app-store-logo
play-store-logo
December 2, 2025

Bawani Imli: 52 शहीदों की फांसी और 37 दिन तक लटके शव, आइए जानते हैं फतेहपुर का भूला हुआ इतिहास

The CSR Journal Magazine
फतेहपुर जिले के बिंदकी उपविभाग के पास स्थित एक विशाल इमली का पेड़ आज भी इतिहास की सबसे दर्दनाक घटनाओं का गवाह है। स्थानीय लोगों के अनुसार, 28 अप्रैल 1858 को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी की सेना ने इसी पेड़ की शाखाओं पर ठाकुर जोधा सिंह अटैया और उनके 51 साथियों सहित कुल 52 स्वतंत्रता सेनानियों को फांसी दी थी। यह स्थान आज “बावनी इमली” के नाम से प्रसिद्ध है और लोगों की श्रद्धा का केंद्र बना हुआ है।

1857 का विद्रोह और स्थानीय संघर्ष

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम की पहली क्रांति 1857 में भले ही मेरठ से शुरू हुई थी, लेकिन इसका असर फतेहपुर क्षेत्र में भी गहरा पड़ा। ठाकुर जोधा सिंह अटैया ने रानी लक्ष्मीबाई और तात्या टोपे से प्रेरित होकर हजारों किसानों और स्थानीय युवाओं को संगठित किया। उन्होंने फतेहपुर का खजाना और न्यायालय अपने कब्जे में लिया और ब्रिटिश सेना के खिलाफ गुरिल्ला युद्ध छेड़ दिया। क्रांतिकारियों ने कर्नल पॉवेल को भी युद्ध में हराया।

गिरफ्तारी और फांसी का आदेश

हालांकि, ग़द्दारों की सूचना पर ब्रिटिश सैनिकों ने जोधा सिंह और उनके 51 साथियों को गांव घूरा के पास गिरफ्तार कर लिया। मुकदमा चलाने के बजाय अंग्रेज़ अधिकारियों ने 28 अप्रैल को सार्वजनिक रूप से फांसी देने का आदेश दिया ताकि विद्रोहियों के मनोबल को तोड़ा जा सके। कैदियों को उसी विशाल इमली के पेड़ पर लटकाया गया।

खुला मैदान और भयावह दृश्य

स्थानीय गवाह बताते हैं कि फांसी का दृश्य इतना भयानक था कि आसपास के ग्रामीण, महिलाएं और बच्चे डर और सदमे में पड़ गए। अंग्रेज़ों ने चेतावनी दी कि जो भी शवों को उतारने की कोशिश करेगा, उसे भी उसी सजा का सामना करना पड़ेगा। शव 37 दिनों तक पेड़ की शाखाओं पर लटकते रहे, और यह दृश्य स्थानीय लोगों के दिलों पर गहरा प्रभाव छोड़ गया।

गुप्त अंतिम संस्कार और स्मृति निर्माण

3 जून 1858 की रात को स्थानीय राजा भवानी सिंह ने ब्रिटिश आदेश की अवहेलना करते हुए शहीदों के शव उतारे और 4 जून को शिवराजपुर घाट पर अंतिम संस्कार कराया। बाद में, गांव के लोगों ने उसी स्थल को शहीद स्थल घोषित किया और पेड़ के नीचे एक स्मारक पत्थर रखा, जिस पर लिखा गयाI यहीं 52 अमर बलिदानी फांसी पर चढ़ाए गए।

आज भी जिंदा है उनकी कहानी

आज बावनी इमली का पेड़ समय के थपेड़ों के बावजूद खड़ा है। इसकी शाखाएं बूढ़ी हो चुकी हैं, लेकिन इसके नीचे खड़े होने पर उस भयानक घटना की याद ताजा होती है। स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस पर लोग यहां दीपक जलाकर और फूल अर्पित करके उन शहीदों को श्रद्धांजलि देते हैं। बावनी इमली अब केवल एक पेड़ नहीं, बल्कि स्वतंत्रता के लिए हुए अमर बलिदान का प्रतीक बन चुकी है।
Long or Short, get news the way you like. No ads. No redirections. Download Newspin and Stay Alert, The CSR Journal Mobile app, for fast, crisp, clean upda
App Store – https://apps.apple.com/in/app/newspin/id6746449540
Google Play Store – https://play.google.com/store/apps/details?id=com.inventifweb.newspin&pcampaignid=web_share

Latest News

Popular Videos