हिट एंड रन केस: गुजरात के अहमदाबाद शहर में एक हिट एंड रन केस (Ahmedabad Hit and Run Case) ने पुलिस की कार्यप्रणाली पर कई गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। 14 मई की रात पैलेडियम मॉल के पास एक Mercedes Car ने फुटबॉलर राहुल भाटिया की बाइक को टक्कर मार दी थी। राहुल गंभीर रूप से घायल हो गए और अब भी अस्पताल में वेंटिलेटर पर हैं। हैरान करने वाली बात ये है कि कार चला रहा युवक कोई और नहीं बल्कि अहमदाबाद पुलिस के एक कांस्टेबल का बेटा विजय रबारी निकला, जो टक्कर मारकर मौके से फरार हो गया था।
हिट एंड रन केस: पुलिस की लापरवाही से नाराज़गी, आरोपी को मिली बेल
इस केस में अहमदाबाद पुलिस की लापरवाही (Ahmedabad Police Negligence) साफ नजर आ रही है। जिस कार का नंबर मौजूद था, वह Mercedes थी, फिर भी पुलिस को आरोपी तक पहुंचने में पूरे 8 दिन लग गए। जब तक सोशल मीडिया और मीडिया ने इस मुद्दे को नहीं उठाया, पुलिस की जांच बेहद धीमी गति से चल रही थी। इतना ही नहीं, पुलिस ने कोर्ट में आरोपी की बेल का विरोध तक नहीं किया, जिससे विजय रबारी को अदालत से आसानी से जमानत मिल गई।
पुलिस ने क्यों नहीं किया बेल का विरोध?
यह सवाल अब अहम बन गया है कि पुलिस ने बेल का विरोध क्यों नहीं किया? क्या इसलिए क्योंकि आरोपी एक पुलिसकर्मी का बेटा है? अगर कोई आम नागरिक इस केस में आरोपी होता, तो क्या पुलिस इतनी ही नरम रहती? कोर्ट में FIR और केस को मजबूत तरीके से पेश न करना, आरोपी की पृष्ठभूमि को छिपाना और बेल का विरोध न करना ये सभी बातें पुलिस की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करती हैं।
कांस्टेबल का बेटा Mercedes कैसे चला रहा था?
इस केस में एक और बड़ा सवाल उठ रहा है – एक कांस्टेबल का बेटा Mercedes कार कैसे चला रहा था? एक सामान्य कांस्टेबल की महीने की सैलरी 30-40 हजार रुपये होती है। ऐसे में करोड़ों की Mercedes कार उनके बेटे के पास कैसे आई? यह जांच का विषय है कि कहीं यह मामला सिर्फ Hit and Run का नहीं बल्कि अवैध संपत्ति, पैसे के स्रोत, और पुलिस संरक्षण जैसी कई परतों को उजागर करता है।
हिट एंड रन केस: राहुल भाटिया की हालत गंभीर, 30 लाख रुपये का खर्च
इस घटना में घायल हुए राहुल भाटिया, जो सेंट जेवियर्स कॉलेज की फुटबॉल टीम के कप्तान रहे हैं, अभी भी वेंटिलेटर पर हैं। उनके चेहरे और सिर में गंभीर चोटें आई हैं। इलाज में करीब 30 लाख रुपये का खर्च आने की संभावना है, जिसे जुटाने में परिवार और सामाजिक संस्थाएं लगे हैं। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार अब समाज से मदद की अपील कर रहा है। कई संगठन और पत्रकार इस अभियान में मदद कर रहे हैं ताकि राहुल को नया जीवन मिल सके।
आरोपी के पिता की भूमिका पर भी सवाल
जिस तरह से पुलिस ने इस केस को शुरू में गंभीरता से नहीं लिया, उससे आरोपी के पिता की भूमिका पर भी संदेह पैदा हो रहा है। क्या पुलिसकर्मी होने का फायदा विजय रबारी को मिला? क्या शुरुआत में जांच को धीमा करने का निर्देश कहीं ऊपर से आया था? इस सवाल की जांच होनी चाहिए।
क्या न्याय सबके लिए बराबर है?
यह केस पुलिस की निष्पक्षता पर सवाल खड़े करता है। एक तरफ एक निर्दोष फुटबॉलर अस्पताल में जिंदगी और मौत से लड़ रहा है, दूसरी तरफ एक आरोपी, जो कि पुलिसवाले का बेटा है, जमानत पर बाहर घूम रहा है। सवाल सिर्फ एक एक्सीडेंट का नहीं, पुलिस सिस्टम की पारदर्शिता, अमीरी-गरीबी के फर्क और भ्रष्टाचार पर भी है। क्या पुलिस ने जानबूझकर मामले को कमजोर किया? और सबसे जरूरी क्या राहुल को न्याय मिलेगा? समाज और प्रशासन दोनों को इस मामले में जवाब देना होगा।
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