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जानवर कौन? अवनि या हम

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Tigress Avni Killed
 
जानवर कौन ये सवाल इसलिए क्योंकि बाघिन अवनि की मौत हुई है, अवनि तो जानवर थी ही लेकिन उसे मौत के घाट उतारने वाला इंसान को क्यों ना जानवर कहा जाय, हवाला दिया जा रहा है बाघिन अवनि के नरभक्षी होने का, हवाला दिया जा रहा है 14 लोगों की मौत का जिसका कारण रही बाघिन अवनि, हवाला दिया जा रहा है कानून और नियमों का, कोर्ट के आदेशों का, लेकिन पशुप्रेमी सवाल उठा रहे है कि अवनि की हत्या करना ही क्या मात्र एक आखिरी विकल्प था, 14 लोगों के मौत का जिम्मेदार आखिरकार अवनि क्यों, अवनि का घर जंगल था तो वो 14 लोग उस जंगल में अवनि के पास क्यों गए, अवनि की फितरत ही शिकारी है तो क्या वो शिकार नहीं करेगी, सवाल कई है लेकिन जवाब देने के बजाय इन तर्कहीन तथ्यों को सामने रखा जा रहा है। शार्प शूटर असगर अली ने 2 नवंबर की रात को टी 1 के आधिकारिक नाम से पहचानी जानेवाली अवनि बाघिन को यवतमाल के बोराटी जंगल में मार गिराया। जैसे ही ये खबर बाहर आयी बाघिन अवनि के मौत के बाद पशु प्रेमियों में रोष तो है ही लेकिन अब ये एक राजनितिक मुद्दा भी बन गया है।
महाराष्ट्र में सरकार में शामिल शिवसेना के साथ साथ विपक्षी कांग्रेस और आम आदमी पार्टी ने इस मुद्दे पर सरकार को घेरने की कोशिश की। घटना के बाद लगातार सरकार की तरफ से वनमंत्री सुधीर मुनगंटीवार अपना बचाव करते नज़र आ रहे है। बाघिन की मौत का मामला सिर्फ महाराष्ट्र तक सिमित नहीं रहा, केंद्रीय मंत्री मेनका गांधी और कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भी बाघिन को मारे जाने पर सवाल उठा चुके हैं। बाघिन की मौत के बाद से ही उसे मारने वाले शहाफत अली और उनके बेटे असगर अली खान का कहना है कि वह महाराष्ट्र वन्य विभाग के फैसले के आधार पर किया। इस फैसले को सुप्रीम कोर्ट ने भी सही ठहराया था। उन्होंने दावा किया कि भारत में समस्या देने वाले करीब 50 जानवरों को मारा है या फिर शांत किया है। यह काम उन्होंने 40 ऑपरेशंस के तहत किया है। फिर ऐसी क्या नौबत आन पड़ी की अवनि को मौत के घाट उतार दिया गया। पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में भी यह बात सामने आई कि अवनि को साइड से गोली मारी गई थी, जबकि शूटर ने कहा था कि उसने सामने से टीम पर हमला किया था और गोली चलानी पड़ी। विवाद बढ़ता देख अब इस मामले में जांच करने के लिए केंद्र नैशनल टाइगर कंजर्वेशन अथॉरिटी एक्सपर्ट्स की एक टीम महाराष्ट्र भेजेगा। केंद्रीय टीम टी1 की हत्या से जुड़े तथ्यों की जांच करेगी और पता लगाया जायेगा कि ग्राउंड पर प्रोटोकॉल फॉलो किया गया था या नहीं, यह टीम उस पूरे घटनाक्रम को समझेगी और जांच करेगी कि टी1 को किन परिस्थितियों में मारा गया।
बहरहाल वन संरक्षण और वन्य जीवों के लिए सरकार करोड़ों रुपये खर्च करती है, एक तरफ जहाँ टाइगर प्रोजेक्ट को सरकार बढ़ावा दे रही है, जहाँ घटते बाघों की संख्या सरकार के लिए सिर दर्द है, और जहाँ लगातार कॉर्पोरेट कम्पनियाँ वन संरक्षण के लिए लगातार सीएसआर के तहत पानी की तरह पैसा बहा रही है वही अवनि बाघिन की मौत ने सारे किये कराये पार पानी फेर दिया। प्रोजेक्ट टाईगर की शुरुआत 1973 को हुई थी। इसके अन्तर्गत शुरू में 9 बाघ अभयारण्य बनाए गए थे। आज इनकी संख्या बढ़कर 50 हो गई है। सरकारी आकडों के अनुसार साल 2014 तक 2226 बाघ बचे हुए थे। लेकिन अगर ऐसे ही बाघों के प्रति हमारा व्यवहार रहा तो ये सवाल जरूर खड़ा होगा कि जिस देश में नेशनल एनिमल टाइगर है वहां उसकी मौत के जिम्मेदार ये सामाजिक जानवर यानि हम और हमारी सरकारें है।