रणथंभौर टाइगर रिजर्व की जानी-मानी और निडर बाघिन T-84 उर्फ ‘Arrowhead’ का गुरुवार को निधन हो गया। एरोहेड ने रणथंभौर के जोगी महल इलाके के पास अंतिम सांस ली। वन विभाग की टीम ने शव को कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम किया और फिर राजबाग क्षेत्र में उसका अंतिम संस्कार किया गया।वन अधिकारियों के मुताबिक, एरोहेड पिछले डेढ़ साल से बोन ट्यूमर जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रही थी। इसके बावजूद उसने न केवल जीवन की जंग लड़ी, बल्कि अपने शावकों का पालन-पोषण भी किया।
रणथंभौर की रानी एरोहेड
एरोहेड का जन्म 2014 में बाघिन कृष्णा (T-19) से हुआ था और वह महान मछली (T-16) की पोती थी, जिसे “रणथंभौर की रानी” के रूप में जाना जाता है। मछली दुनिया भर में फोटोग्राफी के जुनूनी लोगों में सबसे लोकप्रिय बाघों में से एक है। उसने भारत में वन्यजीव पर्यटन और बाघों के संरक्षण के प्रति जागरूकता बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। एरोहेड का पालन-पोषण उसकी मां और दादी ने किया, जिससे न केवल उसका क्षेत्र, बल्कि उसका साहसी स्वभाव भी सुरक्षित रहा।
Arrowhead बाघिन की उम्र करीब 16 वर्ष बताई जा रही है, जो कि बाघों के औसत जीवनकाल के अनुसार एक लंबा समय माना जाता है। एरोहेड की पहचान सिर्फ रणथंभौर तक ही सीमित नहीं थी, वह वन्यजीव प्रेमियों और फोटोग्राफरों के बीच भी एक विशेष स्थान रखती थी। उसने जोन 2, 3, 4 और 5 में लंबे समय तक अपना दबदबा बनाए रखा। राजबाग झील और नलघाटी क्षेत्रों में उसकी मौजूदगी आम बात थी।
बर्थमार्क से मिला एरोहेड नाम
बाघिन टी-84 को ‘एरोहेड’ नाम इसलिए दिया गया क्योंकि उसके बाएं गाल पर तीर के आकार का एक विशिष्ट निशान था। यह नाम उसे मार्च 2014 में जन्म लेने के बाद मिला। वह रणथंभौर की मशहूर बाघिन T-19 उर्फ ‘कृष्णा’ और नर बाघ T-28 ‘स्टार’ की संतान थी। वहीं, कृष्णा खुद रणथंभौर की एक और ऐतिहासिक बाघिन ‘मछली’ (T-16) की बेटी थी। इस तरह एरोहेड, मछली की तीसरी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करती थी, जिसने अपने साहस और मातृत्व से जंगल में नई कहानी लिखी।
एरोहेड की विशेष पहचान उसकी दुर्लभ क्षमता थी- मगरमच्छ का शिकार करना! आम तौर पर बाघ मगरमच्छों से दूरी बनाकर रखते हैं, लेकिन एरोहेड ने कई बार मगरमच्छों पर हमला कर उन्हें मौत के घाट उतारा। इसी वजह से वह पर्यटकों के बीच भी आकर्षण का केंद्र बनी रही।
रणथंभौर में बाघों की वंशावली बढ़ाने का यश
एरोहेड के निधन के साथ ही रणथंभौर के एक गौरवशाली अध्याय का अंत हो गया है। उसने जिस तरह जंगल में अपना वर्चस्व बनाए रखा और मां के रूप में शावकों को सुरक्षित बड़ा किया, वह काबिल-ए-तारीफ है। उसकी विरासत अब उसके शावकों के जरिए आगे बढ़ेगी। एरोहेड एक शक्तिशाली बाघिन थी। उसने अपने जीवनकाल में चार शावकों को जन्म दिया, जिससे रणथंभौर में बाघों की आबादी का विस्तार करने में मदद मिली। वह 50 से अधिक बाघों के लिए जिम्मेदार है जो अब मछली के वंश वृक्ष में मौजूद हैं। उनकी बेटी, कंकती (RBT 2507) को हाल ही में मुकुंदरा टाइगर रिजर्व में स्थानांतरित कर दिया गया, जहां वह अब एक अलग घर में अपनी मां की विरासत को आगे बढ़ाएगी।
वन विभाग और स्थानीय लोगों ने एरोहेड को भरे दिल से श्रद्धांजलि दी। रणथंभौर के फारेस्ट अफसरों के मुताबिक, उसकी यादें न केवल रणथंभौर बल्कि देशभर के वन्यजीव प्रेमियों के दिलों में बनी रहेंगी।