देश में पलायन की तस्वीर देख हर कोई विचलित होने लगा, सरकार की लाचारी पर सवाल खड़े होने लगे, सरकार की नाकामी ने मजदूरों के बीच वो गुस्सा पैदा किया कि मानों ये गुस्सा अब फूटे कि तब। इस बीच राहत की खबर आई, मजदूरों को उनके घरों तक भेजने का सरकारी इंतेज़ाम किया गया, स्पेशल ट्रेनों का संचालन शुरू हुआ, नाम दिया गया श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेन, जैसे तैसे शुरू हुई श्रमिक एक्सप्रेस मजदूरों के लिए एक उम्मीद की किरण लेकर आयी। राहत की बात रही कि अब मजदूर पैदल फासलों को नहीं नापेंगे और ना ही मजदूर के पैरों में छाले पड़ेंगे। लेकिन अफ़सोस रेलवे और सरकारें ये वाहवाही बहुत दिनों तक नहीं लूट पायी और अब श्रमिक एक्सप्रेस ट्रेनों की बदइंतजामी सामने आने लगी।
रेलवे की लापरवाही की बेइंतेहां, राम भरोसे चलती हैं रेलवे की श्रमिक ट्रेनें
पहले से कोरोना की महामारी जलते मजदूर, ना मजदूरी बची ना पैसे बचे, किसी तरह अपने गांव जाने की लालसा लिए मजदूरों के साथ अब रेलवे भी मजाक ही कर रही है। दावे तो खूब किये जाते है, सरकार, रेलवे हर कोई ऐसे ऐसे दावे कर रही हो जैसे चारों ओर रामराज्य आ गया हो, मजदूरों को कोई तकलीफ नहीं हो रही है लेकिन सरकारी बदइंतजामी ऐसी है कि मजदूरों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया हो। 36-36 घंटों के सफर में मजदूरों को ना खाना दिया जा रहा है और ना पीने के लिए पानी दिया जा रहा है। भेड़ बकरियों की तरह भरकर राज्य सरकारें भेज दे रही है। ये तक नहीं सोच रही है कि ये मजदूर भी हमारे ही है, इन्ही की वजह से देश की जीडीपी बढ़ती है और पीएम नरेंद्र मोदी ट्रिलियन इकॉनमी का सपना देख पाते है।
मुंबई से चली थी ट्रेन गोरखपुर के लिए पहुंच गई राउरकेला
रेलवे की तरफ से एक बड़ी लापरवाही सामने आई है, बीते 21 मई को महाराष्ट्र के वसई से गोरखपुर के लिए निकली श्रमिक स्पेशल ट्रेन राउरकेला ओडिशा पहुंच गई। पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस नेता आरपीएन सिंह रेलवे की इस लापरवाही पर ट्वीट किया है। आरपीएन सिंह ने अपने ट्वीट में लिखा है, मुंबई से गोरखपुर जाने के लिए निकली श्रमिक स्पेशल ट्रेन राउरकेला, ओडिशा पहुंच गई है क्योंकि ड्राइवर रास्ता भूल गया।
वसई से गोरखपुर के लिए निकली श्रमिक स्पेशल ट्रेन का रूट डाइवर्ट होने की लेकर पश्चिम रेलवे की तरफ से सफाई आई है। रेलवे ने कहा है कि बड़ी संख्या में श्रमिक ट्रेनों के चलने की वजह से जलगांव-भुसावल-खंडवा-इटारसी-जबलपुर रुट पर काफी ट्रैफिक था। इसलिए बिलासपुर रुट से गोरखपुर जाने के लिए ट्रेन को डाइवर्ट किया गया। रुट बदलने के चलते उड़ीसा में ट्रेन के पहुंचने के बाद यात्रियों ने हंगामा किया था, जिसके बाद पश्चिम रेलवे की तरफ से यह सफाई जारी की गई है।
रेलवे की श्रमिक ट्रेनें का हाल, 10-10 घंटे तक आउटर पर सिग्नल नहीं
प्रवासी मजदूर श्रमिक ट्रेनों में दुदर्शा हो रही है, एक तो ट्रेनें देरी से चल रही हैं और न रास्ते में उनको खाना दिया जा रहा है, न डिब्बों की साफ-सफाई हो रही है। कुछ मजदूरों ने ट्रेनें रोके जाने पर रास्ते में प्रदर्शन भी किया है। इसी तरह आंध्र प्रदेश के विशाखापत्तनम से श्रमिक ट्रेनों में बैठकर आए मजदूरों का गुस्सा उस समय फूट पड़ा जब उनकी ट्रेन को दीन दयाल उपाध्याय स्टेशन के आउटर सिंग्नल पर 10 घंटे तक रोके रखा गया।
इस तरह एक और ट्रेन जो कि महाराष्ट्र के पनवेल से जौनपुर आ रही ट्रेन को वाराणसी में करीब 10 घंटे तक रोके रखा गया। इससे गुस्साए मजदूरों ने रेलवे ट्रैक पर बैठकर प्रदर्शन शुरू कर दिया। हालांकि बाद में रेलवे पुलिल ने इन लोगों के खाने की व्यवस्था की तब जाकर ट्रेन को आगे बढ़ाया गया। इस ट्रेन में सफर कर रहे एक यात्री ने बताया कि महाराष्ट्र में एक बार खाना दिया गया था लेकिन उसके बाद यूपी में कुछ नहीं मिला।
इससे पहले भिवंडी से मधुबनी चली श्रमिक ट्रेन बनारस से गोरखपुर चली गई। और फिर गोरखपुर से रक्सौल बॉर्डर, फिर वापस नरकटियागंज होते हुए करीब 24 घंटे की देरी से दंरभगा पहुँची थी। बोरीवली से मधुबनी चली श्रमिक ट्रेन जलगांव तक ठीक गई, उसके बाद नागपुर पहुंच गई। इससे पहले गोरखपुर जाने वाली ट्रेन के साथ भी ऐसी ही खबरें सामने आई थीं।
लापरवाही का जिम्मेदार कौन ?
बहरहाल रेलवे और सरकार पर सवाल उठना लाज़मी हैं कि इस भीषण गर्मी में रेलवे ने यात्रियों के साथ इस तरह क मजाक क्यों किया जा रहा है ? जब सामान्य ट्रेन का परिचालन नहीं हो रहा है तो रेलवे ट्रैफिक का बहाना क्यों बना रहा है? अगर ट्रैफिक इतनी थी तो इसकी जानकारी पैसेंजर को क्यों नहीं दी गई? मुंबई के वसई से गोरखपुर के लिए निकली श्रमिक स्पेशल ट्रेन में रूट के बारे में टिकट पर साफ-साफ जानकारी है तो फिर ट्रेन राउरकेला कैसे पहुंच गई? तमाम सवाल है लेकिन जवाब ना रेलवे के पास और ना सरकार के पास।