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April 30, 2025

यमलोक में ही नहीं, धरती पर भी है यमराज का दरबार

Yamraj Temple: भारत में एक से बढ़कर एक अनोखी चीजें हैं, जिसके बारे में कुछ लोग तो जानते भी नहीं हैं। इन्हीं में से एक यमराज का मंदिर भी है। यह अनोखा मंदिर हिमाचल प्रदेश में है। यमराज के नाम से ही लोग डरते हैं, क्योंकि वे मृत्यु के देवता माने जाते हैं। यही कारण है कि लोग इस मंदिर में जाने से भी कतराते हैं। दरअसल, यह अनोखा मंदिर कई रहस्यों से भरा हुआ है। कहा जाता है कि मौत के बाद आत्मा सबसे पहले इसी मंदिर में आती है। यहां से तय किया जाता है कि उन्हें स्वर्ग मिलेगा या नर्क! आइए जानते हैं यमराज के मंदिर से जुड़ी अनकही बातें और इसके इतिहास के बारे में!
Yamraj Temple: मृत्यु के देवता ‘यमराज देव’ का नाम सुन हर कोई थर-थर कांपता है। मृत्यु जीवन का एक ऐसा सत्य है, जिसे नकारा नहीं जा सकता और ना ही इसे घटित होने से रोका जा सकता है। हिन्दू धर्म के अनुसार मृत्यु कब होगी, कैसे होगी और मृत्यु के बाद आत्मा कहां जाएगी, इस सबका संबंध यम देव से है। यमराज को ‘मार्कण्डेय पुराण’ के अनुसार दक्षिण दिशा के दिक्पाल और मृत्यु का देवता कहा गया है। यमराज के अलावा ‘चित्रगुप्त’ को भी मृत्यु के संबंध से याद किया जाता है। चित्रगुप्त यमराज के मुंशी हैं, जो यमलोक में प्रत्येक मनुष्य के कर्मों का लेखा-जोखा देखते हैं। वे मनुष्य के अच्छे और बुरे कर्मों को अपनी बही ‘अग्रसन्धानी’ में लिखते हैं। यमराज को समर्पित मुख्यत: केवल एक मंदिर की ही जानकारी सर्वाधिक उपलब्ध है। लेकिन यमराज जी का एक नहीं, उन्हें समर्पित कुल 4 मंदिर बनाए गए हैं।

भरमौर का यम मंदिर, जहां जाने से डरते हैं लोग

Yamraj Temple: यमराज का यह अनोखा मंदिर हिमाचल के चंबा जिले के भरमौर में स्थित है। यह मंदिर दिखने में बहुत छोटा और बिल्कुल एक घर की तरह लगेगा। हालांकि, इसकी महिमा पूरी दुनिया में फैली हुई है और यह दुनिया भर में यमराज का इकलौता मंदिर है। शाम चौरासी के नाम से मशहूर इस मंदिर परिसर में छोटे-बड़े कुल 84 मंदिर हैं। इसीलिए इसका नाम शाम चौरासी भी है। ऊंचे पहाड़ों के बीच स्थित धर्मराज का यह खास मंदिर कब और किसने बनवाया, इसके बारे में स्पष्ट जानकारी तो कोई नहीं जानता। लेकिन, इतिहास बताता है कि छठी शताब्दी में चंबा के राजा ने मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। इस मंदिर से जुड़ी कई मान्यताएं हैं। कहा जाता है कि मौत के बाद आत्मा सबसे पहले इसी मंदिर में आती है। यहां भगवान चित्रगुप्त व्यक्ति के पाप और पुण्य का ब्यौरा देखकर तय करते हैं कि उसे स्वर्ग मिलेगा या नर्क! उसके बाद आत्मा को यमराज की कचहरी में पेश किया जाता है। यमराज उस आत्मा को अपने साथ ले जाते हैं। ऐसा भी कहा जाता है कि इस मंदिर में कोई भी नहीं जाना चाहता है। कई लोग तो इससे कोसों दूर ही भागते हैं। यही नहीं, लोग मंदिर को देखकर बाहर से ही यम देवता के हाथ जोड़ लेते हैं।
Yamraj Temple: इस मंदिर के अंदर आपको एक खाली कमरा दिखेगा, जिसके बारे में कहा जाता है कि वह चित्रगुप्त का कमरा है। ऐसा बताया जाता है कि जब किसी व्यक्ति की मृत्यु होती है, तो यम के दूत उसकी आत्मा को चित्रगुप्त के पास लाते हैं। चित्रगुप्त देव यहां पर आत्मा के कर्मों का लेखा-जोखा लिखते हैं। इसके बाद, उन्हें चित्रगुप्त के सामने वाले कमरे, यानी यमराज की अदालत में ले जाया जाता है। यहां कुछ कार्रवाई होती है। फिर यह फैसला होता है कि व्यक्ति की आत्मा को स्वर्ग भेजा जाए या नर्क। इस मंदिर में चार द्वार हैं, जो तांबा, लोहा, सोना और चांदी के बने हैं।

