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September 11, 2025

अमेरिका में राजनीतिक तनाव के बीच 9/11 हमले के पीड़ितों को श्रद्धांजलि, 24 साल में बदला आतंक का चेहरा

The CSR Journal Magazine
अमेरिका 9/11 आतंकी हमलों की 24वीं बरसी मना रहा है। अमेरिका में 11 सितंबर 2001 के आतंकी हमलों को 24 साल पूरे हो गए। इस मौके पर देशभर में श्रद्धांजलि कार्यक्रम आयोजित किए गए। न्यूयॉर्क, पेंटागन और पेनसिल्वेनिया के शैंक्सविल में विशेष समारोह हुए। इन हमलों में करीब 3,000 लोगों की मौत हुई थी। पीड़ितों के परिवार और राजनीतिक हस्तियां कार्यक्रमों में शामिल हुईं।

अमेरिका के इतिहास का कभी न भूलने वाला दिन

11 सितंबर 2001 को अमेरिका ने अपने इतिहास का सबसे बड़ा आतंकी हमला झेला। अल-कायदा से जुड़े आतंकियों ने चार यात्री विमानों का अपहरण कर लिया। इनमें से दो विमान अमेरिकन एयरलाइंस फ्लाइट 11 और यूनाइटेड एयरलाइंस फ्लाइट 175 को न्यूयॉर्क स्थित World Trade Centre की उत्तरी और दक्षिणी टॉवर से टकरा दिया गया। 11 सितंबर 2001 को अमेरिका में हुआ यह हमला इस देश के इतिहास का काला दिन कहलाता है जिसने हजारों जिंदगियां निगल लीं।

दुनिया ने देखा तबाही का खौफनाक मंजर

जैसे ही प्लेन टॉवर्स में घुसे, भयानक विस्फोट हुआ। आग की ऊंची-ऊंची लपटें, दम घोटने वाला का धुंआ, लोगों की चीखें, जान बचाकर भागते लोग! दुनिया के सबसे बड़े देशों में से एक अमेरिका ने 11 सितंबर 2001 की सुबह कलेजा चीरकर रख देने वाला विनाशकारी मंजर देखा। वह एक ऐसी त्रासदी थी, जिसने अमेरिका के इतिहास को बदल दिया। उस समय राष्ट्रपति रहे जॉर्ज डब्ल्यू बुश ने दुनिया को संबोधित करके आतंकवाद के खिलाफ युद्ध की घोषणा की और संदेश दिया कि आतंकवाद का विनाश करना अब सबसे बड़ी लड़ाई है।

हजारों लोग मारे गए आतंकी हमले में

9/11 आतंकी हमले के समय WTC के दोनों टॉवर में 16000 से 18000 लोग मौजूद थे। दोनों विमानों में सवार लोगों समेत 2977 लोगों की मौत हुई थी। सड़क पर खड़े लोगों ने जहां विमानों को टॉवर से टकराते हुए देखा, वहीं आग में जलते लोगों को नीचे गिरते हुए देखा, जिससे पूरे न्यूयॉर्क शहर में दहशत फैल गई थी। 9/11 आतंकी हमले में जान गंवाने वालों में सबसे कम उम्र की 2 साल की क्रिस्टीन ली हैन्सन थी। सबसे ज्यादा उम्र की मृतका 82 वर्षीय रॉबर्ट नॉर्टन थी। दोनों ही टॉवर्स से टकराने वाले विमानों में सवार थे। World Trade Centre में करीब 2606 लोगों और पेंटागन में 125 लोगों ने जान गंवाई थी। चारों विमानों में 265 यात्री और क्रू मेंबर्स सवार थे। न्यूयॉर्क शहर के 343 फायरकर्मियों और 71 अधिकारियों की भी मौत हुई थी।

अमेरिका ने दी 9/11 पीड़ितों को श्रद्धांजलि

9/11 की 24वीं बरसी पर न्यूयॉर्क के World Trade Centre यानि Ground Zero स्थल पर पीड़ितों के नाम पढ़े गए। मौके पर उपराष्ट्रपति J D Vance और उनकी पत्नी Usha Vance मौजूद रहीं। हमले के समय को याद करते हुए मौन रखा गया। पेंटागन में 184 लोगों को श्रद्धांजलि दी गई। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप और फर्स्ट लेडी मेलानिया ट्रंप इस समारोह में शामिल हुए और शाम को ब्रॉन्क्स में आयोजित बेसबॉल मैच में पहुंचे। देशभर में हजारों लोगों ने इस बरसी को सेवा दिवस के रूप में मनाया। लोगों ने फूड ड्राइव, कपड़ों का दान, पार्क साफ करने और खूनदान जैसे कार्यक्रमों में भाग लिया। पीड़ितों के परिजनों ने कहा कि सेवा कार्य के जरिए दुख में भी सुकून और नई ऊर्जा मिलती है।

