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पीएम के संसदीय क्षेत्र में भटके बच्चों को राह दिखाती सीएसआर

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प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के संसदीय क्षेत्र वाराणसी (Varanasi) में अब भटके बच्चों को राह दिखाएगी सीएसआर। दरअसल Creation India Society नामक संस्था ने चाइल्ड लाइन इंडिया फाउंडेशन व अजीम प्रेमजी फाउंडेशन की मदद से और रेल मंत्रालय के समन्वय से उत्तर प्रदेश के बनारस रेलवे स्टेशन पर भूले भटके, शोषित, बच्चों, युवतियों को रेस्क्यू कर उनके परिवार से मिलाएगी। ये काम सभी संस्थाएं सीएसआर (कॉरपोरेट सोशल रिस्पांसिबिलिटी) पहल से करने वाली हैं।

बच्चों के संरक्षण और पुनर्वसन में मिल रहा है CSR का सहयोग

ऐसे बहुत सारे मामले देखने को मिलते है जहां बच्चे घर से भाग कर या फिर भटककर ट्रेनों में चढ़ जाते है और अगर ये बच्चे गलत हाथों में पड़ जाएं तो ना सिर्फ इनका शारीरिक बल्कि मानसिक शोषण भी होता है। रेलवे स्टेशनों पर चाइल्ड ट्रैफिकिंग के भी कई मामले देखने को मिलता है, यही कारण है कि कई ऐसी गैरसरकारी संस्थाएं (NGO) है जो कॉरपोरेट और सरकार व RPF के साथ मिलकर काम करती है। क्रिएशन इंडिया सोसाइटी के अंतर्गत केशवा बाल कल्याण केंद्र का अभी हालही में शुरुआत हुई है जिससे इस क्षेत्र में आने वाले ट्रेनों में होने वाले बाल अपराध, रेल के डिब्बो में होने वाले शोषण और चाइल्ड ट्रैफिकिंग को बचाने का बड़ा प्रयास होगा।
सीआईएस बनारस रेल चाइल्ड लाइन की सचिव डॉ माला तिवारी ने The CSR Journal से बातचीत में बताया कि ‘बनारस रेलवे स्टेशन के आसपास लावारिश, जुवा खेलने वाले, ड्रग एडिक्ट, ट्रेनों और प्लेटफार्म पर भीख मांगने वाले कई ऐसे लोग और बच्चें है जिसका संरक्षण और पुनर्वसन की बहुत जरूरत है और चाइल्ड लाइन व क्रिएशन इंडिया सोसाइटी इसपर लगातार काम कर रही है, जिसमें CSR की भूमिका बहुत महत्वपूर्ण है”। उत्तर प्रदेश (Uttar Pradesh News) के समस्तीपुर, सोनभद्र और बनारस में क्रिएशन इंडिया सोसाइटी काम कर रही है। जिसकी स्थापना आरआरएस (RSS) के प्रचारक डॉ सत्य प्रकाश तिवारी ने की थी।

सीएसआर की मदद से बच्चों को मिला स्वरोजगार

वाराणसी के रेड लाइट इलाके शिवदासपुर के बच्चों को पढ़ाने का काम हो या फिर उनके स्वास्थ्य की देखरेख सीआईएस बनारस रेल चाइल्ड लाइन इस काम में लगा हुआ है। अब तक संस्था द्वारा 272 बच्चों को उनके परिजनों को मिलाया गया है जिनमें से 22 बच्चे दिव्यांग थे। संस्था द्वारा 14 हज़ार बच्चों को पढ़ाई लिखाई कराकर खुद स्वावलंबी बनाया गया है साथ ही 25 हज़ार बालिकाओं को सिलाई कढ़ाई का प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है जिनमें से साढ़े 8 हज़ार बच्चियों को स्वरोजगार भी मिला है।