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April 16, 2025

पोईला बैशाख, बंगाली नव वर्ष की हुई शुरुवात, PM ने दी शुभकामनाएं

Poila Boishakh: आज 15 अप्रैल को देशभर में बंगाली नववर्ष पोईला बैशाख का त्योहार मनाया जा रहा है। बंगाल में नया साल बैसाख के महीने में पहले दिन को मनाया जाता है, जिसे पोईला बैसाख या बंगाली में पोइला बोइशाख के नाम से जाना जाता है। पश्चिम बंगाल के अलावा यह त्रिपुरा, असम और बांग्ला देश में मनाया जाता है। प्राचीन बंगाल के राजा शशांक को बंगाली युग की शुरुआत करने का श्रेय दिया जाता है। बंगाल के राजा शशांक 7वीं शताब्दी में बंगाल क्षेत्र में एक स्वतंत्र और एकीकृत राजनीतिक साम्राज्य बनाने वाले पहले राजा थे, जिसे गौड़ साम्राज्य कहा जाता है। उन्हें बंगाली कैलेंडर का संस्थापक भी माना जाता है। उनकी राजधानी कर्णसुवर्ण थी, जो वर्तमान में पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद में स्थित है। बंगाली कैलेंडर भी हिन्दु कैलेंडर पर ही आधारित है। बंगाल में इस दिन से नया साल का प्रारंभ हो जाता है। ‘शुभो नोबो बोरसो’ का उत्सव मनाते हुए लोग एक दूसरे को नए साल की शुभकामनाएं देते हैं। ‘शुभो नोबो बोरसो’ का मतलब होता है नए साल की शुभकामनाएं! ऐसी मान्यता है कि बंगाल में वैशाख महीना बहुत शुभ माना जाता है, और इसे हर्ष उल्लास के साथ मानते है। बंगाल में जगह-जगह इस दिन मेले का आयोजन किया जाता है। अनेक प्रकार के शुभ काम जैसे कोई नया घर लेना, विवाह, मुंडन, इसी दिन करना अच्छा माना जाता है। PM Modi ने भी ‘X’ पर सभी देशवासियों को बंगाली नववर्ष की शुभकामना दी।

पोईला बैसाख कैसे मानते हैं

Poila Boishakh: पोईला बैसाख वाले दिन सभी बंगाली भाई-बंधु अपने-अपने घरों की साफ-सफाई करते है। सुबह जल्दी उठ जाते है और सूर्य देवता को प्रणाम करते है। साफ पानी से स्नान कर, नए कपड़े पहनते है, अपने घरों और मंदिरों को चाव से सजाते हैं। फिर जोरों शोरों से पूजा-आराधना की जाती है और विभिन्न तरह के पकवान बनाए जाते है। गौ माता की विधि-विधान से पूजा की जाती है। बंगाल के व्यापारी इसे व्यापारी खातों की शुरुआत भी मानते हैं और नए बही-खाते बनाते हैं। बंगाल मे नव वर्ष वाले दिन पुआल जलाया जाता है। कहा जाता है कि पुआल में सारे पाप और कष्ट जल कर समाप्त हो जाते हैं। बंगाली लोग इस दिन श्री गणेश और माता लक्ष्मी की उपासना करते है। पोईला बैसाख के दिन घरों में पारंपरिक व्यंजन बनाते है- जैसे प्याज, हरी मिर्च वाली हिल्सा मछली, जिसे ‘पांत-भात’ कहा जाता है। मिठाई के रूप मे ‘रोसोगुल्ला’ और अनेक प्रकार के छेने की मिठाइयां भी शामिल होती है। महिलाएं पीले रंग की साड़ी तथा पुरुष धोती कुर्ता पहनते हैं। भजन और कीर्तन भी किये जाते हैं। सभी मिलकर धरती पर सुखमय जीवन व खुशहाली की प्रार्थना करते है। बारिश अच्छी हो, इसके लिये बादलों की भी पूजा की जाती है।