NATO ने लागू किया अनुच्छेद 5

चौबीस साल पहले, जब न्यूयॉर्क और वॉशिंगटन पर 9/11 के विनाशकारी हमले हुए थे, तब अमेरिका के राष्ट्रपति George W Bush से संपर्क करने वाले पहले विदेशी नेता नए रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन थे, जिन्होंने शोक संवेदना और मदद की पेशकश की थी। NATO ने पहली बार अनुच्छेद 5 लागू किया, यह कहते हुए कि यह उन सभी पर हमला है। लगभग हर देश, अर्जेंटीना से लेकर पूर्व यूगोस्लाविया तक, ने घोषणा की कि वे अमेरिका के साथ खड़े हैं। तब से, त्रासदी में बनी ये गठबंधन इराक के लंबे युद्ध और मध्य पूर्व की उथल-पुथल, “अमेरिका फर्स्ट” जनवाद के पुनरुत्थान, लगभग एक सदी में सबसे ऊंचे अमेरिकी Tariff, एक लेन-देन वाले राष्ट्रपति और समय के गुजरने से दरक गए हैं। यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है। पच्चीस वर्षों में राष्ट्रीय हित बदलते हैं और विदेशी गठबंधन भी।

24 वर्षों में बदला आतंकवाद का स्वरूप

आधुनिक इतिहास के सबसे घातक आतंकी हमले की बरसी हमें याद दिलाती है कि किस तरह वैश्विक आतंकवाद-विरोधी अभियान की जगह अब चीन के उभरते विश्व शक्ति के रूप में मुकाबले और उन देशों में अमेरिका की विश्वसनीयता पर घटते भरोसे ने ले ली है, जो कभी उसके सबसे करीबी साझेदार थे।कनाडा का उदाहरण लीजिए! 1812 के युद्ध के अंत से अब तक का दोस्त, अब अपने दक्षिणी पड़ोसी के साथ व्यापार युद्ध में उलझा हुआ है। हालात इतने बिगड़ गए हैं कि कनाडा के बारों से Kentucky Bourbon तक हटा दिए गए हैं।

ट्रंप को खली भारत-चीन-रूस की दोस्ती

समय के बदलने का एक और संकेत यह है कि 9/11 की बरसी से एक हफ्ते पहले चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने शांघाई में एक आत्मीय मुलाक़ात में न केवल पुतिन का स्वागत किया, बल्कि भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का भी, जो कभी ट्रंप से अपनी नज़दीकी का गुणगान करते थे। यह मोदी की सात वर्षों में पहली चीन यात्रा थी। इससे पहले, ट्रंप ने व्यंग्यात्मक ढंग से ट्रुथ सोशल पर लिखा कि, ‘शी, मेरी ओर से व्लादिमीर पुतिन और किम जोंग उन को बहुत-बहुत शुभकामनाएं देना, जब तुम अमेरिका के खिलाफ साज़िश कर रहे हो।’

ट्रंप ने माना भारत का चीन की तरफ़ बढ़ता झुकाव

बाद में उन्होंने फिर पोस्ट किया, ‘लगता है हमने भारत और रूस को सबसे गहरे अंधेरे चीन की ओर खो दिया है। ईश्वर करे, उनका साथ लंबा और समृद्ध हो!’ अमेरिकी राष्ट्रपति का लहजा बेशक मज़ाकिया था, लेकिन वे इस सच्चाई को स्वीकार कर रहे थे कि भारत, दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र और वह देश, जिसे वॉशिंगटन लंबे समय से साधने की कोशिश कर रहा है, अब चीन की ओर झुक रहा है। अमेरिका द्वारा भारत पर लगाए गए 50 प्रतिशत Tariff ने उन कोशिशों को कमजोर किया है, हालांकि ट्रंप ने 9 सितंबर को घोषणा की कि वे “मेरे बहुत अच्छे मित्र, प्रधानमंत्री मोदी” के साथ व्यापार वार्ता करने जा रहे हैं। कम चौंकाने वाली बात यह रही कि उत्तर कोरिया और ईरान के नेता भी शंघाई सहयोग संगठन की बैठक में शामिल हुए, जहां अमेरिका के सहयोगी मिस्र, तुर्की और वियतनाम के नेता भी मौजूद थे।

2 कार्यकालों के बाद ट्रंप अमेरिका के सबसे प्रभावशाली शासक

भले ही ट्रंप इसके लिए सीधे तौर पर ज़िम्मेदार ना हों, लेकिन बीजिंग लंबे समय से अमेरिका को वैश्विक प्रभाव में टक्कर देने की ठान चुका है और पुतिन एक जमे-जमाए निरंकुश शासक बन चुके हैं जिनकी विस्तारवादी महत्वाकांक्षाएं स्पष्ट तौर पर दिखाई देती हैं। लेकिन उन्होंने अपनी लेन-देन वाली सख़्त कूटनीति से इन प्रवृत्तियों को बढ़ावा देने का काम किया है, जो लोकतंत्र-समर्थक घोषणाओं से ज्यादा Tariff की सख्त सच्चाई को महत्व देती है। फ्रैंकलिन डी. रूज़वेल्ट के बाद दो कार्यकालों के साथ, उनका प्रभाव किसी भी राष्ट्रपति की तुलना में सबसे लंबे समय तक फैला है। अपने दूसरे कार्यकाल के पहले आठ महीनों में, ट्रंप ने NATO गठबंधन पर नए सिरे से सोच को बढ़ावा दिया है। यूरोपीय देशों ने अपना रक्षा खर्च बढ़ाया है और यूक्रेन को रूस से बचाने में ज़्यादा नेतृत्वकारी भूमिका निभाई है, यह मानते हुए कि अमेरिका की भूमिका अब भरोसेमंद नहीं रही।
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