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November 22, 2025

मस्जिद की खुदाई में मिली प्राचीन मूर्तियां: बुंदेलखंड के इतिहास का नया अध्याय

The CSR Journal Magazine
 मध्य प्रदेश के सागर जिले के पापेट (Papet) गांव में मस्जिद के मरम्मत-निर्माण के दौरान राम और सीता की कथित मूर्तियों के मिलने की खबर सामने आई है। यह मामला न सिर्फ स्थानीय बल्कि प्रशासनिक और पुरातात्विक स्तर पर भी काफी संवेदनशील बन गया है। इस खबर की सच्चाई, ऐतिहासिक पृष्टभूमि और विवाद का विस्तृत अध्ययन !

मस्जिद में मरम्मत, खुदाई में इतिहास

बंडा तहसील के पापेट गांव में मस्जिद परिसर में चारदीवारी (बाउंड्री वॉल) बनाने के लिए नींव खुदाई की जा रही थी। उसी दौरान कुछ प्रतिमाएं निकलीं, जिन्हें स्थानीय लोगों ने राम और सीता की प्रतिमाएं बताया। जैसे ही खबर फैली, हिंदू संगठनों और ग्रामीणों की भीड़ मौके पर पहुंच गई। कुछ लोगों ने चबूतरा बना कर प्रतिमाओं की पूजा-अर्चना भी की। निर्माण कार्य को तत्काल रोका गया है। पुलिस मौजूद है और मूर्तियों को सुरक्षित कस्टडी में ले लिया गया है। पुरातत्व विभाग को भी जांच के लिए तुरंत बुलाया गया है।

मूर्तियों के चंदेल युग का होने की अटकलें

अधिकारियों की प्रारंभिक राय है कि ये मूर्तियां चंदेल युग की हो सकती हैं। हिंदू संगठनों का तर्क है कि ये मूर्तियां किसी मंदिर की थीं जिसे बाद में तोड़कर मस्जिद बनाई गई थी। दूसरी ओर, मस्जिद समिति और मुस्लिम पक्ष का दावा है कि ये मूर्तियां मस्जिद की जमीन से नहीं मिली हैं, बल्कि पास की एक पत्थरों की खखरी (पत्थरों का ढेर) से आई चंदेली पत्थर हैं, और खनन मस्जिद की अंदर की जमीन पर नहीं, बाहर हो रहा था। मस्जिद गांव में करीब 200 साल पुरानी बताई जाती है। मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह जमीन दान में मिली थी। प्रशासन ने स्थिति को नियंत्रण में रखने का दावा किया है। जांच पूरी होने तक निर्माण कार्य रुका हुआ है।

मस्जिद की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

पापेट गांव की मस्जिद बहुत बड़ी भव्य इमारत नहीं है, बल्कि एक छोटी-मध्यम आकार की मस्जिद है, जो स्थानीय मुस्लिम समुदाय की आवश्यक्ताओं को पूरा करती है। स्थानीय इतिहासकारों का यह भी कहना है कि आसपास की भूमि पुराने मंदिरों की दृष्टि से महत्वपूर्ण रही है, और यह क्षेत्र चंदेल वंश के ऐतिहासिक प्रभाव में रहा है। चूंकि मस्जिद की आयु लगभग दो सौ साल से अधिक बताई जा रही है, यह भी संभव है कि वहां पहले धार्मिक संरचनाएं (मंदिर) थीं जिन्हें समय के साथ बदल दिया गया हो, लेकिन यह दावा अभी निर्णायक पुरातात्विक प्रमाणों से पुष्ट नहीं हुआ है।

समीक्षा और विश्लेषण- इस खबर की सच्चाई की दिशा में

 रिपोर्ट्स में स्पष्ट है कि पुरातत्व विभाग की जांच जारी है, और अभी तक यह तय नहीं हुआ है कि मूर्तियां वास्तव में मंदिर की थीं या कुछ और! धार्मिक भावनाओं का मामला है, इसलिए जांच में पूरी पारदर्शिता बेहद ज़रूरी है। दोनों पक्षों की दलीलों को सुनना और निष्पक्ष निष्कर्ष निकालना ज़रुरी होगा। यदि ये प्रतिमाएं वास्तव में चंदेल युग की हैं, तो यह न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हो सकता है, बल्कि स्थानीय इतिहास और विरासत के अध्ययन में भी एक मूल्यवान सबूत बन सकता है। इस तरह के घटनाक्रम अक्सर विवादों को जन्म देते हैं। भाई-चारे के लिहाज़ से स्थानीय प्रशासन की भूमिका महत्वपूर्ण होगी ताकि किसी तरह का स्वभाव तनाव में न बदल जाए।

जांच के बाद सामने आएगी सच्चाई

यह खबर आधिकारिक रूप से अधूरी जांच के आधार पर सामने आई है। मूर्तियां मिली हैं, और उन्हें राम-सीता की बताने वाले दावे हैं, लेकिन पुरातत्व विभाग की जांच ही यह निर्धारित करेगी कि ये प्रतिमाएं कितनी प्राचीन हैं और उनका असली संदर्भ क्या है। मस्जिद के इतिहास और भूमि के दावों को भी वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखे जाने की जरूरत है।समय के साथ, यदि जांच में यह पाया जाता है कि यह स्थल पहले हिंदू मंदिर का केंद्र रहा करता था, तो स्थानीय और ऐतिहासिक महत्व की एक नई कहानी सामने आएगी, लेकिन फिलहाल मामले की गहराई में जाने के लिए पूरी तरह सुनिश्चित निष्कर्ष देना जल्दबाज़ी होगा।

