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September 2, 2025

7.35 लाख सालाना फीस, 1 लाख एडमिशन चार्ज! क्लास वन की फीस देख उड़े लोगों के होश

The CSR Journal Magazine
बेंगलुरु के निजी स्कूलों की बढ़ती फीस ने एक बार फिर नई बहस छेड़ दी, जब एक सोशल मीडिया पोस्ट से पता चला कि शहर का एक नामी स्कूल 6 साल के बच्चों की पढ़ाई के लिए एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर के सालाना पैकेज से ज्यादा फीस वसूल रहा है। क्लास-1 के बच्चे, जो ठीक से अपने जूते के फीते तक नहीं बांध पाते, उनकी मंथली फ़ीस कइयों के सालाना वेतन से भी ज़्यादा है।

प्राइवेट स्कूल फीस ने बिगाड़े लोगों के बजट

सोशल मीडिया पर अक्सर निजी स्कूलों की बढ़ती फीस (School Fees) को लेकर पैरेंट्स अपनी शिकायतें पोस्ट करते रहते हैं। लेकिन Reddit पर अब जो फीस स्ट्रक्चर सामने आया है, उसे देखकर लोगों का दिमाग घूम गया है। रेडिट पोस्ट में बताया गया है कि कैसे आजकल स्कूल, पहली क्लास में 6 साल के बच्चे की पढ़ाई के लिए एक सॉफ्टवेयर इंजीनियर के एनुअल पैकेज से भी ज्यादा फीस वसूल रहे हैं। इसके बाद से कमेंट सेक्शन में बहस छिड़ गई है। बेंगलुरु के एक प्रमुख स्कूल से Fee Slip का एक स्क्रीनशॉट सोशल मीडिया पर वायरल हो गया है, जिससे भारत में निजी शिक्षा की बढ़ती लागत के बारे में व्यापक चर्चा शुरू हो गई है। X पर साझा किए गए स्क्रीनशॉट में ग्रेड 1 के छात्रों के लिए 7.35 लाख रुपये की वार्षिक ट्यूशन फीस वसूलने का मामला सामने आया है, जिसमें ग्रेड 11-12 के लिए लागत बढ़कर 11 लाख रुपये हो जाती है। इन आंकड़ों में परिवहन, किताबें, वर्दी या पाठ्येतर गतिविधियों जैसे अतिरिक्त खर्च शामिल नहीं हैं, जो एक बच्चे के लिए कुल 8 लाख रुपये से अधिक सालाना तक पहुंचा सकते हैं।

बेंगलुरु स्कूल में 6 साल के बच्चे की फीस 7.35 लाख

वायरल हो रहे रेडिट पोस्ट के अनुसार, कर्नाटक के बेंगलुरु के एक नामी स्कूल में फर्स्ट क्लास में पढ़ने वाले छह साल के बच्चे के लिए सालाना फीस 7,35,000 रुपये है। यही नहीं, स्कूल में एडमिशन के लिए कदम रखते ही बच्चे के पैरेंट्स से 1 लाख रुपये का नॉन-रिफंडेबल चार्ज भी ले लिया जाता है। इस भारी-भरकम फीस स्ट्रक्चर को लेकर नेटिजन्स भड़के हुए हैं। ये तो छोड़िए! किताबें, यूनिफॉर्म और ट्रांसपोर्ट के अलावा ये हर महीने 61,250 रुपये हो जाते हैं, जो ज्यादातर भारतीयों की साल भर की कमाई से भी ज्यादा है। इन स्कूलों ने पैरेंट्स को यकीन दिला दिया है कि घर के डाउन पेमेंट जितना पैसा खर्च करना उनके बच्चे के फ्यूचर के लिए कितना जरूरी है। यूजर ने इस महंगे एजुकेशन सिस्टम को एक मार्केटिंग स्ट्रैटेजी बताया। उसने कहा कि पहले आर्टिफिशियल अभाव पैदा किया जाता है, फिर इंटरनेशनल सिलेबस का टैग लगा दिया जाता है, और पैरेंट्स को लगता है कि वे अपने बच्चे में इन्वेस्ट कर रहे हैं। जबकि, हकीकत ये है कि वे सामाजिक शर्मिंदगी से बचने के लिए इतने पैसे खर्च करते हैं।

