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कहीं बेरोजगारी के चलते मानसिक तनाव, तो कहीं बढ़ते वर्कलोड के दबाव में हत्याएं – क्यों नहीं बन पा रहा संतुलन?

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कहीं बेरोजगारी के चलते मानसिक तनाव, तो कहीं बढ़ते वर्कलोड के दबाव में हत्याएं - क्यों नहीं बन पा रहा संतुलन ?
 
31 जुलाई को जयपुर-मुंबई एक्सप्रेस ट्रेन में हुई अंधाधुंध गोलीबारी ने यात्रियों को तब कसाब की याद दिला दी, जब आरपीएफ जवान ने अपने सीनियर समेत 4 लोगों को गोलियों से भून डाला। चलती ट्रेन में हुई फायरिंग की इस घटना ने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। आरोपी कांस्टेबल 33 वर्षीय चेतन सिंह ने एएसआई टीकाराम मीणा सहित 4 लोगों की जान ले ली। एफआईआर के अनुसार घटना की रात कांस्टेबल चेतन सिंह ने अधिकारी मीणा से कहा कि वो अस्वस्थ है और अपनी ड्यूटी से कुछ घंटे पहले ही छुट्टी चाहता है, परंतु टीकाराम मीणा ने उसे छुट्टी न देकर मुंबई तक चलने को कहा। इस बात से नाराज चेतन ने अपनी सर्विस रिवॉल्वर से पहले एएसआई मीणा की हत्या की फिर गुस्से में अन्य 3 यात्रियों को भी मौत के घाट उतार दिया।

मानसिक तनाव में अंधाधुंध फायरिंग?

31 जुलाई को अलस्सुबह 5 बजे जिस तरह ये घटना हुई, कोई शक नहीं कि चेतन सिंह किसी मानसिक तनाव से गुजर रहा था। मनोचिकित्सकों के अनुसार ड्यूटी जॉइन करने से पहले सभी पुलिस वालों, आरपीएफ जवानों और अन्य सभी सरकारी अधिकारियों और कर्मचारियों की हर तरह की मेडिकल जांच की जाती है। इसके बाद हर 6 महीने में ये जांच दोहराई जाती है, लेकिन इसमें किसी तरह की कोई मानसिक जांच शामिल नहीं है। इसका कारण हमारे देश में अभी भी मानसिक फिटनेस के प्रति जागरूकता का न होना है। आरोपी के परिवार के अनुसार चेतन के दिमाग में खून का थक्का होने की बात डॉक्टर ने उसे बताई थी और एक लंबे वक़्त से उसका इलाज भी चल रहा था जिसके चलते चेतन शारीरीक और मानसिक रूप से तनाव मे रहने लगा था।

बिना आराम लगातार घंटों तक ड्यूटी से परेशान आरपीएफ जवान

दरअसल सुविधाओं के अभाव और बिना आराम के लगातार घंटों तक ड्यूटी करते रहने से पुलिस और आरपीएफ जवान परेशान हो जाते हैं। कागज़ों पर तो इनकी ड्यूटी 8 घंटे होती है, पर इनसे 12-14 घंटे लगातार काम करवाया जाता है। घरों से दूर रह रहे ये जवान यूं भी अकेलेपन से जूझ रहे होते हैं, वेतन भी इतना नहीं होता कि परिवार और बच्चों की जरूरतें पूरी कर पाएं। उस पर निरंतर घंटों तक अतिरिक्त ड्यूटी के दबाव से सेहत भी जवाब देने लगती है। चेतन के वकील ने बताया कि गिरफ़्तारी के पिछले 24 घंटों में चेतन ने कुछ भी खाया-पीया नहीं था। बीमार तन और मन का बोझ एक साथ न झेल पाने के चलते उसने गोलीबारी कर अपना गुस्सा अपने वरिष्ठ अधिकारी पर उतार दिया।

रेलवे में 2 लाख 93 हज़ार से ज़्यादा पद खाली

एक रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार के विभिन्न विभागों में 9.79 लाख से अधिक पद खाली पड़े हैं, जिनमें सबसे अधिक 2 लाख 93 हज़ार से ज़्यादा अकेले रेल्वे में हैं। ऐसे में कार्यरत जवानों को अक्सर डबल ड्यूटी करनी पड़ती है। उन पर काम का प्रेशर तो होता ही है, कई जगहों पर अफसरों के उत्पीड़न से भी गुजरना पड़ता है। चेतन के ताऊ भगवान सिंह के अनुसार चेतन भी अक्सर अपने अधिकारियों द्वारा अपने मानसिक शोषण की शिकायत करता था। इसी के चलते उसका तबादला पहले उज्जैन, फिर वड़ोदरा और अब मुंबई कर दिया गया था। फायरिंग में मारे गए एएसआई मीणा से भी उसका विवाद चल रहा था। वह सिस्टम से बहुत दुखी था।

मानसिक अस्थिर सिपाही को हथियार क्यों दिया गया?

सवाल यह है कि मानसिक और शारीरिक रूप से अस्थिर एक सिपाही को हथियार कैसे दे दिया गया? हथियारों के साथ काम करने वालों की समय-समय पर मानसिक जांच और काउंसलिंग क्यों नहीं की जाती? यदि अधिकारी और सहकर्मी चेतन सिंह की बीमारी के बारे में जानते थे तो अस्वस्थ होने की शिकायत के बावजूद उसे छुट्टी क्यों नहीं दी गई? इस घटना को एक अलग राजनीतिक रंग देने की कोशिश भी जारी है परंतु मनोचिकित्सकों की मानें तो अलग-अलग परिस्थितियों में हर इंसान का बर्ताव अलग-अलग होता है। चेतन के मामले में अग्रेशन और हिंसा की चरम परिस्थिति दिखाई देती है। किसी इंसान को इस कदर हिंसा की चरम पराकाष्ठा तक ले जाने के लिए कौन सी परिस्थितियां जिम्मेदार हैं, ये तो आने वाला वक़्त ही बताएगा, फिलहाल इस शूटआउट कांड ने मानसिक स्वास्थ्य की जागरूकता को लेकर एक बहस तो छेड़ ही दी है। क्या यही हमारे सपनो का भारत है?