मल्टीप्लेक्स में फिल्म देखना महंगा या वाजिब? अजय बिजली ने टिकट और पॉपकॉर्न की कीमतों पर दिया जवाब! कहा- सिर्फ टिकट के पैसों से नहीं चलता बिज़नेस!
₹259 का टिकट, ₹159 का पॉपकॉर्न: PVR की कीमतों पर अजय बिजली का तर्क
देश की सबसे बड़ी मल्टीप्लेक्स चेन PVR Cinemas के फाउंडर और मैनेजिंग डायरेक्टर अजय बिजली ने सिनेमाघरों में बढ़ती महंगाई को लेकर उठ रहे सवालों पर सफाई दी है। उन्होंने कहा है कि PVR में फिल्म टिकट और खाने-पीने की कीमतें लोगों के अनुभव के हिसाब से महंगी नहीं, बल्कि वाजिब और संतुलित हैं। उनका यह बयान ऐसे समय आया है, जब सोशल मीडिया और आम दर्शकों के बीच यह चर्चा तेज है कि मल्टीप्लेक्स में फिल्म देखना आम आदमी की पहुंच से बाहर होता जा रहा है।
औसत टिकट कीमत ₹259, अनुभव के हिसाब से उचित
अजय बिजली के मुताबिक, PVR में फिल्मों का औसत टिकट मूल्य करीब ₹259 है। उन्होंने कहा कि यह कीमत देश के बड़े शहरों, मॉल लोकेशन, आधुनिक साउंड सिस्टम, आरामदायक सीटों और बेहतर स्क्रीनिंग अनुभव को ध्यान में रखते हुए तय की जाती है। बिजली का मानना है कि दर्शक केवल फिल्म नहीं, बल्कि एक पूरे एंटरटेनमेंट एक्सपीरियंस के लिए भुगतान करता है।
पॉपकॉर्न की कीमत पर भी दी सफाई
मल्टीप्लेक्स में पॉपकॉर्न और कोल्ड ड्रिंक की ऊंची कीमतें लंबे समय से विवाद का विषय रही हैं। इस पर अजय बिजली ने कहा कि PVR में पॉपकॉर्न की कीमत ₹159 से शुरू होती है, जिसे जरूरत से ज्यादा महंगा कहना सही नहीं है। उन्होंने तर्क दिया कि सिनेमाघरों में फूड एंड बेवरेज सेक्शन का संचालन, क्वालिटी कंट्रोल, स्टाफ, हाइजीन और लॉजिस्टिक्स का खर्च काफी अधिक होता है।
सिर्फ टिकट से नहीं चलता बिजनेस
बिजली ने यह भी स्पष्ट किया कि सिनेमाघरों का बिजनेस केवल टिकट बिक्री से नहीं चलता। मल्टीप्लेक्स को बिजली, एसी, स्टाफ सैलरी, मेंटेनेंस, लाइसेंस फीस और फिल्म डिस्ट्रीब्यूटर्स के साथ रेवेन्यू शेयरिंग जैसे कई खर्च उठाने पड़ते हैं। ऐसे में फूड एंड बेवरेज से होने वाली आमदनी सिनेमाघरों के लिए अहम भूमिका निभाती है।
दर्शकों की शिकायतें भी बरकरार
हालांकि, दर्शकों का एक बड़ा वर्ग अब भी इस तर्क से संतुष्ट नहीं है। लोगों का कहना है कि एक परिवार के लिए मल्टीप्लेक्स में फिल्म देखना, पॉपकॉर्न और ड्रिंक के साथ ₹1500–₹2000 तक का खर्च पहुंच जाता है, जो मध्यम वर्ग के लिए भारी है। यही वजह है कि कई दर्शक अब ओटीटी प्लेटफॉर्म की ओर रुख कर रहे हैं।
OTT से बढ़ती प्रतिस्पर्धा
बिजली ने स्वीकार किया कि ओटीटी प्लेटफॉर्म्स से सिनेमाघरों को कड़ी चुनौती मिल रही है, लेकिन उनका मानना है कि थिएटर में फिल्म देखने का अनुभव ओटीटी से अलग और खास है। बड़े पर्दे, दमदार साउंड और सामूहिक माहौल की तुलना घर पर मोबाइल या टीवी स्क्रीन से नहीं की जा सकती।
