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October 8, 2025

प्रदोष व्रत 2025: शिव कृपा पाने और पापों से मुक्ति का सर्वोत्तम दिन, जानें तिथि, पूजा-विधि और महत्व

The CSR Journal Magazine
हिन्दू धर्म में व्रत और उपवास केवल परंपरा नहीं, बल्कि आध्यात्मिक साधना और आस्था का प्रतीक हैं। उन्हीं में से एक है प्रदोष व्रत, जिसे भगवान शिव और माता पार्वती की आराधना के लिए रखा जाता है।हिन्दू धर्म में भगवान शिव की उपासना का अपना अलग ही स्थान है। प्रदोष व्रत हर महीने की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है और यह व्रत विशेष रूप से शाम के समय, यानी प्रदोष काल में किया जाता है।
प्रदोष का अर्थ होता है – ‘संध्या काल’ यानी दिन और रात का मिलन समय। यह वह समय होता है जब संपूर्ण ब्रह्मांड की ऊर्जाएं संतुलित होती हैं।
मान्यता है कि इस व्रत को श्रद्धा और नियम से करने पर जीवन से पाप और दुख दूर हो जाते हैं, सौभाग्य की प्राप्ति होती है और परिवार में सुख-शांति आती है।
धार्मिक ग्रंथों में प्रदोष व्रत को इतना शक्तिशाली बताया गया है कि यह मनुष्य को पापों से मुक्त कर मोक्ष दिला सकता है।

प्रदोष व्रत 2025 की तिथि और शुभ मुहूर्त

2025 में कई बार प्रदोष व्रत आता है लेकिन सितंबर का यह शुक्र प्रदोष व्रत विशेष माना जा रहा है।
तिथि: 19 सितम्बर 2025 (शुक्रवार)प्रदोष काल का समय: दिन के अंत और रात की शुरुआत के बीच का समय।इसका समय सूर्यास्त के 45 मिनट पूर्व से लेकर सूर्यास्त के 45 मिनट बाद तक होता है।इसी काल में भगवान शिव-पार्वती की आराधना करने से भक्त की सभी इच्छाएँ पूर्ण होती हैं। प्रदोष काल को “शाम के समय की गई शिव उपासना का श्रेष्ठ समय” कहा गया है।

पूजा-विधि और नियम

  1. व्रती को प्रातःकाल जल्दी उठकर स्नान करना चाहिए और उपवास का संकल्प लेना चाहिए।
  2. दिनभर फलाहार या निर्जला उपवास रखा जाता है।
  3. संध्या समय पूजा स्थल को गंगाजल से शुद्ध करें और शिवलिंग का जल, दूध, दही, शहद व गंगाजल से अभिषेक करें।
  4. बेलपत्र, धतूरा, अक्षत और सफेद फूल अर्पित करना शुभ माना जाता है।
  5. मंत्र “ॐ नमः शिवाय” का जाप करें और शिव-पार्वती की आरती करें।
  6. पूजा के बाद प्रदोष व्रत की कथा पढ़ें या सुनें, और फिर दान-दक्षिणा देकर उपवास का समापन करें।
इस व्रत में सबसे महत्वपूर्ण है शाम के समय की पूजा, क्योंकि यही समय शिव कृपा बरसाने वाला माना जाता है।

प्रदोष व्रत की कथा और विशेष लाभ

धार्मिक मान्यता के अनुसार, एक बार देवताओं और दानवों के बीच भयंकर युद्ध हुआ। देवताओं ने प्रदोष काल में भगवान शिव का व्रत और स्तुति की, जिससे प्रसन्न होकर शिवजी ने उन्हें विजय का आशीर्वाद दिया।
इसी कारण इसे कष्ट निवारण और पाप विनाशक व्रत कहा जाता है।

प्रदोष व्रत के लाभ

  1. पाप और नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता है।
  2. परिवार में सुख, सौभाग्य और शांति की प्राप्ति होती है।
  3. ग्रह-दोष और अशुभ प्रभावों से मुक्ति मिलती है।
  4. आत्मबल और मानसिक शांति में वृद्धि होती है।
  5. पितरों को तृप्ति और मोक्ष मिलता है।
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