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October 1, 2025

वास्तु शास्त्र: विज्ञान या अंधविश्वास? जानिए क्या सच में बदल सकती है आपकी किस्मत और घर की ऊर्जा!

The CSR Journal Magazine
हम सब चाहते हैं कि हमारा घर सुख-समृद्धि, स्वास्थ्य और शांति से भरा रहे। क्या आपने कभी सोचा है कि घर की बनावट और दिशा भी हमारे जीवन को प्रभावित कर सकती है? इसी सवाल का जवाब है वास्तु शास्त्र।
वास्तु शास्त्र प्राचीन भारतीय ज्ञान है, जो घर, दफ्तर और दुकान जैसी जगहों पर सकारात्मक ऊर्जा बढ़ाने और नकारात्मक ऊर्जा कम करने के नियम बताता है। अगर घर का वास्तु संतुलित है, तो जीवन में शांति, स्वास्थ्य और सफलता आती है। वहीं, वास्तु दोष होने पर तनाव, बीमारी और असफलता बढ़ सकती है।

वास्तु शास्त्र क्या है और कहां से आया?

वास्तु शास्त्र प्राचीन भारतीय ज्ञान है जिसकी जड़ें वेदों और पुराणों तक जाती हैं। लगभग 3000 साल पहले जब निर्माण कला विकसित हो रही थी, तब पंचतत्व (जल, अग्नि, वायु, पृथ्वी और आकाश) और दिशाओं के संतुलन पर आधारित नियम बनाए गए। बाद में इन्हें ‘वास्तु शास्त्र’ के रूप में ग्रंथों में दर्ज किया गया।

जीवन पर प्रभाव

विशेषज्ञों का मानना है कि वास्तु का सीधा असर घर के वातावरण और वहां रहने वाले लोगों की मानसिक स्थिति पर पड़ता है। सही वास्तु जीवन में शांति और प्रगति लाता है, जबकि वास्तु दोष तनाव, बीमारी और असफलता का कारण बन सकता है। हालांकि वैज्ञानिक दृष्टिकोण से इसकी पुष्टि अभी तक स्पष्ट नहीं है, इसलिए इसे लेकर समाज में मिश्रित राय मिलती है।

वास्तु शास्त्र अहम भूमिका या अंधविश्वास 

समर्थकों के अनुसार, यह प्रकृति और ऊर्जा संतुलन पर आधारित एक प्राचीन विज्ञान है।विरोधियों का मानना है कि यह केवल परंपरा और विश्वास का हिस्सा है, विज्ञान नहीं।यानी वास्तु शास्त्र को पूरी तरह नकारा भी नहीं जा सकता और इसे पूर्ण विज्ञान मानना भी जल्दबाजी होगी।

क्यों आम लोगों की पहुंच से दूर है?

वास्तु की गणनाएं, शास्त्रीय भाषा और दिशा-निर्देश जटिल हैं। यही वजह है कि आम लोग इसे खुद समझने की बजाय विशेषज्ञों पर निर्भर रहते हैं। हालांकि, छोटे-छोटे वास्तु टिप्स अपनाना सभी के लिए आसान है।

क्या इसके लिए विशेष योग्यता जरूरी है?

वास्तु शास्त्र समझने के लिए किसी डिग्री की आवश्यकता नहीं है। लेकिन गहराई से अध्ययन करने के लिए शास्त्रों और दिशाओं की जानकारी होनी चाहिए। आम लोग बिना विशेषज्ञ ज्ञान के भी कुछ सामान्य उपाय करके वास्तु दोष से बच सकते हैं।

घर में वास्तु दोष कैसे पहचानें?

  • परिवार में बिना कारण कलह और तनाव रहना।
  • सदस्यों का बार-बार बीमार पड़ना या अनिद्रा होना।
  • मेहनत के बावजूद सफलता न मिलना।
  • चिड़चिड़ापन और मानसिक शांति का अभाव।
  • पढ़ाई और कामकाज अधूरा रह जाना।

वास्तु दोष क्यों होते हैं?

  • रसोई, शौचालय या पूजा स्थान का गलत दिशा में होना।
  • मुख्य द्वार का दक्षिण-पश्चिम में होना।
  • प्राकृतिक रोशनी और वायु का सही प्रवाह न होना।
  • टूटी-फूटी चीजों का जमा होना।
  • पानी का स्रोत गलत जगह होनउत्तर-पूर्व दिशा का गंदा रहना।

बिना तोड़-फोड़ के उपाय

  • आईना (Mirror): शौचालय या रसोई की गलत दिशा संतुलित करने के लिए।
  • वास्तु यंत्र व पिरामिड: श्री यंत्र या धातु पिरामिड घर में लगाएं।
  • पौधे: तुलसी, मनी प्लांट और बैम्बू उत्तर या पूर्व दिशा में रखें।
  • प्राकृतिक रोशनी व सफाई: उत्तर-पूर्व को साफ और रोशन रखें।
  • मंत्रोच्चार और ध्वनि: रोज़ ‘ॐ’, शंख और कपूर/धूप से वातावरण शुद्ध करें।
  • फव्वारा और एक्वेरियम: उत्तर-पूर्व दिशा में रखें।
किस दिशा के दोष से कौन सी समस्या?
  • उत्तर-पूर्व: पारिवारिक और व्यावसायिक विवाद।
  • उत्तर-पश्चिम: कानूनी परेशानियां।
  • दक्षिण-पश्चिम: रिश्तों में तनाव और विवाह में देरी।
  • दक्षिण-पूर्व: आग का भय और महिलाओं की सेहत संबंधी दिक्कतें।

अगर घर में कोना न हो तो क्या करें?

सही स्थान पर वास्तु हेलिक्स या पिरामिड रखें कोनों में नियमित रूप से धूपबत्ती जलाएं ।सजावट और पौधों का उपयोग करके संतुलन बनाएं।

सजावट और वास्तु

लिविंग रूम: अतिथियों का स्थान उत्तर या पश्चिम में रखें।दक्षिण-पूर्व में नीला रंग न करें, हल्का गुलाबी या नारंगी चुनें।
मकड़ी के जाले, धूल और सूखे पौधे तुरंत हटाएं।दक्षिण-पश्चिम में ओवरहेड टैंक रखें।पूजा घर दक्षिण-पश्चिम में न बनाएं।बैडरूम में शीशा ढककर सोएं।

भूलकर भी न करें ये गलतियां

दक्षिण दिशा में पैर करके न सोएं कैक्टस या कांटेदार पौधे शयनकक्ष में न रखें।
उत्तर या पूर्व दिशा में भारी सामान न रखें।मुख्य द्वार की ओर पैर करके सोना अशुभ माना जाता है।

ग्रहों से जुड़े उपाय

  • सूर्य: घर की पूर्व दिशा में सूर्य यंत्र और मुख्य द्वार पर सूर्य की प्रतिमा।
  • शनि: पश्चिम दिशा में शनि यंत्र और मुख्य द्वार पर रोज़ जल चढ़ाना।
  • घोड़े की नाल: मुख्य द्वार पर लगाने से नकारात्मक ऊर्जा दूर रहती है।
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