M5 चिपसेट, 120Hz डिस्प्ले और नए Dual Knit Band के साथ Apple का अगला बड़ा कदम, लेकिन क्या आम उपभोक्ता इसे अपनाएंगे? Apple ने अपने मिक्स्ड-रियलिटी हेडसेट Vision Pro का नया संस्करण M5 चिपसेट के साथ लॉन्च किया! यह वही डिवाइस है जिसने “स्पैशल कंप्यूटिंग” को वास्तविक रूप में संभव बनाया, जहां इंसान अपनी आंखों, आवाज़ और हाथों से डिजिटल दुनिया को नियंत्रित कर सकता है।
Apple Vision Pro M5 – एक्चुअल और वर्चुअल दुनिया का मिक्स प्रोडक्ट
Apple ने अपने क्रांतिकारी मिक्स्ड रियलिटी हेडसेट Vision Pro का नया संस्करण M5 चिप के साथ बाजार में उतारा है। यह हेडसेट ‘स्पैशल कंप्यूटिंग’ यानी आभासी और वास्तविक दुनिया के संगम का अनुभव देने वाला अब तक का सबसे उन्नत मॉडल बताया जा रहा है। कंपनी का दावा है कि इस डिवाइस में पहले से तेज प्रोसेसर, ज्यादा स्पष्ट डिस्प्ले और लंबे समय तक पहनने में आराम जैसी खूबियां हैं। भारत में इसकी शुरुआती कीमत लगभग ₹3,89,999 तय की गई है, जो इसे अब तक का सबसे महंगा कंज्यूमर वीआर हेडसेट बनाती है।
I’ve spent the last few days testing the performance of Apple Vision Pro with M5 — here’s how it stacks up against the original.
It’s 35% quicker when booting up, widgets appear almost instantaneously, Safari is noticeably more responsive, and creating Spatial Scenes also feels… pic.twitter.com/7SHMKqSPUi
— Phil Traut ᯅ (@spatiallyme) October 21, 2025
तकनीकी खूबियां – भविष्य की झलक
Apple Vision Pro M5 में नई पीढ़ी की M5 चिप दी गई है, जिसमें 10-कोर CPU (4 परफॉर्मेंस + 6 एफिशिएंसी कोर), 10-कोर GPU और 16-कोर Neural Engine मौजूद है। इस चिपसेट की मेमोरी बैंडविड्थ 153 GB/s है, जो पिछले मॉडल से 25 प्रतिशत तेज बताई जा रही है। इसके अलावा, हेडसेट में माइक्रो-OLED आधारित ड्यूल 4K डिस्प्ले दिए गए हैं, जो अब 120Hz रिफ्रेश रेट सपोर्ट करते हैं। इससे मोशन ब्लर में कमी और विजुअल अनुभव में बेहतरी देखने को मिलती है।
आरामदायक डिज़ाइन, बेहतर बैटरी परफॉरमेंस
इस बार Apple ने “Dual Knit Band” नाम का नया स्ट्रैप डिज़ाइन पेश किया है। उपयोगकर्ताओं की शिकायत थी कि पुराना हेडसेट सिर पर दबाव डालता था और लंबे समय तक पहनना मुश्किल होता था। नए मॉडल में वजन का संतुलन बेहतर हुआ है, जिससे लंबे समय तक काम या मनोरंजन के लिए इसे पहनना अधिक सुविधाजनक बन गया है। कंपनी के अनुसार, अब Vision Pro M5 में 3 घंटे तक की बैटरी लाइफमिलती है। हालांकि यह अभी भी प्रतिस्पर्धी उपकरणों की तुलना में सीमित है, लेकिन परफॉर्मेंस में Apple ने जबरदस्त छलांग लगाई है। समीक्षकों का कहना है कि ग्राफिक्स, वीडियो गुणवत्ता और वर्चुअल कार्यक्षेत्र का अनुभव अब पहले से कहीं अधिक स्मूथ और वास्तविक महसूस होता है।
‘स्पेस के भीतर नई दुनिया’
अमेरिकी टेक पोर्टलों की रिपोर्ट्स के अनुसार, Vision Pro M5 का प्रदर्शन शानदार है। उपयोगकर्ताओं को इसमें विजुअल स्पष्टता, लैग-फ्री प्रोसेसिंग और लंबे समय तक आरामदायक उपयोग जैसे गुण देखने को मिले हैं। हालांकि, कुछ समीक्षाओं में कहा गया कि यह हेडसेट उपयोगकर्ता को “वास्तविकता से अलग” कर देता है। यानी लगातार वर्चुअल दुनिया में बने रहना थोड़ा थकाने वाला और अलगावपूर्ण अनुभव दे सकता है।
कमियां और सीमाएं
जहां एक ओर तकनीक ने बड़ा कदम बढ़ाया है, वहीं कुछ सीमाएं अभी भी बनी हुई हैं। कीमत बहुत ऊंची है। आम उपयोगकर्ता के लिए यह अभी भी लक्ज़री गैजेट है। Netflix और YouTube जैसे प्रमुख प्लेटफॉर्म्स के लिए अभी तक डेडिकेटेड ऐप्स उपलब्ध नहीं हैं। भारत में इसकी सर्विसिंग और कंटेंट सपोर्ट को लेकर भी स्थिति स्पष्ट नहीं है। भारतीय बाजार में Vision Pro M5 की कीमत ₹3.8 लाख से ₹3.9 लाख के बीच बताई जा रही है। टेक एक्सपर्ट्स का मानना है कि भारतीय उपभोक्ताओं के लिए यह अभी “नवाचार की झलक” तो है, लेकिन “व्यावहारिक खरीद” नहीं। भारत में फिलहाल Meta Quest 3, HTC Vive XR Elite और Sony PS VR2 जैसे विकल्प इससे कहीं सस्ते उपलब्ध हैं।
Apple Vision Pro M5-भविष्य का गैजेट
Apple Vision Pro M5 निस्संदेह तकनीक का नया मील का पत्थर है। बेहतर डिस्प्ले, शानदार परफॉर्मेंस और आरामदायक डिज़ाइन के साथ यह दिखाता है कि भविष्य में कंप्यूटर और स्क्रीन का अनुभव कैसा हो सकता है। लेकिन इसकी कीमत और सीमित उपयोगिता इसे आम उपभोक्ता की पहुंच से दूर रखती है। संक्षेप में, Vision Pro M5 एक ऐसा उपकरण है जो बताता है कि भविष्य कैसा दिखेगा, लेकिन यह भविष्य आज भी महंगा है।
Apple Vision Pro M5- तकनीक की उड़ान या मानवीय दूरी की नई शुरुआत?
