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August 20, 2025

Bihar Election – सबसे बड़े दलबदलू हैं नागमणि, रचा अनोखा कीर्तिमान, 14वीं बार बदली पार्टी

The CSR Journal Magazine
Bihar Election – बिहार की राजनीति एक बार फिर पूर्व केंद्रीय मंत्री नागमणि के कारण सुर्खियों में है। उन्होंने एक बार फिर पार्टी बदलते हुए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का दामन थाम लिया है। यह उनका 14वां दल परिवर्तन है, जो अपने आप में एक रिकॉर्ड है। इस कदम के साथ नागमणि ने बिहार की राजनीति में एक अनोखा कीर्तिमान स्थापित कर लिया है। Politician Nagmani

14वीं बार बदली पार्टी, बीजेपी में दूसरी बार वापसी

नागमणि इससे पहले कांग्रेस, राजद, जदयू, रालोसपा, एनसीपी, बीएसपी जैसी कई पार्टियों में रह चुके हैं। वह दूसरी बार बीजेपी में शामिल हुए हैं। दिलचस्प बात यह है कि वह न सिर्फ पार्टियां बदलते रहे, बल्कि दो बार खुद की पार्टी भी बना चुके हैं, और बाद में उनका विलय भी कर चुके हैं।

1977 से राजनीति में सक्रिय

नागमणि ने 1977 में अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत अपने पिता जगदेव प्रसाद की पार्टी शोषित समाज दल से की थी। इसके बाद वह लगातार बिहार और केंद्र की राजनीति में सक्रिय रहे। उन्होंने हर बदलते राजनीतिक माहौल में खुद को नई पार्टी में ढाल लिया।

चारों सदनों में निभाई भूमिका

नागमणि देश के उन चुनिंदा नेताओं में से हैं, जो विधानसभा, विधान परिषद, राज्यसभा और लोकसभा चारों सदनों के सदस्य रह चुके हैं। 2003 में वह अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री भी रह चुके हैं।

खुद की पार्टियां भी बनाई, फिर किया विलय

2015 में नागमणि ने समरस समाज पार्टी बनाई और विभिन्न छोटे दलों को मिलाकर सोशलिस्ट सेकुलर मोर्चा बनाया। 2017 में उन्होंने शोषित इंकलाब पार्टी बनाई, जिसे बाद में बीएसपी में विलय कर दिया गया।

दल बदलने वालों की लंबी सूची

नागमणि के अलावा बिहार में और भी कई नेता हैं जो समय-समय पर पार्टियां बदलते रहे हैं।
आरसीपी सिंह – पूर्व IAS अफसर से नेता बने आरसीपी सिंह ने जदयू, फिर बीजेपी, फिर खुद की पार्टी और अब प्रशांत किशोर की जन सुराज से जुड़ गए हैं।
विजय कुमार चौधरी – कभी कांग्रेस में रहे विजय कुमार चौधरी आज जदयू के वरिष्ठ नेता हैं। उन्होंने 1982 में राजनीति में प्रवेश किया था और कई बार दल बदल चुके हैं। बिहार की राजनीति में दल-बदल अब कोई नई बात नहीं रही, लेकिन नागमणि का 14 बार पार्टी बदलना राजनीतिक स्थिरता और वैचारिक प्रतिबद्धता पर सवाल खड़े करता है। यह घटनाएं आगामी विधानसभा चुनावों में दलों के समीकरण को प्रभावित कर सकती हैं।
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