Poila Boishakh का महत्व

Poila Boishakh: बंगाली पंचांग अनुसार पोइला बैशाख के दिन सभी बंगाली नए साल के नई बही खाते, किताबें और नया कैलेंडर ख़रीदते हैं, जिसके अंतर्गत बंगाली रीति-रिवाजों, अनुष्ठानों और त्योहारों के सभी वर्तमान अपडेट और शुभ तिथियां और अवसर शामिल हैं। इस अवसर पर, जब रिश्तेदारों का दौरा होता है, तो उन्हें बंगाली मिठाई या रसगुल्ला, मिष्टी दोई और सौंदेश जैसे मीठे-मीठे पकवानों को खिलाकर मुंह मीठा किया जाता है। शाम को सभी लोग अपने घरों पर मिठाई तैयार करते हैं या फिर मिठाई की दुकानों से खरीदारी की जाती है। यह बंगाली नव वर्ष का दिन होता है, इसलिए इस दिन पश्चिम बंगाल में आधिकारिक छुट्टी होती है।
इस दिन की शुरुआत रवींद्रनाथ टैगोर के संगीत गाते हुए करते हैं। इस दिन लाल किनारों के साथ सफेद साड़ी पहनकर महिलाएं और पारंपरिक धोती-कुर्ता पहने पुरुष नए साल के पहले दिन को चिह्नित करने के लिए एशो बैसाख गाते हैं। बांग्लादेश में बहुत बड़ी संख्या में बंगाली आबादी शामिल है और समान जातीयता को साझा करते हुए, पोइला बैसाख को पश्चिम बंगाल की तरह ही धूमधाम से मनाया जाता है। इस दिन को बंगाल में कई सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ मनाया जाता है। यहां तक कि पश्चिम बंगाल की राज्य सरकार द्वारा जुलूस निकाले जाते हैं। इस दिन बच्चे और युवा, बुजुर्गों के पैर छूते हैं और आशीर्वाद मांगते हैं और साथ ही अपने रिश्तेदारों को मिठाई और अन्य उपहार देते हैं। नए कपड़े पहने जाते हैं, जो बिक्री से लाए जाते हैं, जो चोइत्रा के महीने में शुरू होता है, मतलब बंगाली कैलेंडर का जो आखिरी महीना होता है। इस दिन दुकानदारों और व्यापारियों द्वारा अपने स्टोरों और दुकानों पर भारी भीड़ खींचने की होड़ लगी होती है। Poila Boishakh: व्यापारियों द्वारा नए व्यापारिक वर्ष की शुरुआत भी पोइला बैसाख के दिन ही होती है। इस दिन व्यापारी अपने व्यापार कारोबार की पूजा करते हैं, दुकान में भगवान लक्ष्मी और गणेश जी की और बही खातों की पूजा करते है।बही खाते पर स्वस्तिक का शुभ चिह्न अंकित करते हैं, जिसे ‘हल खाता’ कहते हैं। सभी ग्राहकों को अपनी दुकानों या कार्यालयों में बुलाते हैं, मिठाईया बांटते हैं और एक दूसरे को शुभकामनाएं देते है।बंगाली ऐसा मानते हैं कि इस दिन घरों और व्यावसायिक स्थलों में माता लक्ष्मी की पूजा करने से पूरे साल घर में और व्यापार में धन की कमीं नहीं होती।

पोईला बैसाख का इतिहास

Poila Boishakh: इतिहास के अनुसार पोइला बैसाख से जुड़े सभी कार्यक्रम मुगल राजा अकबर के समय से प्रचलित हैं। कहा जाता है कि मुगलों के समयकाल में किसानों से कृषिकर एकत्रित करने के लिए हिजरी कैलेंडर का पालन किया गया था। हिजरी कैलेंडर, विशुद्ध रूप से चंद्र कैलेंडर होता है, जो चन्द्रमा की कलाओं से दिन तय करता है। लेकिन ये फसल के साथ मेल नहीं खाता था, जिससे किसानों को मुश्किल होती थी, क्योंकि उन्हें मौसम के विरुद्ध फसल देने पर मजबूर किया जाता था। बादशाह अकबर को अपने हिसाब से कर या राजस्व इकट्ठा करने के लिए दुविधा उठानी पड़ती थी, क्योंकि वह फसल कटाई के मौसम के हिसाब से मेल खाने वाला नहीं था। इस बात को ध्यान में रख कर मुगल सम्राट अकबर ने कैलेंडर में परेशानी सुधारने के लिए हिंदू विद्वानों को बुलाया। सबसे विचार करने के बाद यह फैसला लिया और आदेश दिया कि सौर प्रणाली पर आधारित एक हिंदू कैलेंडर तैयार किया जाए और यह गर्मियों के पहले दिन से उनकी शुरुआत हो। 1584 में नया कृषि वर्ष कैलेंडर प्रस्तुत किया गया, उसी के बाद से ही ‘बंगबाडो’ या बंगाली नव वर्ष का प्रारंभ हुआ।
बंगाली नव वर्ष के उत्सव का पता पुराने ढाका में महिफ़राश के बंगाली मुस्लिम मछुआरे समुदाय से लगाया जा सकता है । मुगल काल के दौरान, महिफ़राश, खेती की कटाई के मौसम की शुरुआत को चिह्नित करने के लिए अपने अज़ीमपुर मैदानों में दावतों और भोजों का आयोजन करने के लिए जाने जाते थे। यह दिन भर चलने वाला उत्सव उस चीज का अग्रदूत था जो बाद में पारंपरिक पोहेला बैशाख उत्सव के रूप में विकसित हुआ।

अतीत को छोड़ नए के स्वागत का दिन Poila Boishakh

इस दिन बंगाली, नया वर्ष या पोइला बैसाख के एक दिन पहले भगवान का आशीर्वाद लेने के लिए मंदिरों में जाते हैं, अपने परिवार और दोस्तों से मिलते हैं और साथ में समय बिताते हैं। पोहेला बैशाख को लंबे समय के बाद दोस्तों और परिवार को एकजुट करने के लिए भी जाना जाता है। यह एकता और पुनर्मिलन का समय है, और अतीत को पीछे छोड़ते हुए दोस्तों और परिवार के साथ सुखद समय बिताने का समय है। मान्यता के अनुसार चैत्र के आखिरी दिन जिसका कुछ भी बकाया हो, उसे पूरा करना जरूरी होता है, नहीं तो इसे अशुभ माना जाता है। उसके दूसरे दिन या नए साल के पहले दिन, मकान मालिक अपने किराएदारों को मिठाई के साथ मुंह मीठा करवाते हैं। नया वर्ष हर सभ्यता में शुभता का प्रतीक होता है। पोइला बैसाख भी बंगाली सभ्यता के नए शुरुआत को दर्शाता है।

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