अजय बिजली के बयान से साफ है कि PVR मल्टीप्लेक्स अपनी कीमतों को सही ठहराता है और उन्हें दर्शकों को मिलने वाले अनुभव से जोड़कर देखता है। वहीं दूसरी ओर, आम दर्शक अभी भी कीमतों को लेकर असंतोष जता रहा है। आने वाले समय में यह देखना दिलचस्प होगा कि मल्टीप्लेक्स उद्योग दर्शकों की जेब और बदलती आदतों के साथ कैसे संतुलन बनाता है।
सालों से उठते रहे हैं सवाल
मल्टीप्लेक्स में खाने-पीने की महंगाई को लेकर सवाल आज नहीं, बल्कि कई सालों से उठते रहे हैं। जब-जब दर्शक सिनेमाघर जाते हैं, टिकट के साथ-साथ पॉपकॉर्न, कोल्ड ड्रिंक और स्नैक्स की ऊंची कीमतें चर्चा का विषय बन जाती हैं। शुरुआत में जब देश में मल्टीप्लेक्स संस्कृति आई, तब लोगों ने बेहतर स्क्रीन, आरामदायक सीटों और एसी हॉल को लेकर कीमतें कुछ हद तक स्वीकार कीं। लेकिन समय के साथ-साथ खाने-पीने के दाम इस कदर बढ़े कि आम दर्शक को यह अनुचित और मजबूरी वाला खर्च लगने लगा। एक साधारण पॉपकॉर्न या सॉफ्ट ड्रिंक की कीमत कई बार बाहर के बाजार से तीन-चार गुना ज्यादा होती है, जिस पर लगातार आपत्ति जताई जाती रही है।
कानून भी नहीं बना पाया संतुलन
इस मुद्दे पर कानूनी बहस भी हो चुकी है। अलग-अलग राज्यों में उपभोक्ताओं ने यह सवाल उठाया कि क्या सिनेमाघर दर्शकों को बाहर से खाना लाने से रोक सकते हैं। कुछ मामलों में अदालतों ने दर्शकों के पक्ष में फैसले दिए, वहीं कई जगह मल्टीप्लेक्स प्रबंधन ने सुरक्षा और स्वच्छता का हवाला देकर अपनी नीति को सही ठहराया। सोशल मीडिया पर भी समय-समय पर मल्टीप्लेक्स की कीमतों को लेकर नाराजगी देखने को मिलती है। पॉपकॉर्न की कीमतों को लेकर मीम्स और पोस्ट वायरल होते रहे हैं, जहां लोग इसे “फिल्म से ज्यादा महंगा नाश्ता” बताते हैं। इसके बावजूद, सिनेमाघर प्रबंधन का तर्क यही रहा है कि खाने-पीने से होने वाली कमाई उनके कारोबार का अहम हिस्सा है।
OTT प्लेटफॉर्म्स ने बढ़ाई बहस
OTT प्लेटफॉर्म्स के आने के बाद यह बहस और तेज हो गई है। लोग तुलना करने लगे हैं कि घर बैठे कम खर्च में नई फिल्में देखी जा सकती हैं, जबकि मल्टीप्लेक्स में एक फिल्म के साथ खाने-पीने पर भारी रकम खर्च करनी पड़ती है। कुल मिलाकर, मल्टीप्लेक्स में खाने-पीने की महंगाई पर सवाल पहले भी उठते रहे हैं और आज भी उठ रहे हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि अब दर्शक ज्यादा मुखर हैं और विकल्प भी उनके पास ज्यादा हैं। आने वाले समय में यह देखना होगा कि सिनेमाघर उद्योग दर्शकों की नाराजगी को कैसे दूर करता है और कीमतों को लेकर कोई संतुलन बना पाता है या नहीं।
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