बद्रीनाथ मंदिर : भगवान विष्णु का धाम
बद्रीनाथ मंदिर उत्तराखण्ड के चमोली जनपद में अलकनन्दा नदी के तट पर स्थित भारत के चार धामों में सबसे प्रमुख है। यहां हर साल लाखों श्रद्धालु भगवान विष्णु के दर्शन करने पहुंचते हैं। लेकिन इस धाम का आकर्षण सिर्फ मंदिर तक ही सीमित नहीं है, बल्कि यहां स्थित तप्तकुंड भी आस्था और चमत्कार का केंद्र है। मान्यता है कि इस कुंड में स्नान करने से न केवल शरीर पवित्र होता है बल्कि, शरीर के अनेक रोग भी दूर हो जाते हैं। बद्रीनाथ मंदिर के पुजारी को “रावल” कहा जाता है, जो कि केरल के नामबूदरी ब्राह्मण होते हैं। ये पुजारी गढ़वाल राजपरिवार और मंदिर समिति के चयन से नियुक्त किए जाते हैं।
भगवान बद्री नारायण की कथा
पौराणिक कथा के अनुसार, भगवान विष्णु ने तपस्या के लिए इस स्थान को चुना था। कहा जाता है कि वे यहां हजारों वर्षों तक योग ध्यान में लीन रहे और मां लक्ष्मी ने उनके लिए “बदरी” यानी बेर का वृक्ष बनकर छाया दी। इसी कारण इस स्थान का नाम “बद्रीनाथ” पड़ा
यहां भगवान विष्णु की मूर्ति शालिग्राम पत्थर से बनी हुई है जिसे “बद्री नारायण” कहा जाता है। यह मूर्ति ध्यान मुद्रा में विराजमान है।
मंदिर की वास्तुकला
बद्रीनाथ मंदिर की ऊंचाई लगभग 50 फीट है और यह रंग-बिरंगे पत्थरों और शिखरों से सजा हुआ है। मंदिर का मुख्य द्वार सिंहद्वार कहलाता है। इसके गर्भगृह में भगवान बद्री नारायण विराजमान हैं। मंदिर का वर्तमान स्वरूप 8वीं शताब्दी में आदि शंकराचार्य ने पुनर्निर्मित कराया था। यह मंदिर शीतकाल में (नवंबर से अप्रैल तक) बंद रहता है और मूर्ति को जोशीमठ में ले जाया जाता है।
तप्तकुंड: बर्फ के बीच गर्म जल का अद्भुत चमत्कार
बद्रीनाथ धाम में चारों ओर साल के अधिकांश समय बर्फ की चादर बिछी रहती है, लेकिन इसी बर्फ के बीच स्थित है तप्तकुंड, जिसका जल सदैव गर्म रहता है। इसका तापमान सामान्यतः 45°C से 55°C तक रहता है। यह एक गर्म जलस्रोत (Hot Water Spring) है, जो कि अलकनंदा नदी के किनारे “गरुड़ शिला” नामक स्थान से निकलता है।
चारधाम यात्रा पर आने वाले लाखों श्रद्धालु बताते हैं कि तप्तकुंड में स्नान करने से उन्हें अद्भुत शांति मिलती है। स्थानीय लोगों का मानना है कि यह जल “मोक्ष दायक” है और पापों को भी धो देता है।
वैज्ञानिक मानते हैं कि इस जल में पाए जाने वाले सल्फर और खनिज तत्व शरीर के लिए औषधि का काम करते हैं। कहा जाता है कि इस जल में अग्नि देव का आशीर्वाद है और इसमें स्नान करने से त्वचा संबंधी रोग, जोड़ों का दर्द, स्नायु में विशेष लाभ होता है। इसमें स्नान करने से शरीर और आत्मा दोनों शुद्ध होते हैं। यही कारण है कि तप्तकुंड को “औषधीय जल” और “रोग-नाशक स्नान स्थल” कहा जाता है।