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विश्व टीबी दिवस – कोरोनावायरस से भी ज्यादा घातक है टीबी, हर दिन मरते है 4 हज़ार लोग

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विश्व टीबी दिवस – कोरोनावायरस से भी ज्यादा घातक है टीबी

कोरोनावायरस का ख़ौफ़ देश में इस कदर है कि इससे बचने के लिए देश के अधिकतर राज्यों में कर्फ़्यू लगाया गया है, आलम ऐसे है कि सबकुछ ठप्प सा है, जिंदगी मानो ठहर सी गयी है, कोयोनावायरस से बचने के लिए लॉक डाउन और सोशल डिस्टेंसिंग बेहद जरुरी है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने इसे महामारी घोषित कर चुकी है, वैश्विक स्तर पर बचाव के लिए कई कड़े कदम उठाये जा रहे है। हर दिन सैकड़ों की मौत कोरोनावायरस से हो रही है लेकिन क्या आपको पता है कि कोरोनावायरस से ज्यादा भारत के लिए टीबी घातक है। विश्व स्वास्थ्य संगठन की रिपोर्ट के मुताबिक भारत उन 7 देशों की सूची में शामिल है जहां टीबी के सबसे ज्यादा मरीज है। ऐसे में कोरोना से डरने की जरूरत तो है लेकिन उससे ज्यादा भारत में टीबी के आंकड़े डरावने है। आज विश्व टीबी दिवस है ऐसे में आइये जानते है भारत में टीबी क्यों है एक गंभीर समस्या है।

क्यों मनाया जाता है विश्व टीबी दिवस

विश्व टीबी दिवस वैश्विक टीबी महामारी को ख़त्म करने और टीब) के स्वास्थ्य, सामाजिक और आर्थिक परिणामों के बारे में सार्वजनिक जागरूकता प्रसारित करने के प्रयासों को बढ़ाने के लिए हर साल 24 मार्च को मनाया जाता है। डॉ॰ रॉबर्ट कॉख ने इस दिन साल 1882 में टीबी के जीवाणु की खोज की थी, जिसके कारण टीबी होता है। इस बार विश्व टीबी दिवस का विषय “यह समय है, कार्रवाई का! यह समय है टीबी को ख़त्म करने का” है। विश्व टीबी दिवस 2020 के मौके पर ये जान लेना बेहद जरूरी है कि यह बीमारी दुनियाभर में संक्रमण से होने वाली मौतों में शीर्ष पर बनी हुई है। 2018 में दुनिया भर में टीबी से करीब 1 करोड़ लोग बीमार हुए और 15 लाख लोगों ने इस बीमारी से अपनी जान गंवाई। डब्लूएचओ के मुताबिक, रोजाना 4 हजार लोग टीबी के कारण अपनी जान गंवाते हैं और 30000 लोग इसकी चपेट में आते हैं।

कोरोना की तरह टीबी भी महामारी घोषित है

विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कोरोना को तो महामारी घोषित की ही है लेकिन टीबी भी महामारी है। विश्व की एक चौथाई आबादी के टीबी बैक्टीरिया से संक्रमित होने का अनुमान है। ये लोग न तो बीमार हैं और न ही संक्रामक। हालांकि, इन्हें टीबी रोग होने का अधिक खतरा है, विशेष रूप से कमजोर इम्यूनिटी वाले लोगों को। इन लोगों को टीबी निवारक उपचार देकर न केवल इन्हें बीमार होने से बचाया जा सकता है बल्कि लोगों में फैलने के खतरे में भी कमी लाई जा सकती है। कोरोना के मरीजों का जिस तरह से देखकर पता लगाना या फिर फ्लू के लक्षणों को देखते हुए ये तय कर कि मरीज कोरोना से पीड़ित है ये जिस तरह से मुश्किल होता है ठीक उसी तरह टीबी भी है।

टीबी के मामलों में आ रही है कमी

WHO की वैश्विक टीबी रिपोर्ट 2017 के अनुसार भारत, इंडोनेशिया, चीन, फिलीपींस, पाकिस्तान , नाजीरिया और साउथ अफ्रीका में इससे गंभीर रूप से प्रभावित है। दुनिया में टीबी के मरीजों की संख्या का 64 प्रतिशत सिर्फ इन्हीं सात देशों में है, जिनमें भारत सबसे ऊपर है। भारत के अलावा चीन और रूस में 2016 में दर्ज किए मामलों में करीब आधे 4,90,000 मामलें मल्टीड्रग-रेसिस्टैंट टीबी के है। दुनिया के सभी देश अगर सही तरीके से टीबी का इलाज होता रहे तो वर्ष 2030 तक इस बीमारी पर काबू पाया जा सकता है। और यही लक्ष्य भारत सरकार का भी है। साल 2000 से टीबी की रोकथाम और इसके इलाज के लिए वैश्विक प्रयासों में तेज़ी आई है और 5.4 करोड़ लोगो के जीवन की रक्षा करने में मदद मिली है, टीबी की वजह से होने वाली मृत्यु दर में भी 42 फ़ीसदी की कमी आई है।

टीबी की रोकथाम में सीएसआर मददगार

देश में टीबी को हराने के लिए कॉर्पोरेट्स आगे आये हुए है, बड़े पैमाने पर देश की कंपनियों ने अपने सीएसआर फंड का इस्तेमाल टीबी के रोकथाम के लिए इस्तेमाल कर रही है, लूपिन इंडिया टीबी के खात्मे के लिए लगातार सीएसआर के तहत काम कर रही है, अपोलो टायर भी टीबी और HIV मरीजों के लिए सीएसआर फंड का इस्तेमाल कर रहा है। देश के तमाम कॉर्पोरेट केंद्र और राज्य सरकारों के साथ मिलकर टीबी को हराने और देश को जिताने का काम कर रही है। टीबी होने पर आपको खानपान पर विशेष ध्यान देने की जरूरत है ऐसे में सीएसआर के तहत कई कॉर्पोरेट्स नुट्रिशन पर भी अपना सीएसआर खर्च कर रही है।

कोरोना की तरह टीबी से बचाव ही टीबी का बेहतर उपचार

टीबी की बीमारी एक घातक संक्रामक रोग है, जो कि माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस जीवाणु की वजह से होती है। टीबी आमतौर पर ज्यादातर फेफड़ों पर हमला करता है, लेकिन यह फेफड़ों के अलावा शरीर के अन्य भागों को भी प्रभावित कर सकता है। यह रोग हवा के माध्यम से फैलता है। जब क्षयरोग से ग्रसित व्यक्ति खांसता, छींकता या बोलता है तो उसके साथ संक्रामक ड्रॉपलेट न्यूक्लीआई उत्पन्न होता है, जो कि हवा के माध्यम से किसी अन्य व्यक्ति को संक्रमित कर सकता है। ये ड्रॉपलेट न्यूक्लीआई कई घंटों तक वातावरण में सक्रिय रहते हैं। जब एक स्वस्थ व्यक्ति हवा में घुले हुए इन माइकोबैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस ड्रॉपलेट न्यूक्लीआई के संपर्क में आता है तो वह इससे संक्रमित हो सकता है। टीबी के कई प्रकार भी होते है, कई बार ऐसे मामले सामने आते है कि टीबी मरीजों पर दवाईयां काम भी नहीं करती।

टीबी के ये है लक्षण

लगातार 3 हफ्तों से खांसी का आना और आगे भी जारी रहना।
खांसी के साथ खून का आना।
छाती में दर्द और सांस का फूलना।
वजन का कम होना और ज्यादा थकान महसूस होना।
शाम को बुखार का आना और ठंड लगना।
रात में पसीना आना।