Thecsrjournal App Store
Thecsrjournal Google Play Store
August 3, 2025

चमार स्टूडियो: जिस जाति का नाम लेकर चिढ़ाते थे लोग, उसी नाम को बना दिया ब्रांड

The CSR Journal Magazine
‘चमार स्टूडियो’ के मालिक सुधीर राजभर को लोग जिस जातिसूचक नाम से चिढ़ाते थे, उसी को उन्होंने एक ब्रांड बना दिया ताकि वे लोगों को आसानी से समझा सकें कि चमार कोई जाति नहीं, बल्कि एक पेशा था, पेशा है और पेशा ही रहेगा। चमार जाती के लोग आमतौर पर चमड़े का काम करते हैं।

देश का संविधान कहता है, जाति से न पुकारें

भारत देश का संविधान कहता है की किसी भी व्यक्ति को उसकी जाति से न संबोधित न करें। इसके बावजूद भी अक्सर लोग ऐसा करते हैं। सरेआम किसी दलित व्यक्ति को अपमानित कर देते हैं। अब इसी तथाकथित अपमानित शब्द को किसी ने आइडिया बना लिया और एक ब्रांड बना दिया। जी हाँ, मुंबई के धारावी के एक युवक ने दलितों के लिए इस्तेमाल होने वाले ‘चमार’ शब्द को लेकर ‘चमार स्टूडियो ‘ शुरू किया। इस स्टूडियो की कल्पना को हकीकत में लाने वाले का नाम सुधीर राजभर है। सुधीर अपने चमार स्टूडियो में फैशनेबल हहैन्डबैग्स और टोट बैग्स बनाते हैं।

गावं में सुनने पड़ते थे जातिसूचक अपमानित शब्द

सुधीर राजभर उत्तर प्रदेश के जौनपुर के रहने वाले हैं। गांव में जातिसूचक नाम से ही पुकारे जाने से अपमानित सुधीर ने चमार शब्द के प्रति सम्मान वापस लाने किए इसे ब्रांड बनाने का फैसला किया। मुंबई में पले-बढ़े सुधीर ने ड्रॉइंग और पेंटिंग में Graduation किया है। उन्होंने साल 2018 में ‘चमार स्टूडियो’ की स्थापना की। शुरुआत में एक दलित मोची के साथ मिलकर काम किया और फुटपाथ पर अपना स्टॉल लागया। काम बढ़ा तो धारावी की टैनरी में लेदर Craftsmen के साथ मिलकर अपना ब्रांड बना लिया। ‘चमार स्टूडियो’ के बैग्स 1500 से लेकर 6000 तक की कीमत में मिलते हैं। मुंबई के कई बड़े शोरूम्स में और ऑनलाइन भी ये बैग्स मिल जाते हैं। सुधीर के ‘चमार’ ब्रांड के बैग्स की अमेरिका, जर्मनी और जापान में भी Demand है। अभी सुधीर ने अपने ब्रांड का कोई स्टोर नहीं खोल है, पर आगे चल कर वो इसपर विचार कर सकते हैं।

Latest News

Popular Videos