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May 22, 2025

ये भारतीय नारी है जनाब, लोको ही नहीं चलाती- आपका बोझ भी उठाती है

 Women Achievers: भारत की महिलाएं आज हर क्षेत्र में अपना परचम लहरा रही हैं। देश विदेश में भारतीय महिलाओं की काबिलियत को पहचान कर उन्हें सम्मानित पद की जिम्मेदारी दी जा रही है। कहा भी जाता है कि आज की महिलाएं हर काम कर सकती हैं। आसमान में प्लेन उड़ाने से पटरी पर ट्रेन दौड़ाने तक में महिलाएं सक्षम हैं। लेकिन आधुनिक भारत की महिलाओं को आज हर क्षेत्र में मौके मिल रहे हैं, इसी कारण वह अधिक सक्षम है। हालांकि आज की महिलाओं को ये मौके इतिहास की उन महिलाओं के कारण मिले, जिन्होंने पहली बार किसी ऐसे क्षेत्र में कदम रखा, जहां कभी किसी महिला ने प्रवेश ही नहीं किया था। उनके पहले प्रयास और सफलता के कारण ही महिलाओं के लिए रास्ते खुलते चले गए। आइए मिलते हैं ऐसी ही कुछ महिलाओं से, जिन्होंने पुरुषों के वर्चस्व वाले क्षेत्रों में सफलता के झंडे गाड़े।

कटनी स्टेशन की कुली नंबर 36 ‘संध्या मारावी’

 Women Achievers: यहां कटनी रेलवे स्टेशन पर पिछले कई साल से एक महिला कुली यात्रियों का बोझा ढोती नजर आती है। स्टेशन पर बोझा ढोने का काम ट्रेडिशनली मर्द ही करते आए हैं, लेकिन इस फील्ड में एक महिला की एंट्री लोगों को हैरत में डाल रही है। आखिर क्या मजबूरी है जिससे एक महिला होकर संध्या मारावी को 45 पुरुष कुलियों के साथ काम करना पड रहा है। Women Achievers: संध्या बताती हैं, “मैं नौकरी की तलाश में थी। किसी ने मुझे बताया कि कटनी रेलवे स्टेशन पर कुली की जरूरत है। मैंने तुरंत अप्लाई कर दिया।” ”मैं यहां 45 पुरुष कुलियों के साथ काम करती हूं। मुझे बिल्ला नंबर 36 मिला है। संध्या जबलपुर में रहती हैं। अपनी जॉब के लिए वो हर रोज 90 किमी ट्रैवल (45 किमी आना-जाना) कर कटनी रेलवे स्टेशन आती हैं। दिनभर बच्चों की देखभाल उनकी सास करती हैं।
Women Achievers: कटनी जंक्शन पर कुली का काम कर रही महिला का नाम संध्या मारावी है। जनवरी 2017 से यह काम कर रहीं संध्या इसके पीछे की मजबूरी के बारे में बताती हैं, मैं अपने पति के साथ यहीं कटनी में रहती थी। हमारे तीन बच्चे हैं। मेरे पति लंबे समय से बीमार चल रहे थे। 22 अक्टूबर 2016 को उन्होंने अंतिम सांस ली। बीमारी के बावजूद वे मजदूरी कर घर का खर्च चलाते थे। उनके बाद मेरे ऊपर सास और अपने तीन बच्चों की जिम्मेदारी आ गई। ऐसे में मुझे जो नौकरी मिली, मैंने कर ली। वह कहती है, भले ही मेरे सपने टूटे हैं, लेकिन हौसले अभी जिंदा है। जिंदगी ने मुझसे मेरा हमसफर छीन लिया, लेकिन अब बच्चों को पढ़ा लिखाकर फौज में अफसर बनाना मेरा सपना है। इसके लिए मैं किसी के आगे हाथ नहीं फैलाऊंगी। कुली नंबर 36 हूं और इज्जत का खाती हूं। Women Achievers: रेलवे कुली का लाइसेंस अपने नाम बनवाने के बाद बड़ी से बड़ी चुनौतियों का सामना करते हुए साहस और मेहनत के साथ जब वह वजन लेकर प्लेटफॉर्म पर चलती है तो लोग हैरत में पड़ जाते हैं और साथ ही उसके जज्बे को सलाम करते हैं।

ई-रिक्शा का स्टेयरिंग पकड़ा तो दौड़ी किरण की जिंदगी की गाड़ी

Women Achievers: कोई भी नया काम मुश्किल जरूर हो सकता है, लेकिन नामुकिन नहीं। देवपुरा की किरण ने इसे साबित किया है। पति के निधन के बाद दो बेटियों और बेटे की परवरिश की जिम्मेदारी ने किरण के हाथों में ई-रिक्शा की स्टेयरिंग थमा दी। हरिद्वार में पहली ई-रिक्शा चलाने वाली महिला की पहचान दे दी। Women Achievers: सड़क पर तमाम मुश्किलें झेलने और रिश्तेदारों के तानों से किरण ने हौंसला नहीं छोड़ा। किरण ने ई-रिक्शा चलाते हुए दोनों बेटियों को बीएड करवाने के बाद उनकी शादी करवा दी। बेटे को पढ़ा रही हैं। घर का कामकाज करने के साथ किरण प्रत्येक दिन छह घंटे सड़कों पर ई-रिक्शा चलाकर यात्रियों को उनके गंतव्य तक पहुंचाती है। देवपुरा की किरण की उम्र 45 साल से अधिक है, लेकिन उसका हौसला युवाओं से कम नहीं है।
Women Achievers: 2010 में किरण के पति नेकसु सिंह की बीमारी से निधन हो गया। दो बेटियां और एक बेटे के भरण पोषण की जिम्मेदारी किरण पर आ गई। नाते-रिश्तेदारों ने मुंह फेर लिया। किरण ने दूसरों के घरों में बर्तन माजकर और झाड़ू पोंछा कर बच्चों की पढ़ाई नहीं छूटने दी। सुबह-शाम बच्चों के साथ गंगा घाट पर प्रसाद और केन बेचनी शुरू कर दी। कुछ रुपये जमा करने के बाद किरण ने 2017 में एक पुराना आटो लिया।

