बवाल मचा और सवाल हुआ, सवाल ये कि आखिरकार क्यों सरकार बलात्कार जैसी घिनौनी वारदात पर अंकुश नहीं लगा पा रही है, सवाल हुआ कि महिलाओं की सुरक्षा और पुरुषों की मानसिकता कब बदलेगी, सवाल हुआ न्याय व्यवस्था पर, और सबसे बड़ा सवाल हुआ कि आखिरकार जब हमारी बेटियां मर रही है तो उनकी सुरक्षा पर निर्भया फंड क्यों धूल फांक रहा है। संसद में सांसदों ने बेटियों की सुरक्षा का सवाल उठाया, तो निर्भया फंड की भी चर्चा शुरू हुई, जब मामला आगे बढ़ा तो चौकाने वाला खुलासा हुआ, देश के कई ऐसे राज्य है जो निर्भया फंड का एक भी पैसा खर्च नहीं किया गया है।
बीते दिनों हैदराबाद में महिला डॉक्टर से रेप और जलाकर हत्या के बाद महिलाओं की सुरक्षा में खर्च की जाने वाली पैसों और सुरक्षा की समीक्षा शुरू हो गई है, लोकसभा में सरकार ने बताया है कि केंद्र सरकार द्वारा निर्भया फंड के तहत महिलाओं की सुरक्षा के लिए दी जाने वाली राशि का पांच राज्यों ने एक पैसा भी खर्च नहीं किया है, महिला एंव बाल विकास मंत्रालय के नवंबर 2019 के आंकड़ों के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश को दी गई राशि का 91 प्रतिशत हिस्सा खर्च नहीं किया गया, निर्भया फंड के तहत केंद्र ने राज्यों को 1,672 करोड़ रुपये का फंड दिया था, जिसमें कुल 147 करोड़ रुपये ही खर्च किए गए हैं। केंद्र सरकार ने निर्भया फंड के तहत महाराष्ट्र, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा, दमन- द्वीप को 183 करोड़ रुपये का फंड दिया था, लेकिन इन राज्यों ने रकम को खर्च तक नहीं किया।
पिछले छह सालों में आम बजट में निर्भया फंड में 3 हजार 600 करोड़ रुपये आवंटित हुए हैं, लेकिन फंड का सिर्फ 20 प्रतिशत ही इस्तेमाल हो पाया, हालांकि, शुरुआती एक-दो सालों में फंड का इस्तेमाल न के बराबर ही हुआ, जिन प्रमुख योजनाओं के तहत राज्यों को धन आवंटित किया गया है, उनमें इमरजेंसी रिस्पॉन्स सपोर्ट सिस्टम, सेंट्रल विक्टिम कंपंसेशन फंड, महिलाओं और बच्चों के खिलाफ साइबर अपराध रोकथाम, वन स्टॉप स्कीम, महिला पुलिस वालंटियर और महिला हेल्पलाइन योजना शामिल हैं।
नैशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की 2017 की रिपोर्ट के मुताबिक, महाराष्ट्र महिलाओं के खिलाफ अपराध के मामले में देश में दूसरे पर, जबकि बच्चों के खिलाफ अपराध के मामले में तीसरे नंबर पर आता है। हाल के दिनों में महिलाओं एवं बच्चों के खिलाफ जिन वारदात ने देश को हिला दिया, वे कर्नाटक, तेलंगाना, ओडिशा, उत्तर प्रदेश में हुईं। लेकिन रिपोर्ट कहती है कि इन राज्यों में महाराष्ट्र जीरो प्रतिशत, कर्नाटक, तेलंगाना और ओडिशा ने निर्भया फंड का सिर्फ 6 प्रतिशत धन ही खर्च किया, जबकि उत्तर प्रदेश ने निर्भया फंड का 21 प्रतिशत इस्तेमाल किया।
दरअसल निर्भया फंड में पीड़िताओं के मुआवजे की राशि के वितरण और प्रबंधन को लेकर ठोस नीति का अभाव है यही वजह है कि फंड का सही इस्तेमाल नहीं हो पता है। सुप्रीम कोर्ट का साफ कहना है कि इस फंड से तीन मंत्रालय गृह मंत्रालय, वित्त मंत्रालय और महिला एवं विकास मंत्रालय जुड़े हैं, इसलिए भ्रम की स्थिति है कि किसे क्या करना है, केंद्र सरकार इस फंड में पैसा मुहैया तो करा रही है, लेकिन राज्य सरकारों को यौन हिंसा संबंधी मुआवजा कब और किस चरण में देना है इसे लेकर कोई स्पष्ट प्रावधान नहीं है।
हम आपको बता दें कि साल 2012 में दिल्ली में हुए निर्भया गैंगरेप कांड के बाद साल 2013-14 के आम बजट में निर्भया फंड की घोषणा हुई थी, निर्भया रेप कांड और हत्या ने पूरे देश को हिला कर रख दिया था, इस घटना के बाद ही केंद्र की तत्कालीन यूपीए सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए एक विशेष फंड की घोषणा की थी। इस फंड का नाम ‘निर्भया फंड’ रखा गया था, लेकिन अब ये फंड धूल फांक रहा है।