धर्मराज यमदेव के अन्य मंदिर

Yamraj Temple: यमुना-धर्मराज मंदिर, विश्राम घाट– यह मंदिर उत्तर प्रदेश के मथुरा में यमुना तट पर विश्राम घाट के पास स्थित है। इसे बहन-भाई का मंदिर भी कहा जाता है क्योंकि यमुना और यमराज भगवान सूर्य के पुत्री और पुत्र थे। इस मंदिर में यमुना और धर्मराज जी की मूर्तियां एक साथ लगी हुई है। ऐसी पौराणिक मान्यता है की जो भी भाई, भैया दूज (भाई दूज) के दिन यमुना में स्नान करके इस मंदिर में दर्शन करता है उसे यमलोक जाने से मुक्ति मिल जाती है।
धर्मराज मंदिर, लक्ष्मण झूला ऋषिकेश – उत्तर प्रदेश के ऋषिकेश में स्थित यमराज का यह मंदिर भी बहुत ही प्राचीन है। यहां गर्भगृह में भगवान यमराज की स्थापित मूर्ति लिखने की मुद्रा में विराजित हैं और इसके आसपास‍ स्थित अन्य मूर्तियों को यमदूत की मूतियां माना जाता है। हालांकि यमराज के बाईं ओर एक मूर्ति स्थापित है, जो चित्रगुप्त की मूर्ति है।
श्रीऐमा धर्मराज मंदिर तमिलनाडु के तंजावुर जिले में स्थित है। यह मंदिर 1000 से 2000 साल पुराना बताया जाता है।

कैसे बने सूर्य पुत्र यम मृत्यु के देवता

Yamraj Rahasya: हिन्दू धर्म में यमराज को मृत्यु का देवता माना जाता है। यमराज व्यक्ति की आत्मा को उसके कर्म अनुसार मृत्यु के बाद उपर्युक्त स्थान प्रदान करते हैं। यानी कि अगर किसी व्यक्ति ने अच्छे कर्म किये हैं तो उसकी आत्मा को स्वर्ग में स्थान प्राप्त होगा वहीं, अगर किसी व्यक्ति ने बुरे कर्म किये हैं तो उसकी आत्मा को नर्क की प्रताड़ना भोगनी पड़ेगी। यमराज न सिर्फ व्यक्ति को मृत्यु देते हैं बल्कि मृत्यु के बाद की यात्रा भी वही तय करते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं कि आखिरकार यमराज मृत्यु के देवता कैसे बने? दरअसल यमराज को मृत्यु का देवता बनने से पहले खुद भी मरना पड़ा था। पृथ्वी पर मृत्यु का चक्र भोगने के बाद ही यमराज को मृत्यु के देवता का पद प्राप्त हुआ था।
Yamraj Rahasya: पौराणिक कथा के अनुसार, एक बार यमराज और शनि देव में युद्ध छिड़ गया था। अपनी-अपनी माताओं के अधिकार के लिए दोनों भाई आपस में लड़ पड़े थे। कई महीनों तक युद्ध चलता रहा और शनि देव और यमराज के बीच का युद्ध भयंकर मोड़ लेने लगा। सूर्य देव समेत सभी देवताओं ने इस युद्ध को रोकने का प्रयास किया लेकिन सभी विफल हो गए। चूंकि शनि देव को बालावस्था से ही महादेव का आशीर्वाद और उनकी कृपा के साथ साथ उनके द्वार दी गई दिव्य शक्तियां प्राप्त थीं, लिहाजा शनि देव ने यमराज को परास्त कर दिया और उन्हें अपने दंडास्त्र से मृत्यु के घाट उतार दिया। अपने पुत्र की मृत काया को देख सूर्य देव अत्यंत विचलित हो उठे। सूर्य देव और उनकी दोनों पत्नियों देवी संज्ञा और देवी छाया ने महादेव का आवाहन किया और महादेव के प्रकट होने पर उनसे पुनः यम को जीवित करने का आग्रह किया। महादेव ने सूर्य देव की प्रार्थना को ठुकराते हुए उन्हें यह समझाया कि मृत्यु अटल सत्य है और एक मात्र उनके पुत्र के लिए वह इस सत्य को परिवर्तित नहीं कर सकते हैं। तब शनि देव ने स्वयं महादेव से प्रार्थना की और उन्हें यम को जीवित करने के पीछे का ठोस कारण भी बताया। शनि देव ने भगवान शिव को कहा कि 1 माह के बाद मृत्यु के देवता का दायित्व संभालने के लिए महादेव स्वयं देवताओं में से ही किसी का चयन करने वाले थे। इस चयन का आधार होता है मृत्यु के चक्र को पूरा करना। यम देवता पुत्र हैं किन्तु उन्हें किसी भी प्रकार की दैवीय शक्ति प्राप्त नहीं हुई थी। इसी कारण से वह अमृत से वंचित थे और उनकी मृत्यु हुई। इस तरह यम ने मृत्यु का चक्र सर्वप्रथम पृथ्वी पर पूरा कर लिया है। इस आधार पर महादेव को यम को न सिर्फ जीवित करना चाहिए बल्कि उन्हें मृत्यु का देवता भी बनाना चाहिए। भगवान शिव शनि देव के तर्क से प्रसन्न हुए और उन्होंने शनि देव के आग्रह पर सूर्य पुत्र यम को जीवित कर दिया। भगवान शिव ने सूर्य पुत्र यम को मृत्यु के देवता का कार्यभार सौंपा और इस प्रकार सूर्य पुत्र यम मृत्यु देव यमराज बने।

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