Apple का नया Vision Pro M5 हेडसेट निस्संदेह तकनीकी प्रगति का प्रतीक है। यह दिखाता है कि आने वाले वर्षों में इंसान का डिजिटल अनुभव कितना वास्तविक और जीवंत हो सकता है। M5 चिप, 120Hz डिस्प्ले और 3D इंटरैक्टिव इंटरफेस ने ‘स्पैशल कंप्यूटिंग’ को एक नए स्तर पर पहुंचा दिया है। पर सवाल यह है कि क्या यह तकनीक हमें एक-दूसरे के करीब लाएगी या और दूर कर देगी?
आम आदमी की पहुंच से बाहर
Vision Pro M5 की सबसे बड़ी चुनौती इसकी कीमत और पहुंच है। लगभग चार लाख रुपये की कीमत में यह आम उपभोक्ता के लिए नहीं, बल्कि टेक्नोलॉजी उत्साही वर्ग के लिए बना उपकरण है। Apple की यह सोच, कि भविष्य में हर व्यक्ति वर्चुअल दुनिया में काम करेगा, फिलहाल सपना ज्यादा लगती है, ज़मीनी हकीकत कम। इसके साथ एक और चिंता है- वर्चुअल एकांत ! जैसे-जैसे इंसान स्क्रीन और डिजिटल अवतारों पर निर्भर होता जा रहा है, असली संवाद, स्पर्श और सामाजिक जुड़ाव कम होते जा रहे हैं। Vision Pro जैसी डिवाइसें उस रफ्तार को और बढ़ा सकती हैं।
हक़ीक़त से आगे वर्चुअल दुनिया
फिर भी, यह सच है कि हर नई तकनीक की शुरुआत महंगी और सीमित होती है। जो आज लक्ज़री है, वही कल आम हो जाती है। Vision Pro M5 उसी सफर का पहला कदम है। भविष्य की उस दुनिया का, जहां कंप्यूटर स्क्रीन की जगह हवा में तैरते आइकन और वास्तविकता से जुड़ी डिजिटल छवियां होंगी। संक्षेप में, यह उपकरण तकनीकी क्रांति का प्रतीक है, लेकिन मानवीय संबंधों के संदर्भ में एक चेतावनी भी। हमें तय करना होगा कि हम तकनीक के मालिक रहेंगे या उसके आभासी संसार के बंधक बनेंगे।
नवाचार की पहचान या विलासिता का प्रतीक?
Apple हमेशा से तकनीकी उत्कृष्टता और डिज़ाइन के लिए जाना जाता है। उसके उत्पाद अपने वर्ग में मानक तय करते हैं, चाहे वह iPhone हो, MacBook या अब Vision Pro M5। लेकिन इनकी एक साझा पहचान भी है-‘कीमत की ऊंचाई’, जो इन्हें आम उपयोगकर्ता की पहुंच से दूर कर देती है। Apple के उपकरण जितने तकनीकी रूप से उन्नत हैं, उतने ही सामाजिक रूप से ‘स्टेटस सिंबल’ भी बन गए हैं। भारत जैसे देशों में, जहां औसत उपभोक्ता अब भी बजट स्मार्टफोन या मध्यम श्रेणी के लैपटॉप तक सीमित है, वहां ₹3 लाख से अधिक कीमत वाले उपकरण विलासिता का प्रतीक बन जाते हैं।
Apple का टारगेट ‘Exclusivity’
कंपनी की रणनीति भी यही रही है, ‘प्रीमियम बने रहो, आम न बनो। इस नीति ने Apple को न केवल एक ब्रांड बल्कि एक भावनात्मक पहचान में बदल दिया है, जहां उत्पाद खरीदना तकनीकी ज़रूरत से ज़्यादा प्रतिष्ठा का विषय बन गया है। फिर भी, यही ऊंचाई Apple की ताकत भी है। लोग जानते हैं कि जो Apple से मिलता है, वह कहीं और नहीं। मगर सवाल यह बना रहता है, ‘क्या तकनीक का उद्देश्य सुविधा है या पहचान’ ?
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