Vedanta Hindustan Zinc Default Possibility: Viceroy Research की रिपोर्ट ने खड़े किए Anil Agarwal की कंपनी पर सवाल
अनिल अग्रवाल (Anil Agarwal) की अगुवाई वाली वेदांता ग्रुप (Vedanta Group News) एक बार फिर विवादों में घिर गई है। इस बार आरोप अमेरिका की चर्चित शॉर्ट-सेलिंग फर्म Viceroy Research की ओर से सामने आया है। कंपनी ने वेदांता की सहायक कंपनी हिंदुस्तान जिंक लिमिटेड (Hindustan Zinc Ltd) पर सरकार की मंजूरी के बिना ब्रांड फीस समझौता करने का आरोप लगाया है। यह दावा न केवल कंपनी के संचालन पर गंभीर सवाल उठाता है, बल्कि इसके चलते भारत सरकार के साथ हुआ शेयरधारक समझौता भी टूट सकता है, जिससे हिंदुस्तान जिंक डिफॉल्ट की स्थिति में आ सकती है।
क्या है पूरा मामला? Viceroy Research report on Vedanta
Viceroy Research की रिपोर्ट के अनुसार, अक्टूबर 2022 में वेदांता ने हिंदुस्तान जिंक पर ‘ब्रांड फीस’ लागू की थी, जिसकी वैधता पर अब सवाल उठ रहे हैं। रिपोर्ट का दावा है कि इस समझौते के लिए केंद्र सरकार से पूर्व स्वीकृति नहीं ली गई, जो 2002 में हुए शेयरधारक समझौते का उल्लंघन है। यह समझौता वेदांता द्वारा सरकार से हिंदुस्तान जिंक में हिस्सेदारी खरीदने के दौरान किया गया था। रिपोर्ट में कहा गया है कि हिंदुस्तान जिंक का ब्रांड शुल्क समझौता न केवल व्यावसायिक रूप से अनुचित है, बल्कि इससे सरकारी हिस्सेदारी को भी जोखिम हो सकता है। भारत सरकार के पास हिंदुस्तान जिंक में 27.92% हिस्सेदारी है, जबकि वेदांता के पास 61.84% हिस्सेदारी है।
ब्रांड फीस को बताया ‘गैर-व्यावसायिक’ Anil Agarwal Brand Fee Controversy
Viceroy का कहना है कि वेदांता द्वारा लगाया गया ब्रांड शुल्क एक “गैर-व्यावसायिक अनुबंध” है, जिससे कंपनी के अंदर पारदर्शिता पर सवाल उठते हैं। रिपोर्ट में साफ कहा गया है कि इस तरह के समझौतों से सरकार के साथ कंपनी का विश्वास और कानूनन अनुबंध कमजोर होता है। Provision 14, 16 और 24 का हवाला देते हुए रिपोर्ट में कहा गया है कि इन नियमों का सीधा उल्लंघन किया गया है। इनमें यह प्रावधान शामिल हैं कि सरकार द्वारा नामित निदेशक की अनुमति के बिना कोई बड़ा निर्णय नहीं लिया जा सकता, किसी अन्य ग्रुप कंपनी को गारंटी देना प्रतिबंधित है, और 20 करोड़ रुपये से अधिक का कोई भी ऋण सरकार की जानकारी और मंजूरी के बिना नहीं दिया जा सकता।
क्या हो सकते हैं नतीजे?
अगर यह उल्लंघन प्रमाणित होता है, तो यह डिफॉल्ट की स्थिति पैदा कर सकता है। ऐसे में वेदांता को 15 दिनों के भीतर समाधान देना होगा। यदि वह ऐसा नहीं करती है, तो सरकार को ‘कॉल ऑप्शन’ के तहत ये कदम उठाने का अधिकार होगा जैसे, हिंदुस्तान जिंक में वेदांता की हिस्सेदारी को बाजार मूल्य से 25% कम कीमत पर खरीद सकती है। या फिर वेदांता को मजबूर किया जा सकता है कि वह सरकार की हिस्सेदारी को 25% प्रीमियम पर खरीदे। यह विकल्प वेदांता के लिए वित्तीय दबाव और शेयर बाजार में अविश्वास की स्थिति बना सकते हैं।
शेयर बाजार में दिखा असर
इस खबर का असर शेयर बाजार पर भी नजर आया। हिंदुस्तान जिंक का शेयर BSE पर हल्की तेजी के साथ 436 रुपये पर बंद हुआ। जबकि वेदांता का शेयर 0.27% गिरावट के साथ 446.25 रुपये पर आ गया। हालांकि, हिंदुस्तान जिंक ने इन आरोपों पर अब तक कोई आधिकारिक बयान नहीं जारी किया है, जिससे निवेशकों में और अधिक अनिश्चितता पैदा हो गई है।
पोंजी स्कीम जैसा मॉडल? Vedanta Ponzi Scheme Allegations
Viceroy Research ने अपनी रिपोर्ट में वेदांता की संचालन शैली की तुलना “पोंजी स्कीम” से की है। रिपोर्ट का कहना है कि कंपनी अंदरूनी वित्तीय लेनदेन और गारंटी के जरिए अपने ग्रुप की अन्य कंपनियों को लाभ पहुंचा रही है, जो कि सार्वजनिक शेयरधारकों के हितों के खिलाफ है। इससे पहले भी Viceroy Research ने वेदांता और उसकी अन्य कंपनियों के खिलाफ कई आलोचनात्मक रिपोर्ट प्रकाशित की हैं, जिनमें पूंजी प्रबंधन, कर्ज चुकता करने के तरीके और कॉर्पोरेट गवर्नेंस को लेकर सवाल उठाए गए हैं।
सरकार के पास अब क्या विकल्प हैं?
चूंकि भारत सरकार हिंदुस्तान जिंक में एक बड़ी अल्पसंख्यक हिस्सेदार है, ऐसे में उसे न केवल निगरानी की भूमिका निभानी होगी, बल्कि यदि ये आरोप सही पाए जाते हैं तो वह कानूनी रूप से कॉर्पोरेट कार्रवाई भी शुरू कर सकती है। ऐसे में निम्नलिखित विकल्प सरकार के पास उपलब्ध हैं: SEBI के पास शिकायत दर्ज कराना, शेयरधारक समझौते की समीक्षा और वेदांता से स्पष्टीकरण मांगना।
क्या कहती है कंपनी?
रिपोर्ट सामने आने के बाद भी अब तक हिंदुस्तान जिंक या वेदांता ग्रुप की ओर से कोई आधिकारिक प्रतिक्रिया नहीं आई है। यह चुप्पी निवेशकों की चिंता को और गहरा कर रही है। इस पूरे घटनाक्रम ने एक बार फिर कॉर्पोरेट गवर्नेंस, पारदर्शिता और सरकारी निगरानी के महत्व को रेखांकित किया है। यदि Viceroy Research के आरोप सही साबित होते हैं, तो वेदांता को अपने ग्रुप स्तर पर रणनीतिक बदलाव करने होंगे। साथ ही, सरकार को भी भविष्य में ऐसे विनिवेश सौदों में सख्त निगरानी रखनी होगी, ताकि सार्वजनिक संपत्तियों के हितों की रक्षा की जा सके। Vedanta Hindustan Zinc Default Possibility.