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September 27, 2025

शादी के साथ बदल जाता है गोत्र, क्या बदलने चाहिए महिला के अधिकार? सुप्रीम कोर्ट की गंभीर टिप्पणी

The CSR Journal Magazine
सुप्रीम कोर्ट ने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम, 1956 की धारा 15(1)(B) की वैधता पर सुनवाई करते हुए बुधवार को कहा कि महिलाओं के अधिकार महत्वपूर्ण हैं, लेकिन सामाजिक संरचना और परंपराओं को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। यह टिप्पणी उस समय आई जब एक याचिका के ज़रिए इस प्रावधान को भेदभावपूर्ण बताते हुए इसे चुनौती दी गई थी।

‘महिला का गोत्र बदलता है, जिम्मेदारी पति के परिवार की होती है’

जस्टिस बी.वी. नागरत्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने कहा कि हिंदू उत्तराधिकार कानून केवल एक कानूनी दस्तावेज़ नहीं, बल्कि यह हिंदू समाज की सदियों पुरानी परंपराओं और सामाजिक ढांचे से गहराई से जुड़ा हुआ है।
न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा, “दक्षिण भारत के विवाहों में एक रिवाज होता है जिसमें यह घोषित किया जाता है कि महिला एक गोत्र से दूसरे गोत्र में जा रही है। विवाह के बाद उसकी जिम्मेदारी पति और उसके परिवार पर होती है। ऐसे में उसकी संपत्ति पर भी वही प्राथमिक हक रखते हैं।”

कोर्ट की सख्त टिप्पणी

कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि वह महिलाओं को अधिकार देने के खिलाफ नहीं है, लेकिन वह किसी ऐसे फैसले से भी बचना चाहता है जिससे सदियों से चला आ रहा सामाजिक संतुलन टूटे। पीठ ने यह भी कहा कि उत्तराधिकार कानून में पहले किए गए संशोधनों के कारण कई परिवारों में दरारें आईं और पारिवारिक ढांचे को नुकसान हुआ।

क्या कहती है धारा 15(1)(B)?

धारा 15(1)(B) के अनुसार, अगर कोई हिंदू महिला बिना वसीयत के मरती है और उसका पति या संतान नहीं है, तो उसकी संपत्ति उसके पति के उत्तराधिकारियों को मिलेगी। केवल तब जब पति के उत्तराधिकारी न हों, संपत्ति महिला के माता-पिता को मिल सकती है।

याचिकाकर्ता की दलील

याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल ने दलील दी कि यह प्रावधान भेदभावपूर्ण है और महिलाओं को उनके मूल परिवार से वंचित करता है। उन्होंने कहा, “अगर एक पुरुष की मृत्यु बिना वसीयत के होती है, तो उसकी संपत्ति उसके माता-पिता और भाई-बहनों को मिलती है। लेकिन महिला के मामले में ऐसा क्यों नहीं?”
वरिष्ठ अधिवक्ता मेनका गुरुस्वामी ने कोर्ट से आग्रह किया कि धार्मिक परंपराओं से अधिक ध्यान वैधानिक ढांचे और संवैधानिक मूल्यों पर होना चाहिए।

अगली सुनवाई 11 नवंबर को

कोर्ट ने कहा कि इस संवेदनशील मुद्दे पर निर्णय लेने में सावधानी बरती जाएगी। जब तक व्यापक कानूनी और सामाजिक पहलुओं पर विचार नहीं हो जाता, तब तक पक्षकारों के बीच समझौते की संभावनाएं तलाशने के लिए उन्हें सुप्रीम कोर्ट के मध्यस्थता केंद्र भेजा गया है। अगली सुनवाई 11 नवंबर को होगी।
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