बुंदेलखंड और चंदेल वंश- ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

पापेट गांव, जहां यह मामला सामने आया है, बुंदेलखंड क्षेत्र में आता है। बुंदेलखंड मध्य भारत का एक प्राचीन और सांस्कृतिक दृष्टि से महत्वपूर्ण भू-भाग है, जो आज के मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश दोनों राज्यों में फैला हुआ है। बुंदेलखंड में एक समय चंदेल वंश का शासन रहा, जो लगभग 9वीं से 12वीं शताब्दी तक बड़ा प्रभावशाली था। चंदेलों ने स्थापत्य और मूर्तिकला कला में महत्वपूर्ण योगदान दिया। उनके काल में बने मंदिरों का उदाहरण खजुराहो के प्रसिद्ध मंदिर समूह हैं, जहां शानदार शिल्प, मूर्तियां और नक्काशी देखी जाती है। चंदेल वंश का शासन भू-राजनीतिक रूप से व्यापक था।उनकी सत्ता न केवल खजुराहो तक थी, बल्कि उनकी पहुंच अन्य इलाकों में भी थी। चंदेलों के शासकों में कीर्तिवर्मन (Kirttivarman) नामक राजा भी था, जो बुंदेलखंड (Jejakabhukti) क्षेत्र पर शासन करता था। अतिरिक्त रूप से, बुंदेलखंड में चंदेल युग की संरचनाओं में बावड़ियां (पानी के तालाब) भी थीं, जिन्हें पुरातत्व विभाग द्वारा अब संरक्षण के लिए सर्वे किए जा रहे हैं।

पापेट गांव की मस्जिद के संदर्भ में विश्लेषण

मस्जिद के परिसर में नींव खुदाई के दौरान जो मूर्तियां मिली हैं, उन्हें स्थानीय लोग राम और सीता की प्रतिमाएं मान रहे हैं। प्रशासनिक अधिकारियों ने बताया है कि ये मूर्तियां चंदेल कालीन प्रतीत होती हैं, और इसी आधार पर पुरातत्व विभाग को जांच के लिए बुलाया गया है। मुस्लिम पक्ष का दावा है कि ये प्रतिमाएं वास्तव में मूर्तियां नहीं हैं, बल्कि चंदेली पत्थर के सामान्य पत्थर हैं, और यह खनन मस्जिद की अंदर की जमीन पर नहीं, बल्कि सीमा-दीवार (बाउंड्री वॉल) के बाहर की खुदाई में हुआ था। निर्माण कार्य फिलहाल रोक दिया गया है, ताकि पुरातत्व विशेषज्ञ निष्कर्ष निकाल सकें।

पुरातात्विक और सांस्कृतिक महत्व

यदि ये प्रतिमाएं सच में चंदेल युग की हों, तो उनका ऐतिहासिक महत्व बहुत बड़ा है क्योंकि यह मंदिर-संरचनाओं का संकेत हो सकता है, जिसे बाद में किस कारणवश बदल दिया गया हो, संभवतः मस्जिद बन गई हो। चंदेल वंश की मूर्तिकला शैली आमतौर पर धार्मिक मंदिरों में देखी जाती थी, और उनके द्वारा निर्मित मंदिर, खजुराहो जैसे स्थानों पर आज भी मौजूद हैं। इस घटना से बुंदेलखंड की धार्मिक एवं सांस्कृतिक विरासत के अध्ययन को नया आयाम मिल सकता है: यह साबित कर सकता है कि पापेट क्षेत्र में पिछली शताब्दियों में हिंदू मंदिर का अस्तित्व रहा हो।

संभावित चुनौतियां और सावधानियां

धार्मिक तनाव की संभावना: मूर्तियों के मिलने के बाद धार्मिक भावनाओं में त्वरित प्रतिक्रिया हुई, पूजा, नारेबाज़ी आदि। जांच के बिना कोई भी त्वरित निष्कर्ष विवाद को और बढ़ा सकता है।
वैज्ञानिक निष्कर्ष की वांछनीयता: पुरातत्व विभाग की निष्पक्ष और वैज्ञानिक जांच ही यह तय कर सकती है कि ये मूर्तियां कितनी प्राचीन हैं और उनका असली संदर्भ क्या है।
संरक्षण की ज़रूरत: यदि प्रमाण मिलते हैं कि ये मूर्तियां चंदेल युग की हैं, तो उन्हें सुरक्षित रूप से संरक्षित करना चाहिए। सिर्फ धार्मिक दृष्टि से नहीं, बल्कि ऐतिहासिक दृष्टि से भी।
स्थानीय समुदायों की भागीदारी: जांच और बाद की प्रक्रिया में गांव के सभी पक्षों- मुस्लिम समुदाय, हिंदू भक्त, प्रशासन को शामिल करना चाहिए ताकि विश्वास बनी रहे और शांति बनी रहे।
पापेट गांव में हुई यह खुदाई सिर्फ एक स्थानीय घटना नहीं है, बल्कि यह बुंदेलखंड की गहरी ऐतिहासिक धरोहर से जुड़ी हुई है। यदि यह पुष्टि होती है कि ये मूर्तियां वास्तव में प्राचीन मंदिर की थीं, तो यह न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से, बल्कि ऐतिहासिक अध्ययन और सांस्कृतिक संरक्षण के लिए भी एक महत्वपूर्ण विषय है।
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