क्या हम एजुकेशनल झुग्गियां बना रहे

पोस्ट के अंत में यूजर ने लिखा, ‘कुल मिलाकर हम ऐसी एजुकेशनल झुग्गियां बना रहे हैं, जहां सिर्फ बेहद अमीर लोग ही 6 साल की उम्र से क्वालिटी एजुकेशन का खर्च उठा सकते हैं। मैं इस बात पर यकीन नहीं करता कि इस हाईवे डकैती का कोई शैक्षिक औचित्य है।’ यह पोस्ट देखते ही देखते वायरल हो गई है। पोस्ट को अब तक 53 अपवोट्स मिल चुके हैं, और प्रतिक्रियाओं की झड़ी लग गई है। एक यूजर ने कमेंट किया, एजुकेशन को धंधा बना दिया है। दूसरे ने कहा, फीस के नाम पर ये सरासर डकैती है। एक अन्य यूजर ने लिखा, ऐसे स्कूल इन्फ्रास्ट्रक्चर और अन्य फैसिलिटी के लिए पैसे लेते हैं। अगर आपको दिक्कत है, तो कोई दूसरा स्कूल देख लो।

बेंगलुरु शिक्षा संस्थानों पर लग रही सवालों की झड़ी

एक X उपयोगकर्ता ने लिखा, “अमेरिकन इंटरनेशनल स्कूल चेन्नई की ट्यूशन फीस 27 लाख है। भारत में सभी प्रकार के संस्थान मौजूद हैं और लोग अपनी क्षमता के आधार पर चुनते हैं। शिकायत क्यों करें?” “जो कोई भी इसे उचित राशि मानता है उसे ज़मीन पर रहने की ज़रूरत है। यह शिक्षा है, एक बुनियादी मानव अधिकार।”एक और ने कहा। एक व्यक्ति ने कहा, “मैंने अनुभव किया है और डंके की चोट पर कह सकता हूं कि बेंगलुरु में शिक्षा और चिकित्सा संस्थान बहुत लालची हैं। उससे भी ज्यादा बड़ी बात यह है कि इनमें से अधिकांश राजनेताओं या संबंधित परिवार के सदस्यों द्वारा क़ानूनी रूप से या किसी अन्य मार्ग के माध्यम से आयोजित किए जाते हैं। क्या सरकार के पास फीस को विनियमित करने की इच्छाशक्ति है?”

महंगी शिक्षा लोगों के लिए चुनौती बन रही

शिक्षा की लागत चिंताजनक दर से बढ़ रही है। भारत में माता-पिता के लिए हाई स्कूल की फीस एक बड़ी चिंता बन गई है, महानगरीय क्षेत्रों में शुल्क बढ़ रहे हैं। शिक्षा एक मुक्त बाज़ार बन गई है। मूल्य निर्धारण व्यक्तियों पर निर्भर करता है। यह ग्राहक की पसंद है कि वे जो चाहते हैं, उसे चुनें। इस सिद्धांत में सब कुछ सही है, अधिकांश सिद्धांतों की तरह। कुछ भी ग़लत नहीं है। अपने-अपने चुनाव हैं। महंगी शिक्षा, महंगी जीवन शैली, यह एक IT जोड़े के लिए भी उतनी ही समान है, जो प्रति वर्ष 50 लाख रुपये की संयुक्त आय अर्जित करता है और जिनके दो स्कूल जाने वाले बच्चे होते हैं। भारत चरम सीमाओं की भूमि बन चुका है, जहां कोई भी अति अब अतिशयोक्ति नहीं लगती!

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