दिहाड़ी पर रखा ड्राइवर हुआ ऑटो लेकर फ़रार

Women Achievers: ऑटो के लिए दिहाड़ी पर ड्राइवर रखा, लेकिन ड्राइवर ऑटो लेकर भाग निकला। किरण इस घटना के बाद टूट गई। 2019 में किरण ने खुद ऑटो चलाने की ठान ली। ई-रिक्शा खरीदा और सड़क पर चलाने उतर गई। किरण हरिद्वार की पहली ऐसी महिला थी जो ई-रिक्शा दौड़ाने लगी। हर कोई किरण को देखकर ताज्जुब करता। कोई यात्री किरण का हौसला बढ़ाता को कई ताने भी मारता।
Women Achievers: किरण ने किसी की परवाह नहीं की और ई-रिक्शा को परिवार की आजीविका का साधन बना लिया। मूल रूप से नजीबाबाद की किरण ने बताती हैं, ई-रिक्शा चलाकर बेटियों को बीएड करवाया। उनकी शादी करवा दी है। अब बेटा है और उसे पढ़ा रही है। किरण बताती है, सुबह घर का कामकाज कर ई-रिक्शा लेकर निकलती है। दोपहर में घर में खाना बनाने आती हैं और फिर खाकर निकल जाती हैं। शाम को फिर सड़क पर ई-रिक्शा लेकर निकल पड़ती हैं। गंगा आरती के बाद रात 11 बजे तक सवारियों को उनके गंतव्य तक छोड़ती हैं। शुरुआत में लोग ताने मारते थे। डर भी लगता है, लेकिन डर को भगाया और तानों को नजरअंदाज किया। आज हरकी पैड़ी से नगर कोतवाली तक सवारियों को ले जाती हैं। किरण कहती हैं कोई भी काम नामुमकिन नहीं है।

एशिया की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर सुरेखा यादव

Women Achievers: सुरेखा यादव पहली भारतीय महिला हैं, जो ट्रेन की पायलट बनीं। ट्रेन के ड्राइवर को लोको पायलट कहते हैं। सुरेखा यादव पूरे एशिया की पहली लोको पायलट हैं। चलिए जानते है सुरेखा यादव के रेल ड्राइवर बनने की कहानी।
Women Achievers: एशिया की पहली महिला रेल पायलट सुरेखा यादव का जन्म महाराष्ट्र में 2 सितंबर 1965 को हुआ था। उन्होंने राज्य के सतारा में स्थित सेंट पॉल कॉन्वेंट हाई स्कूल से अपनी शुरुआती शिक्षा हासिल की। आगे की पढ़ाई के लिए सुरेखा ने वोकेशनल ट्रेनिंग कोर्स किया और बाद में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग में डिप्लोमा हासिल किया।पढ़ाई के दौरान सुरेखा आम लड़कियों की तरह भी अपने करियर और भविष्य को लेकर सपने देखा करती थीं। उन दिनों वह लोको ड्राइवर नहीं, बल्कि टीचर बनना चाहती थीं। उन्होंने टीचर बनने के लिए बी-एड की डिग्री प्राप्त करने की योजना बनाई थी। हालांकि बाद में उनकी राह बदली और वह रेलवे में शामिल हो गई।

सुरेखा की रेलवे में नौकरी

Women Achievers: टेक्निकल बैकग्राउंड और ट्रेनों को लेकर सुरेखा को बचपन से लगाव था। उन्होंने पायलट के लिए फॉर्म भर दिया। साल 1986 में उनकी लिखित परीक्षा हुई, जिस में पास होने के बाद इंटरव्यू भी क्लियर कर लिया। बाद में सुरेखा कल्याण ट्रेनिंग स्कूल में सहायक चालक के तौर पर नियुक्त हुईं। ट्रेनिंग पूरी होने के बाद 1989 में सुरेखा यादव नियमित सहायक ड्राइवर के पद पर प्रमोट हो गईं। Women Achievers: सुरेखा ने सबसे पहले मालगाड़ी के ड्राइवर के तौर पर करियर की शुरुआत की। धीरे धीरे उनकी ड्राइविंग स्किल्स बेहतर होती गई। साल 2000 में मोटर महिला के पद पर उनका प्रमोशन हुआ। उसके बाद साल 2011 में सुरेखा एक्सप्रेस मेल की पायलट बनीं। इसी के साथ महिला दिवस के मौके पर सुरेखा यादव को एशिया की पहली महिला ट्रेन ड्राइवर होने का खिताब हासिल हुआ। सुरेखा ने सबसे खतरनाक रेलवे रूट माने जाने वाले पुणे के डेक्कन क्वीन से सीएसटी रूट पर ट्रेन ड्राइविंग की है।

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