाओं में से एक है। यहां की सत्ता पर पकड़ होना केवल राजनीतिक प्रतिष्ठा का सवाल नहीं बल्कि संसाधनों और धन पर नियंत्रण भी है। 2017 के बीएमसी चुनाव में शिवसेना ने भाजपा से कड़ी टक्कर के बाद सबसे अधिक सीटें जीतकर सत्ता कायम रखी थी। MVA गठबंधन ने यह आशा जताई थी कि वे एकजुट होकर बीएमसी चुनाव लड़ेंगे और भाजपा-शिंदे गुट को बाहर रखेंगे। लेकिन शिवसेना (UBT) के BMC चुनाव में अकेले उतरने के अंदेशों ने सबको चौंका दिया है।

शिवसेना (UBT) का तर्क

BMC Election Poll: स्वाभिमान की राजनीति: उद्धव ठाकरे गुट का मानना है कि शिवसेना की एक अलग पहचान रही है और वह किसी के सहारे पर नहीं, बल्कि अपने बलबूते पर जीत हासिल कर सकती है।
जमीनी ताकत का भरोसा: शिवसेना UBT का दावा है कि मुंबई के कोने-कोने में उनके कार्यकर्ता सक्रिय हैं और पार्टी का आधार अभी भी मजबूत है।
संकट काल में अकेले लड़ा: उद्धव गुट का यह भी कहना है कि जब पार्टी को तोड़ा गया और चुनाव चिन्ह छीना गया, तब उन्होंने अकेले ही जनता का विश्वास जीतने की कोशिश की थी, और अब भी वे ऐसा कर सकते हैं।

BMC में दावेदारों की लंबी फेहरिस्त

बृहन्मुंबई नगरपालिका पर साल 1995 से शिवसेना का कब्जा है। शिवसेना में टूट के बाद भी मुंबई में उद्धव ठाकरे का मजबूत जनाधार अभी भी शेष है। पिछली बार उद्धव की पार्टी को 84 सीटों पर जीत मिली थी। BMC में पार्षदों की 236 सीटें हैं, जहां महापौर बनाने के लिए 119 सीटों पर जीत जरूरी है। उद्धव मुंबई की सभी सीटों पर जीतकर स्थानीय स्तर पर संगठन को मजबूत करने की कवायद में जुटे हैं। अगर गठबंधन में चुनाव लड़ते तो उन्हें सीट शेयरिंग करनी पड़ सकती थी। इससे बचने के लिए उद्धव ने सभी सीटों पर अकेले लड़ने का संकेत दिया है।

MVA की नाराज़गी और संभावित असर

BMC Election Poll: MVA के अन्य घटक दल – कांग्रेस और शरद पवार गुट की NCP इस फैसले से नाखुश हैं। वे मानते हैं कि भाजपा और शिंदे गुट से मुकाबले के लिए तीनों पार्टियों का साथ रहना जरूरी है।
वोट बंटने का डर: कांग्रेस और NCP को डर है कि अगर तीनों पार्टियां अलग-अलग चुनाव लड़ती हैं, तो विपक्षी दलों को फायदा हो सकता है।
गठबंधन की धार कमजोर होगी: यदि शिवसेना UBT अकेले चुनाव लड़ती है, तो यह संकेत जाएगा कि MVA की एकता केवल दिखावे की है।
आपसी विश्वास में कमी: कुछ रिपोर्टों के अनुसार, कांग्रेस और NCP नेताओं को लगता है कि उद्धव गुट केवल शिवसेना के हित की सोच रहा है, न कि पूरे गठबंधन की।

भविष्य की रणनीति: BMC Election Poll

अब सवाल यह उठता है कि क्या MVA टूट जाएगी, या यह सिर्फ एक रणनीतिक दूरी है? उद्धव ठाकरे ने अभी तक गठबंधन से बाहर निकलने की औपचारिक घोषणा नहीं की है, लेकिन उनके अकेले चुनाव लड़ने के संकेत ने गठबंधन की मजबूती पर प्रश्नचिह्न जरूर खड़े कर दिए हैं। कांग्रेस और NCP नेतृत्व अब दबाव बना सकते हैं कि अंतिम फैसले पर पुनर्विचार किया जाए। यदि बातचीत से समाधान नहीं निकला, तो MVA का अस्तित्व खतरे में पड़ सकता है।
BMC Election Poll: शिवसेना (UBT) का BMC चुनाव में अकेले उतरने का ख़याल केवल एक चुनावी रणनीति नहीं, बल्कि उसकी स्वतंत्र पहचान को दोबारा स्थापित करने की कोशिश है। लेकिन यह भी स्पष्ट है कि इस कदम से महाविकास आघाड़ी की एकता कमजोर हुई है और आगामी चुनावों में इसका असर देखने को मिल सकता है। मुंबई की राजनीति में आने वाले हफ्तों में हलचल और तेज़ होगी, और यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या शिवसेना अकेले दम पर BMC की सत्ता फिर से हासिल कर पाएगी या यह फैसला उसे भारी पड़ेगा!

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